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जानें ऐसा कौन सी चीज है जो हवा को बना देती है जहरीली

दुनिया की कुल मौतों में 12% मौतें सिर्फ खराब हवा की वजह से होती हैं. तुलना करें तो हाई ब्लड प्रेशर हर साल करीब एक करोड़ लोगों की जान लेता है, यानी वायु प्रदूषण अब उसके भी करीब पहुंच चुका है. 2021 में सात लाख से ज्यादा छोटे बच्चों ने जहरीली हवा की वजह से दम तोड़ा है.

 

दिवाली पर आतिशबाजी के बाद दिल्ली की हवा बेहद खराब हो गई है. वायु गुणवत्ता एक बार फिर खतरनाक श्रेणी में है. सुबह के वक्त दिल्ली के ज्यादातर इलाकों में एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) बेहद खतरनाक श्रेणी में रिकॉर्ड किया गया, जो सेहत के लिए काफी खतरनाक है. सबसे ज्यादा AQI चाणक्य प्लेस में रिकॉर्ड किया गया, जहां AQI 979 तक पहुंच गया, वहीं नारायणा गांव में AQI 940 जबकि तिगड़ी एक्सटेंशन में AQI 928 तक पहुंच गया. एयर क्वालिटी इंडेक्स आने वाले वक्त में भी ऐसा रहा तो बच्चों और बुजुर्गों के साथ ही स्वस्थ व्यक्ति की सेहत पर भी असर पड़ेगा. आइए जानते हैं कि ऐसा क्या है कि वायु प्रदूषण के साथ हवा में घुलने वाली जहरीले कण अब भारत में मौत का दूसरा बड़ा कारण बनने लगे हैं…

दुनिया धीरे-धीरे एक ऐसे संकट की ओर बढ़ रही है, जहां सांस लेना ही बीमारी बन गया है. स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2024 की ताज़ा रिपोर्ट बताती है कि दुनिया में हर आठवीं मौत की वजह अब वायु प्रदूषण है. साल 2021 में अकेले जहरीली हवा ने 81 लाख लोगों की जान ले ली. यानी तंबाकू से भी ज्यादा मौत का कारण हवा बनी. उसी साल तंबाकू के कारण 75 से 76 लाख लोगों की मौत हुई थी. इसका मतलब है कि जिस हवा को हम हर पल अंदर ले रहे हैं, वही अब मौत का सबसे खतरनाक जरिया बन चुकी है.

रिपोर्ट बताती है कि दुनिया की कुल मौतों में 12% मौतें सिर्फ खराब हवा की वजह से होती हैं. तुलना करें तो हाई ब्लड प्रेशर हर साल करीब एक करोड़ लोगों की जान लेता है, यानी वायु प्रदूषण अब उसके भी करीब पहुंच चुका है. राजधानी दिल्ली जैसे शहरों में हालात और भी भयावह हैं. एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) लगातार 500 के करीब पहुंच गया है, जो गंभीर श्रेणी में आता है. इस स्तर पर न सिर्फ बच्चे या बुजुर्ग, बल्कि स्वस्थ व्यक्ति भी बीमार पड़ सकते हैं. सांस की तकलीफ, खांसी, आंखों में जलन और सिरदर्द आम हो चुके हैं.

PM2.5 का तेजी से बढ़ रहा खतरा

रिपोर्ट का सबसे डरावना पहलू है PM2.5- यानी 2.5 माइक्रोन से भी छोटे कण, जो इंसान के बाल से सौ गुना पतले होते है. ये इतने सूक्ष्म होते हैं कि नाक और मुंह के जरिए आसानी से शरीर में घुस जातेहैं और सीधे दिल और फेफड़ों तक पहुंच जाते हैं. वहां जाकर ये अंगों को धीरे-धीरे नुकसान पहुंचाते हैं. साल 2021 में वायु प्रदूषण से हुई कुल मौतों में से 96 फीसदी की वजह यही कण थे. 78 लाख लोगों की जान सिर्फ PM2.5 से गई. यही नहीं, वायु प्रदूषण से जुड़ी 90% से ज्यादा बीमारियों के पीछे भी ये छोटे-छोटे कण ज़िम्मेदार पाए गए हैं.

सबसे ज़्यादा असर दक्षिण एशिया और अफ्रीका पर

रिपोर्ट के अनुसार, जहरीली हवा दुनिया में मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण बन चुकी है. सबसे ज्यादा खतरा दक्षिण एशियाई और अफ्रीकी देशों पर है, जहां आबादी घनी है और प्रदूषण नियंत्रण तंत्र कमजोर. कुल मौतों में से 58% बाहरी वायु प्रदूषण से और 38% मौतें घर के अंदर मौजूद प्रदूषण से हुईं हैं. रिपोर्ट यह भी बताती है कि पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौतों का दूसरा सबसे बड़ा कारण भी वायु प्रदूषण है. 2021 में सात लाख से ज्यादा छोटे बच्चों ने जहरीली हवा की वजह से दम तोड़ा है. इनमें से 30 प्रतिशत मौत जन्म के पहले महीने में वायु प्रदूषण के कारण हुई हैं.

भारत में तंबाकू से ज्यादा वायु प्रदूषण ले रही जान

भारत इस संकट के केंद्र में है. यहां हर साल तंबाकू से लगभग 10 लाख लोग मरते हैं, जबकि वायु प्रदूषण से यह संख्या दोगुनी यानी 21 लाख तक पहुंच चुकी है. इसका मतलब है कि हर महीने करीब 1.75 लाख और हर दिन लगभग 5,700 लोग इस खामोश कातिल के शिकार बन रहे हैं. साल 2021 में भारत में पांच साल से कम उम्र के 1.69 लाख बच्चों की मौत वायु प्रदूषण से हुई. यह दुनिया में सबसे अधिक है. नाइजीरिया दूसरे स्थान पर था, जहां 1.14 लाख बच्चों की मौत हुई जबकि पाकिस्तान में यह संख्या 68 हजार रही.

जब हवा ही बन जाए बीमारी का कारण

वायु प्रदूषण सिर्फ मौत का कारण नहीं, बल्कि दर्जनों बीमारियों की जड़ भी है. अस्थमा, फेफड़ों का कैंसर, हृदय रोग और ब्रेन स्ट्रोक जैसी गंभीर बीमारियां इससे जुड़ी हैं. साल 2013 में लंदन की 9 साल की बच्ची एला किस्सी-डेब्रा की अस्थमा अटैक से मौत हुई थी. यह दुनिया का पहला मामला था, जिसमें मृत्यु प्रमाणपत्र में ‘वायु प्रदूषण’ को मौत का आधिकारिक कारण बताया गया था. रिपोर्ट बताती है कि दक्षिण एशिया की हवा दुनिया में सबसे जहरीली है. वायु प्रदूषण से जितनी मौतें हुईं, उनमें से आधी से ज्यादा सिर्फ भारत और चीन में दर्ज की गईं हैं. चीन में 23 लाख और भारत में 21 लाख लोगों की मौत इसी वजह से हुई.

धीमी मौत का जहर बनता जा रहा PM2.5

PM2.5 में नाइट्रेट, सल्फेट एसिड, धातु, रसायन और धूल-मिट्टी के बेहद छोटे कण होते हैं. ये फेफड़ों में गहराई तक जाकर स्थायी नुकसान करते हैं. दिल की बीमारी वाले मरीजों के लिए यह जानलेवा साबित होता है, जबकि स्वस्थ लोगों में भी यह अस्थमा, हृदय रोग और फेफड़ों से जुड़ी परेशानियां बढ़ा देता है. भारत में हर एक लाख लोगों में से 148 की मौत का कारण वायु प्रदूषण है- जो वैश्विक औसत से कहीं अधिक है.

दिल्ली में सांस लेना हुआ मुश्किल

जनवरी 2024 में आई एक स्टडी ने साफ किया कि दुनिया में सबसे ज्यादा PM2.5 भारत में पाया जाता है, और इसमें दिल्ली सबसे आगे है. सर्दियों के मौसम में घरों के अंदर की हवा बाहर की हवा से तकरीबन 41% ज्यादा प्रदूषित पाई गई. लैंसेट जर्नल में प्रकाशित एक शोध में बताया गया है कि शहरों में रहने वाले गैर-धूम्रपान करने वालों (नॉन-स्मोकर्स) में लंग कैंसर का खतरा बढ़ाने में भी वायु प्रदूषण की बड़ी भूमिका है.

अब नहीं चेते तो सांसें भी होंगी कीमती

वायु प्रदूषण अब सिर्फ पर्यावरण की समस्या नहीं रहा, बल्कि मानव अस्तित्व के लिए सीधा खतरा बन चुका है. जिस हवा के बिना जीवन संभव नहीं, वही अब मौत का जरिया बनती जा रही है. अगर सरकारें और नागरिक दोनों ने मिलकर अभी कदम नहीं उठाए- जैसे हरियाली बढ़ाना, निजी वाहनों पर नियंत्रण और स्वच्छ ऊर्जा को अपनाना, तो आने वाले सालों में हवा नहीं, बल्कि ‘जहर’ सांसों में होगा

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