Kolkata rape-murder case: हाई कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा, CBI और बंगाल सरकार आमने-सामने

Kolkata rape-murder case: कोलकाता रेप-मर्डर केस में दोषी को फांसी देने की मांग पर हाई कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा। बंगाल सरकार और CBI की दलीलों के बीच सजा बढ़ाने की अपील पर सुनवाई हुई।

Kolkata rape-murder case: पश्चिम बंगाल सरकार ने कोलकाता रेप-मर्डर केस के दोषी संजय रॉय को फांसी देने वाली याचिका पर कलकत्ता हाई कोर्ट में सोमवार(27 जनवरी) को सुनवाई हुआ। 20 जनवरी को सियालदह कोर्ट ने दोषी को मरते दम तक उम्रकैद की सजा सुनाई थी और 50,000 रुपए का जुर्माना भी लगाया था। हालांकि, बंगाल सरकार ने 21 जनवरी को कोर्ट में अपील की कि इस अपराध के लिए उम्रकैद पर्याप्त नहीं है। सरकार ने कहा कि दोषी ने जो अपराध किया है, वह समाज में भय का माहौल पैदा करता है। ऐसे मामलों में सख्त सजा देना न्याय और कानून का पालन सुनिश्चित करता है।

CBI ने सरकार की याचिका का विरोध किया
सीबीआई ने सरकार की याचिका को चुनौती देते हुए कहा कि बंगाल सरकार को अपील करने का अधिकार नहीं है। सीबीआई डिप्टी सॉलिसिटर जनरल राजदीप मजूमदार ने कोर्ट में दलील दी कि चूंकि इस मामले की जांच सीबीआई ने की थी, इसलिए अपील का अधिकार केवल एजेंसी के पास है। उन्होंने यह भी बताया कि सीबीआई ने पहले ही ट्रायल कोर्ट में दोषी को फांसी देने की मांग की थी। सीबीआई का कहना था कि सजा बढ़ाने की मांग पर फैसला लेना न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा है, लेकिन यह अधिकार सिर्फ जांच एजेंसी के पास होना चाहिए।

दोषी के वकील ने दी सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का हवाला
संजय रॉय के वकील ने कोर्ट में सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन का हवाला देते हुए कहा कि अगर किसी अपराधी में सुधार की संभावना हो, तो फांसी की सजा नहीं दी जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि फांसी केवल उन मामलों में दी जाए जहां दोषी का पुनर्वास संभव न हो। वकील ने यह भी कहा कि सियालदह कोर्ट ने भी इसे ‘रेयरेस्ट ऑफ रेयर’ की श्रेणी में नहीं माना था। इस पर सीबीआई ने तर्क दिया कि पीड़िता के साथ जो हुआ, वह सबसे क्रूर अपराधों में से एक है।

पीड़िता के माता-पिता ने की न्याय की मांग
पीड़िता के माता-पिता ने कोर्ट में हाथ जोड़कर कहा कि उन्हें मुआवजा नहीं चाहिए, बल्कि न्याय चाहिए। कोर्ट ने दोषी को सजा देने के साथ-साथ मुआवजे की भी घोषणा की थी। जज ने कहा कि राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वह पीड़िता के परिवार को मुआवजा दे। 10 लाख रुपये मौत के लिए और 7 लाख रुपये रेप के लिए निर्धारित किए गए हैं। हालांकि, परिवार ने कहा कि वे इस मुआवजे को स्वीकार नहीं करेंगे, क्योंकि उनकी बेटी के साथ जो हुआ, उसका न्याय केवल दोषी को फांसी देने से ही हो सकता है।

हाई कोर्ट ने फैसला रखा सुरक्षित
सीबीआई और बंगाल सरकार की दलीलों को सुनने के बाद, न्यायमूर्ति देबांग्शु बसाक ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। उन्होंने कहा कि यह मामला समाज में न्याय की उम्मीदों और कानून की व्याख्या के बीच एक संतुलन बनाने का है। सरकार का कहना है कि दोषी को फांसी देना न्यायिक प्रणाली की सख्ती को दर्शाएगा। दूसरी ओर, विपक्ष का कहना है कि इस फैसले में राजनीति हावी हो रही है। अब सबकी नजर हाई कोर्ट के फैसले पर है, जो इस मामले में न्याय की दिशा तय करेगा।

 

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