छत्तीसगढ़ का लोक नृत्य “सुआ नृत्य” : प्रसिद्ध सुआ नाच शुरू, तरी नरी नहा नरी नहा नरी ना ना रे सुअना के बोल गली-मोहल्ले में सुनाई देने लगे

छत्तीसगढ़ का लोक नृत्य "सुआ नृत्य" :
छत्तीसगढ़ का लोक नृत्य “सुआ नृत्य”: रायपुर राजधानी समेत समूचे प्रदेश के गांवों, कस्बों, शहरों में छत्तीसगढ़ की संस्कृति का प्रसिद्ध “सुआ नाच” शुरू हो गया है।
छत्तीसगढ़ का लोक नृत्य “सुआ नृत्य” : प्रदेश में ठंड शुरू होते ही धान की फसल पकने एवं कटनी शुरू हो जाती है। छत्तीसगढ़ का लोक नृत्य “सुआ नृत्य” जो समय के साथ बढ़ती जाती है। करीब डेढ़ -दो माह तक फसल की कटाई चलती है। बहरहाल फसल कट कर आने की खुशी एवं कोठी (भंडारगृह) में भरने (रखने) पर यह खुशी दुगुनी हो जाती है। 4 माह की कड़ी मश्क्कत से तैयार फसल कोठी में आने पर किसान (अन्नदाता) राहत की सांस (सुकून) लेता है। दीपोत्सव तकउत्सव मनाते, आराम करते एक- दूसरे के सुध -बुध लेते जीवन-यापन करते हैं। बाद में फसल का एक हिस्सा परिवार के लिए सुरक्षित रख शेष बेचते हैं। जिससे होने वाली आय से लागत काटकर वास्तविक लाभ गिनते हैं।
खैर ! ठीक इसी वक्त गांव-देहात एवं कस्बाई क्षेत्रों की लड़कियां, महिलाएं छत्तीसगढ़ के समृद्ध परंपरा के तहत नृत्य करती हैं। जो सुआ नाच कहा जाता है। जिसके बोल हैं – तरी नरी नहा नरी नहा नरी ना ना रे सुअना हो यानी लोगों को आशीष देते हैं। कोठी (खाद्यान्न भंडार) से थोड़ा अनाज निकाल कर दो। 5- 6 या 7-8 के छोटे- मंझोले समूह में बाकायदा साड़ी पहनकर बच्चियां युवतियां, महिला टोकरी लेकर निकलती हैं। टोकरी में अन्नपूर्णा देवी की फोटो और मिट्टी के सुआ (तोता) बनाकर रखते हैं। इसकी बाकायदा पूजा अर्चना कर उसके चारों ओर नृत्य (नाच) करते हैं। सुआ नाच करने वाले घर-घर, दुकान-दुकान जाते हैं। लोग इन्हें धन ,चांवल,अन्य अनाज, रुपए, पैसे, आदि देकर अन्नपूर्णा देवी से आशीर्वाद लेते हैं। इन्हें देखते ही या इनके गीत के बोल कानों में पड़ते ही जानकार व्यक्ति समझ जाते हैं कि धान की फसल तैयार है। दीपोत्सव करीब हैं।
(लेखक डॉ. विजय )