कोटा, कोचिंग हब से सुसाइड हब… !

राज्य सरकार तत्काल प्रतिबंधित करें या सुप्रीम कोर्ट संज्ञान में लें
रायपुर। देश भर में राजस्थान का एक छोटा शहर कोटा प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं की कोचिंग हब के रूप में मशहूर है, अब कहां जाए तो गलत नहीं होगा कि यह युवाओं के सुसाइड हब के तौर पर भी जाना जाने लगा है। पिछले महज 8 माह में 22 छात्रों ने सुसाइड किया। राज्य सरकार इस दिशा में तुरंत सोचे-विचारे अन्यथा की स्थिति में सुप्रीम कोर्ट संज्ञान ले। देश युवाओं को इस तरह खुदकुशी करते आखिर कब तक देखेगा।
देश के अंदर इंजीनियरिंग एवं मेडिकल की पढ़ाई हेतु पहले प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण करनी होती है। उसमें भी टॉप रेकिंग आनी चाहिए। अन्यथा बाहर हो जाने का खतरा रहता है। इसी तरह अच्छे संस्थान, मनचाहे कॉलेज में प्रवेश हेतु कड़ी स्पर्धा होती है। एक-एक नंबर, एक-एक पाइंट के मध्य स्पर्धा। वह भी मेधावी बच्चों के मध्य।
जिंदगी में इंजीनियरिंग मेडिकल की पढ़ाई करके अच्छा मुकाम हासिल करने विद्यार्थी भरपूर प्रयास करते हैं। अभिभावक उन्हें यथासंभव कोचिंग दिलाते हैं। अपना जमा पैसा कोचिंग सेंटरों पर बरसाते हैं- इसलिए कि बच्चा सफल हो जाए। मुल्क भर में इसके चलते प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं के लिए कोचिंग क्लासेस, सेंटर 3-4 दशकों में खुलते रहें हैं। पर इस क्रम में राजस्थान के एक छोटे शहर कोटा ने देश भर में अलग ही मुकाम हासिल कर लिया।
कोटा के अंदर दशकों पहले कुछ शिक्षकों ने आपस में मिलकर तय किया कि दीगर कोचिंग क्लासेस में पढ़ाने से एक निश्चित वेतन उन्हें मिलता है-बड़ा लाभ सेंटर संचालक ले जाता है। तो क्यों न खुद ही कोचिंग क्लासेस,सेंटर मिलकर खोल लिया जाए भारी कमाई को आपस में बांट लेंगे। वे शिक्षक से व्यवसायी बन गए। उनका यह तरीका रंग लाया और देखते-देखते कुछ ही बरस में वहां टॉप स्तर के शिक्षकों ने अलग-अलग व्यवसायिक समूह बनाकर दर्जनों अब सैकड़ों कोचिंग सेंटर खोल लिया है। कमी होने पर बाहर से अपने शिक्षक मित्रों को बुलाकर समूह में भागीदार बनाया।
इसे संयोग कहा जाए या भाग्य या मेहनत कोचिंग सेंटरों में आपसी प्रतिस्पर्धा के चलते स्तरीय पढ़ाई होने लगी। उसी हिसाब से पहले हजारों पर लाखों की फीस (पैकेज) चंद माह के कोचिंग के लिए ली जाने लगी। उधर देखते-देखते कोटा की प्रसिद्धि राज्य से बाहर देश भर में होने लगी। उसे देशव्यापी कोचिंग हब बनते देर नहीं लगी। विद्यार्थियों के मध्य यह एक तरह से पेशन बन गया। देशभर के विभिन्न राज्यों के टॉपर बच्चे कोचिंग के वास्ते कोटा राजस्थान रुख करने लगे। उनकों सेंटर में प्रवेश देने वास्ते प्रवेश परीक्षा आयोजित की जाने लगी। (एक क्रेज बना दिया गया कि जो विद्यार्थी कोटा से कोचिंग लेगा वह देश के अच्छे शिक्षण संस्थाऔं में प्रवेश पाएगा। प्रतिस्पर्धा परीक्षा पास कर लेगा। क्लासेस, सेंटरों के एजेंट कोटा में घूम रहे हैं। देश में फैले हैं। वे बैंक डोर से प्रवेश कराते हैं। पीजी के एजेंट हैं। कमरा किराए पर दिलाने वाले एजेंट हैं। रेलवे रिजर्वेशन दिलाने एजेंट हैं। इस सबसे छात्र एवं अभिभावक फंसते चले गए।) कोटा में कोचिंग वास्ते बाढ़ आ गई। हॉस्टल का धंधा देखते-देखते चल गया। शिक्षक-भी लाखों कमा रहे हैं। उन्होंने स्कूलों की स्थायी नौकरी छोड़ दी है। भोजनालय का धंधा भी लाखों का है। हर चीज महंगी जगह की कमी।हॉस्टल में रूम नहीं। सीट नहीं मिलता। पेईंग गेस्ट (पीजी) का धंधा जोरों से फल-फूल रहे हैं। हजारों परिवार इसी पेशे से पल रहें हैं। धोबी, नाई, मोची, ऑटो रिक्शा, अस्पताल, मनोरंजन, प्रकाशन, फोटोकॉपी आदि का धंधा दुकान पर है। महंगाई की तो बात बाद की बात है। उपरोक्त हालातों में जब मेधावी विद्यार्थी अपने जिलों, राज्यों में स्कूलों में 85-90% अंक लेकर कोटा आते हैं तो उसका उनका सामना देश के अन्य राज्यों के मेधावी बच्चों से होता है। वे दवाब में आ जाते हैं। उन पर हमेशा पढ़ाई का दबाव बना रहता है। और छात्र दबाव सहन कर लेते हैं। पर कुछ सहन नहीं कर पाते पढ़ाई बोझ बन जाती है। घर-परिवार रिश्ते-नातेदार उन्हें कोटा में एडमिशन दिला हॉस्टल में अकेला छोड़ जाते हैं। उक्त दबाव पूर्ण माहौल में नए साथियों के बीच, दूसरे शहर में वह खुद को अकेला पाता है और असफलता के लिए खुद को दोषी मानकर आत्मग्लानि (गिल्टी) से आत्महत्या हेतु प्रेरित होता है। उसे चयन न हो पाने भर से जीवन अंधकारमय लगता है। ऐसी स्थिति में उसे समझाने, बुझाने, सम्हालने, गाइड करने वाला कोई नहीं रहता तब वह सुसाइड करता है। मौत को गले लगाता हैं।
पिछले 8 माह में वहां 22 छात्र सुसाइड कर चुके हैं। छात्रों की मौत का सिलसिला रुक नहीं रहा हैं। सुसाइड हेतु डबल मेथड अपना रहें हैं। जो खौफनाक है डबल मेथड में सुसाइड के ऐसे तरीके से जान दी जाती है जिसमें बचने की कोई गुंजाइश नहीं रहे। अगर फंदे से बच गए तो किसी अन्य तरीके से सुसाइड। पिछले डेढ़-दो दशक के अंदर कोटा में हजारों छात्र की मौत सुसाइड से हुई है। उनके परिवार वालों पर क्या बीतती होगी यह समझा जा सकता है वे बेटे-बेटी को इंसान बनाने सफल होने भेजते हैं सुसाइड वास्ते नहीं। पर शासन-प्रशासन इस दिशा में कभी गंभीर नहीं हुआ। कोचिंग सेंटर वालों की कोई जवाबदेही तय नहीं है। उन्हें पैसा चाहिए। उन्हें कोई सहानुभूति नहीं कि मेधावी बच्चे कोटा पहुंच मौत को गले लगा रहे हैं। उन पर आज तक कोई कार्रवाही नहीं हुई। वहां की सरकार ने भी कोई सार्थक कदम इन सुसाइड केसों पर नहीं उठाया। अब वक्त आ गया है कि सरकार कोटा के तमाम कोचिंग सेंटर प्रतिबंधित करते हुए बंद कराए। एकजुट मेधावी छात्रों की जान ज्यादा कीमती है। अगर सरकार कोई सार्थक कदम ना उठाए तो सुप्रीम कोर्ट को खुद संज्ञान लें। कोचिंग बंद होने के बाद संबंधित शिक्षक कर्मी अपने घर पर पढ़ाए या अन्यत्र नौकरी करें। पर समय है कि वहां प्रतिस्पर्धा प्रायोगिक परीक्षा। कोचिंग सेंटर के साथ सुसाइड हब को कड़ाई से बंद कराया जाए।