Sun. Oct 19th, 2025

Kamada Ekadashi Vrat Katha: कामदा एकादशी का व्रत करने से होती हैं सभी मनोकामनाएं पूरी, जानिए व्रत कथा

Kamada Ekadashi Vrat Katha:

Kamada Ekadashi Vrat Katha: कामदा एकादशी का पर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। इसे फलदा एकादशी भी कहा जाता है।

Kamada Ekadashi Vrat Katha रायपुर। कामदा एकादशी का पर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। इसे फलदा एकादशी भी कहा जाता है। फलदा शब्द का अर्थ है फल की प्राप्ति और कामदा शब्द का अर्थ हैकामनाओं की दात्री अर्थात कामनाओं को पूरा करने वाली। शास्त्रों में इसे भगवान विष्णु का सर्वोत्तम व्रत कहकर संबोधित किया गया है। कामदा एकादशी ब्रह्महत्या आदि पापों और भूत-प्रेत आदि पापों का नाश करने वाली एकादशी मानी जाती है। जो व्यक्ति इस कथा को पढ़ता, सुनता और सुनाता है उसकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

kamada Ekadashi 2024: कामदा एकादशी पर जरूर पढ़ें ये कथा, भगवान विष्णु हर इच्छा करेंगे पूरी - kamada ekadashi 2024 read this katha in hindi Lord Vishnu will fulfill every wish tlifdg - AajTak

एक समय धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्रीकृष्ण से कहते हैं, हे भगवन्! मैं आपको कोटि-कोटि प्रणाम करता हूं। अब कृपया मुझे चैत्र शुक्ल एकादशी का माहात्म्य बतायें। भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिर से कहते हैं कि हे धर्मराज! राजा दिलीप ने एक बार गुरु वशिष्ठ से यह प्रश्न पूछा था और गुरु वशिष्ठ ने जो समाधान दिया वह मैं तुम्हें बता रहा हूं।

प्राचीन काल में भोगीपुर नगर में पुण्डरीक नाम का राजा राज्य करता था। भोगीपुर शहर में कई अप्सराएं, किन्नर और गंधर्व रहते थे और राजा पुंडरीक का दरबार किन्नरों और गंधर्वों से भरा था, जो गायन और संगीत में कुशल और सक्षम थे। गंधर्वों और किन्नरों का नियमित गायन होता था। भोगीपुर नगर में ललिता नाम की एक सुंदर अप्सरा और उसका पति ललित नाम का एक महान गंधर्व रहता था। दोनों के बीच अटूट प्रेम और आकर्षण था, वे हमेशा एक-दूसरे को याद करते थे।

एक दिन गंधर्व ‘ललित’ दरबार में गायन कर रहे थे तभी अचानक उन्हें अपनी पत्नी ललिता की याद आई। इससे उनकी आवाज, लय और ताल बिगड़ने लगे। इस त्रुटि को कर्कट नामक नाग को इस भूल का पता चला और उसने यह बात राजा पुण्डरीक को बतायी। राजा को गंधर्व ललित पर बहुत क्रोध आया। राजा पुण्डरीक ने गंधर्व ललित को राक्षस बनने का श्राप दे दिया। ललित हजारों वर्षों तक राक्षस योनि में घूमता रहा। उसकी पत्नी भी उसके पीछे-पीछे चला करती थी , अपने पति को इस हालत में देखकर वह बहुत दुखी हुआ करती थी।

कुछ समय बाद घूमते-घूमते ललित की पत्नी ललिता विंध्य पर्वत पर रहने वाले श्रृंगी ऋषि के पास गईं और अपने शापित पति की मुक्ति का उपाय पूछने लगीं। ऋषि को उस पर दया आ गई। उन्होंने चैत्र शुक्ल पक्ष की ‘कामदा एकादशी’ का व्रत करने का आदेश दिया। उनका आशीर्वाद लेकर गंधर्व पत्नी अपने स्थान पर लौट आई और भक्तिपूर्वक ‘कामदा एकादशी’ का व्रत किया। एकादशी व्रत के प्रभाव से उनका श्राप मिट गया और उन दोनों को गंधर्व रूप फिर प्राप्त हुआ।

About The Author