Jaya Ekadashi vrat 2024 : जया एकादशी के व्रत के प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्ति मिलती है, जानिए व्रत कथा का महत्व

Jaya Ekadashi vrat2024 :
20 फरवरी, माघ मास की शुक्ल पक्ष तिथि को पड़ने वाली एकादशी को जया एकादशी व्रत कहा जाता है, यह दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा को समर्पित है।
Jaya Ekadashi vrat 2024 : 20 फरवरी, माघ मास की शुक्ल पक्ष तिथि को पड़ने वाली एकादशी को जया एकादशी व्रत कहा जाता है, यह दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा को समर्पित है। जो भक्त इस दिन श्रद्धापूर्वक व्रत करते हैं उनके घर में सदैव सुख-शांति का वास रहता है। तो आइए जानते हैं इस व्रत से जुड़े कुछ नियम- काले तिल, तिल के लड्डू, तुलसी का पत्ता, पंजीरी, पंचामृत, केला, मौसमी फल, पान का पत्ता, सुपारी, पीला वस्त्र, पीला फूल, धूप, दीप, गोपी चंदन, रोली, अक्षत, एकादशी व्रत कथा की पुस्तक, भगवान श्री हरि विष्णु की प्रतिमा, गाय का घी, कपूर, हवन सामग्री आदि। ‘विष्णु सहस्त्रनाम’ का पाठ भी करें,विष्णु चालीसा और लक्ष्मी चालीसा का पाठ करना भी शुभ माना जाता है। इसके बाद भगवान विष्णु को भोग लगाएं। भोग लगाने के बाद श्री हरि नारायण की आरती करें। आरती के बाद भोजन को प्रसाद के रूप में परिवार में बांट दें।
जया एकादशी व्रत कथा
जया एकादशी का व्रत करने से पूर्व जन्म के पापों से मुक्ति मिलती है। जया एकादशी के प्रभाव से प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है। कथा सुनाते हुए श्रीकृष्ण ने बताया कि एक बार नंदन वन में इंद्र के दरबार में उत्सव चल रहा था। इस सभा में देवता और ऋषिगण आनंदपूर्वक उत्सव का आनंद ले रहे थे। उत्सव में गंधर्व गा रहे थे और अप्सराएँ नृत्य कर रही थीं। इन्हीं गंधर्वों में से एक था माल्यवान। एक सुन्दर नर्तकी थी जिसका नाम पुष्यवती था। उत्सव के दौरान पुष्यवती और माल्यवान एक-दूसरे पर मोहित हो गए और सबके सामने ही अपनी मर्यादा भूल गए। पुष्यवती और माल्यवान के इस कृत्य से देवता और ऋषि-मुनि असहज हो गये। इसके बाद देवराज इंद्र बहुत क्रोधित हो गए। इंद्र ने उन दोनों को शाप देकर स्वर्ग से निकाल दिया और उन्हें मृत्युलोक (पृथ्वी) पर पिशाच के रूप में निवास कराया। श्राप के प्रभाव से पुष्यवती और माल्यवान पिशाच रूप में कष्ट भोगने लगे। प्रेत योनि में उन दोनों का जीवन अत्यंत कष्टमय था।
माघ माह में शुक्ल पक्ष की जया एकादशी का दिन आया, इस दिन दोनों को केवल फल खाने को मिले ठंड के कारण दोनों को रात में नींद नहीं आई। इस प्रकार अनजाने में ही एकादशी का रात्रि जागरण भी हो गया। उस दिन उसने अपने किये पर पश्चाताप करते हुए भगवान विष्णु से इस कष्टमय जीवन से मुक्ति दिलाने की प्रार्थना की। अनजाने में उन दोनों ने जया एकादशी का व्रत पूरा कर लिया लेकिन सुबह होते-होते दोनों की मृत्यु हो गई। इस व्रत के प्रभाव से उन दोनों को पिशाच योगी से मुक्ति मिल गयी और वे पुनः स्वर्ग चले गये। इसके बाद से जया एकादशी का व्रत रखा जाने लगा।
इस व्रत के संबंध में भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को बताया था कि इस व्रत को करने से बड़े से बड़े पाप भी नष्ट हो जाते हैं, व्यक्ति कभी पिशाच, भूत या प्रेत योनि में जन्म नहीं लेता है, पुराणों में इसका महत्व बताया गया है। जया एकादशी के दिन यह कथा अवश्य सुनें।