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छत्तीसगढ़ में छेरछेरा त्यौहार क्यों मनाया जाता है? जानिए ..

छेरछेरा पर्व

छेरछेरा पर्व

छेरछेरा पर्व : छत्तीसगढ़ में छेरछेरा पर्व शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि पौष पूर्णिमा को मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ी बोली में छेरछेरा पुन्नी कहा जाता है। पौष पूर्णिमा तक छत्तीसगढ़ के सभी किसान अपने खेतों से फसल काटकर अपने घरों भण्डारण कर चुके होते हैं। छेरछेरा त्यौहार किसानों और अन्न दान से जुड़ा त्यौहार है।

छत्तीसगढ़ में छेरछेरा त्यौहार, जब किसान अपने खेतों से फसल काट कर मींजाई कर लेते हैं और धान अपने घरों में जमा कर लेते हैं, तब यह त्यौहार पौष माह की पूर्णिमा तिथि यानी जनवरी माह में मनाया जाता है। यह त्यौहार किसानों को उनके खेतों में दान देने का त्यौहार है। ऐसा माना जाता है कि लोग साल भर कड़ी मेहनत करने के बाद अपनी मेहनत की कमाई दान करके छेरछेरा त्योहार मनाते हैं।दान देना महान पुण्य का कार्य है, इस विश्वास के साथ किसान अपने धन का दान कर महान पुण्य में भाग लेने के लिए छेरछेरा पर्व मनाते हैं।एक पौराणिक कथा के अनुसार किसान के खेतों में मजदूर काम करते हैं, फसल काटकर किसानों को देने के बाद भी यदि किसान मजदूरों को उनकी मजदूरी नहीं देता है तो मजदूर दुखी हो जाते हैं और धरती माता से प्रार्थना करते हैं कि उन्हें मजदूरी नहीं मिली है। उनकी मेहनत के अनुसार मजदूरी।इससे धरती माता नाराज हो जाती हैं और खेतों में फसल नहीं उगने देतीं। इससे किसान चिंतित होकर धरती माता से विनती करते हैं। धरती माता सपने में आती है और किसान से कहती है कि मजदूरों को उनके काम के अनुसार मजदूरी दो, तभी फसल खेतों में होगी, तभी से किसान मजदूरों को अन्न दान करने लगते हैं, तभी से छेरछेरा पर्व मनाया जाता है।

इस दिन बच्चे अपने गांव के सभी घरों में जाकर ‘छेरछेरा’ कहकर अन्न का दान मांगते हैं और सभी घरों में सभी को अपनी ‘कोठी’ यानी अन्न भंडार से अनाज निकालकर दान करते हैं। गांव के बच्चे समूह बनाकर घर-घर जाकर ‘छेरछेरा’ मांगते हैं। सभी वर्ग की महिलाएं, पुरुष, बुजुर्ग लोग समूह बनाकर छेरछेरा पर्व मनाते हैं और घर-घर जाकर छेरछेरा का दान मांगते हैं।

सनातन संस्कृति में दान देने की परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है। वामन अवतार में राजा बलि ने भगवान विष्णु को तीन पग दान देने का वचन दिया था।वामन रूप में भगवान ने दो पग में आकाश और धरती को नाप लिया, तीसरे पग में भगवान ने राजबली का सिर रखकर उसे पाताल का राजा बना दिया।छत्तीसगढ़ की संस्कृति में पौष मास की पूर्णिमा तिथि पर घर-घर में दान करने की परंपरा का पालन किया जाता है। इस दिन यदि कोई मांगने आता है तो उसे कुछ न कुछ देकर विदा किया जाता है। दान देने के इस त्यौहार को छेरछेरा के नाम से जाना जाता है।

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