कई अछूते क्षेत्रों में महिलाओं की एंट्री

हिचक – शर्म छोड़ तस्वीर बदलने में जुटीं..!

रायपुर। राजधानी समेत प्रदेश के शहरों में महिला वर्ग उन क्षेत्रों में प्रवेश करने लगी हैं, जिनमें अब तक पुरुषों का वर्चस्व था या कि खुद महिला हिचकती थी। पर अब तस्वीर बदलने लगी हैं। यह अच्छा आर्थिक संकेत हैं।

अभी ज्यादा समय नहीं गुजरा है, जब परिवहन सर्विस में पुरुषों का वर्चस्व था। खासकर वाहन चलाने में चालक-परिचालक के तौर पर। पर अब ई ऑटो रिक्शा दौड़ने से एक रास्ता खुला। चूंकि ई ऑटो रिक्शा चलाने में सरल है लिहाजा यहां से महिलाओं ने परिवहन सेवा में कदम धर दिया है। अब 10 में से एक चालक -परिचालक महिला दिखने लगी है। उन्हें ई ऑटो रिक्शा में मिलने वाली छूट-सब्सिडी ने भी मदद दी है। दूसरा-पेट्रोल पंपों पर पुरुषों का वर्चस्व भी महिलाएं तोड़ने निकल पड़ी है। वे कथित शर्म को खूंटी पर टांग पेट्रोल पंप पर पेट्रोल भरते-पैसा लेनदेन करते दिखने लगी हैं। भले ही शुरुआती दौर हो।

स्कूल बसों में छोटे बच्चों को लाने-ले जाने हेतु परिचालक पुरुष कर्मी ही दिखते है। पर यहां पर भी दखल महिला वर्ग ने दे दिया है। छोटे बच्चों की अच्छी देखरेख, उन्हे समझाइश महिला परिचालक पुरुषों से अधिक कर सकती हैं। ट्रेफिक पुलिस सेवा में कुछ समय पहले उतर चुकी महिला परिचालक का रोल भला क्यूंकर नहीं कर सकता। शहरों में चौपाटी संस्कृति पैर पसार रही है। जिसमें भी पुरुष वर्ग पूर्व में हावी था। पर थोड़े समय पूर्व में पति-पत्नी भी यह कार्य करने लगे। तो वहीं कई जगह पढ़ी-लिखी या कम पढ़ी युवतियां-महिलाएं चौपाटी पर अकेले ठेला कुशलतापूर्वक चला रही हैं।

उधर रियल एस्टेट बिजनेस में पुरुष वर्ग अब तक हावी हैं। पर छोटे- मोटे ठेके या पेट्री ठेके या मरम्मत-पुताई जैसे कार्य क्षेत्र में महिलाओं की एंट्री हो गई है। जहां वे मजबूती से उतरी हैं और ज्यादा गंभीर दिखाई देती हैं। बाग-बगीचों में माली कार्य पुरुषों ने हथिया रखा था वहां भी महिला वर्ग का थोड़ा सही दखल दिखाई देने लगा है। कालोनियों, मोहल्लों में घरेलु गार्डन में वे कई-कई घरों पर जाकर सेवा दे रही हैं।

टिफिन सेवा में वैसे तो महिलाओं का वर्चस्व रहा है। पर टिफिन डिब्बा वितरण कार्य में भी अब उतर रही हैं। पैदल, एक्टिवा, सायकल, मोटर सायकल से जाकर डिब्बा घर-घर पहुंचा रही हैं। संभव है वे जल्द फूड सप्लाई कंपनियों में सेवा देने आवेदन करने लगे। इसके अलावा वे ऐसे क्षेत्र जैसे दुकान, किराना, जनरल, ज्वेलरी, कपड़ा, स्टेशनरी, मेडिकल स्टोर, शृंगार प्रसाधन, रेडीमेड वस्त्र, होटल आदि जिसे घर-परिवार के पुरुष वर्ग संचालित करते हैं। उनमें बतौर रिलीवर (सहायक) वे वर्षों से सेवा दे रही हैं।

उपरोक्त क्षेत्रों को देखे, सोचे विचारे एवं महिला वर्ग के पदार्पण (प्रवेश) उनकी कार्यप्रणाली को देखे तो लगता है कि जल्द प्रदेश में इनका उक्त सेवा कार्यों में ग्राफ बढ़ेगा। कथित शर्म, हिचक टूटी है। घर-परिवार खुद के लिए पैसा जरूरी है। काम-काम होता है मेहनत करने वालों के लिए रास्ते खुलते चले जाते हैं। महिला समाज का 50 फ़ीसदी हिस्सा है। घर की गाड़ी चलाने वे आगे आ रही हैं तो उन्हें मौका देना होगा। नहीं तो वे खुद से अधिकार का दावा उपरोक्त तरीके से शुरू कर चुकी हैं। जो राज्य घर-परिवार के विकास के मद्देनजर अच्छी पहल हैं।

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