Shardiya Navratri Festival 2023 : शारदीय नवरात्रि पर्व पर महामाया मंदिर में भक्तों का जन सैलाब, माता महामाया की कहानी
Shardiya Navratri Festival 2023 : रायपुर महामाया मंदिर पुरानी बस्ती में प्रतिवर्ष देश-विदेश से ज्योति कलश प्रज्जवलित किया जाता हैं
Shardiya Navratri Festival 2023 : रायपुर महामाया मंदिर पुरानी बस्ती में मां महामाया का दरबार कई मायनों में खास है। Shardiya Navratri Festival 2023 शारदीय नवरात्रि पर्व में माता के मंदिरों में भक्तों का जन सैलाब उमड़ा हुआ हैं। महामाया मंदिर के गर्भगृह में मां की प्रतिमा दरवाजे की सीध में नहीं दिखती। इसे लेकर कई किवदंतियां हैं।छत्तीसगढ़ के 36 शक्तिपीठों या 36 किलों में से एक है । मराठा शासक मोरध्वज द्वारा 17वीं-18वीं शताब्दी के बीच निर्मित, यह रायपुर के सबसे पुराने और सबसे अमीर मंदिरों में से एक है । मंदिर में दो मंदिर हैं, महामाया मंदिर और समलेश्वरी मंदिर।इस मंदिर की सूर्यास्त के समय सूर्य की किरणें माँ महामाया के चरणों को छूती हैं और सूर्योदय के समय किरणें माँ समलेश्वरी के चरणों को छूती हैं। सारे शक्तिपीठों में ये ऐसा मंदिर है जहां दो भैरव एक साथ विराजमान है सारे भरतवर्ष के शक्तिपीठों में एक -एक कालभैरव हैं लेकिन रायपुर के पुरानी बस्ती के माता महामाया मंदिर में बटुकनाथ,और कालभैरव एक साथ विराजमान हैं तांत्रिक क्रियाओं का गढ़ माना जाता हैं मध्य रात्रि पर गर्भगृह में तांत्रिक पूजा की जाती हैं। जिसे सभी भक्तों कि मनोकामनापूर्ण होती हैं।
ऐसी ही एक किंवदंती के मुताबिक कलचुरी वंश के राजा मोरध्वज की भूल के कारण ऐसा हुआ है। किंवदंती ऐसी है कि राजा मोरध्वज सेना के साथ खारुन नदी तट पर पड़ाव डाले हुये थे। तभी रानी और कुछ दासियां के साथ स्नान करने नदी पहुंची तो नदी के तट पर बीचों बीच बड़ा सा चटटान हैं और उसके ऊपर तीन काले सर्पों ने उसे लपेट रखा हैं। यहां दृश्य देखकर रानी और दासी डर कर चीख पुकार करते राजा के पास पहुंची। राजा ने सरे वृतांत सुनने के बाद वहां नदी किनार पहुंचे। वहां उन्हें मां महामाया की प्रतिमा दिखाई दी। राजा करीब पहुंचे तो उन्हें सुनाई दिया कि मां उनसे कुछ कह रही हैं। मां ने कहा कि वे रायपुर नगर के लोगों के बीच रहना चाहती हैं। इसके लिए मंदिर तैयार किया जाए। राजा ने माता के आदेश का पालन करते हुए पुरानी बस्ती में मंदिर तैयार करवाया। मां ने राजा से कहा था कि वह उनकी प्रतिमा को अपने कंधे पर रखकर मंदिर तक ले जाएं। रास्ते में प्रतिमा को कहीं रखें नहीं। अगर प्रतिमा को कहीं रखा तो मैं वहीं स्थापित हो जाऊंगी। राजा ने मंदिर पहुंचने तक प्रतिमा को कहीं नहीं रखा लेकिन मंदिर के गर्भगृह में पहुंचने के बाद वे मां की बात भूल गए और जहां स्थापित किया जाना था, उसके पहले ही एक चबूतरे पर रख दिया। बस प्रतिमा वहीं स्थापित हो गई। राजा ने प्रतिमा को उठाकर निर्धारित जगह पर रखने की कोशिश की लेकिन नाकाम रहे। प्रतिमा को रखने के लिए जो जगह बनाई गई थी वह कुछ ऊंचा स्थान था। इसी वजह से मां की प्रतिमा चौखट से तिरछी दिखाई पड़ती है। महामया मंदिर के साथ एक और किवंदती जुड़ी है कि माँ अपने भक्तों कि हमेशा रक्षा करते है। कहा जाता है कि एक बार बहुत तेज बारिश हो रही थी। पुजारी को मंदिर का कपाट बंद कर घर जाना था लेकिन तेज बारिश की वजह से रुका हुआ था। गर्भगृह की कपाट बंद हो चुकी थी पुजारी घर जाने के लिए बाहर खड़ा था। कि बारिश थमने के इंतजार में लेकिन आचनक तेज आकाशीय बिजली की लपटे पुजारी कि तरफ गिरा लेकिन पुजारी को ऐसा लगा कि कोई स्त्री ने धक्का दिया बिजली गिरने से पुजारी जी बेहोश हो गए थे। जब सुबह गर्भगृह की कपाट खोला गया तो माँ की साड़ी जल गई थी,और जिस जगह माँ ने पुजारी को बचाया था उस जगह माँ के पदचिन्ह के निशान आज भी विराजमान हैं। माँ अपने भक्तों कि हमेशा रक्षा करते हैं। महामाया मंदिर में प्रतिवर्ष देश-विदेश से ज्योति कलश प्रज्जवलित किया जाता हैं और अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण करती हैं।