Chhattisgarh Polls 2023: ‘आस्था बदल निरोधक कानून’ की सख्त दरकार ….!
Chhattisgarh Polls 2023: वर्ष 1967 में श्री पी. वेंकट सुब्बैया द्वारा चौथी लोकसभा में एक निजी विधेयक प्रस्तुत किया गया, जो 8 दिसंबर 1967 को लोकसभा में पारित भी हो गया।
chhattisgarh Polls 2023 : भारत में दल-बदल का इतिहास लगभग देश में निर्वाचन प्रक्रिया chhattisgarh Polls 2023के लागू होने के साथ ही लिख गया था। वर्ष 1937 के उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव में मुस्लिम लीग की टिकट पर निर्वाचन सदस्य श्री हाफीज मोहम्मद इब्राहिम दल-बदल कर तत्कालीन कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए थे। तब से लेकर आज तक संसद एवं तमाम प्रदेशों के विधान मंडलों के सैकड़ो सदस्यों ने दल-बदल किया। दुर्भाग्य यह है कि इसमें से कम से कम सौ से ज्यादा सदस्य सत्ताधारी दल के पक्ष में दल-बदल कर मंत्री भी बने। इसी से दुखी होकर वर्ष 1967 में श्री पी. वेंकट सुबैय्या द्वारा चौथी लोकसभा में प्राइवेट मेंबर बिल सदन में प्रस्तुत किया जो 8 दिसंबर 1967 को लोकसभा में पारित भी हुआ। परंतु अंत में वर्ष 1986 में या कानून बना।
आज तमाम संसाधनों के बाद इस दल-बदल विरोधी कानून के प्रावधान इतने लचीले हैं कि उनकी व्याख्या अपनी-अपनी सुविधानुसार अलग-अलग प्रकरणों में की जाती है। यह विडंबना है कि देश की राजनीति में सत्य, निष्ठा, एवं समृद्ध परंपरा का कोई स्थान नहीं बसा हैं। सत्ता प्राप्ति अथवा सत्ता में बने रहने की राजनेताओं की छटपटाहट तथा सत्ता प्राप्ति के लिए किसी स्तर तक नीचे जाने अथवा फिसल जाने की कला अब राजनैतिक पार्टीयों के शीर्ष नेतृत्व से लेकर सामान्य कार्यकर्ताओं तक स्पष्ट परिलक्षित होती है। किन्ही एक नेता के चमत्कारिक राजनैतिक उदभव से बनी क्षेत्रीय राजनैतिक पार्टीयों से लेकर निर्दलीय रूप में निर्वाचित जनप्रतिनिधि सभी में तो लगभग यह तय हो गया कि वह अपने 5 वर्षों के कार्यकाल में अपनी आस्था परिवर्तन तो कम से कम जरूर ही करेंगे।
जब से देश में एकल पार्टी के पक्ष में जनता द्वारा अपने प्रतिनिधि नहीं चुने जा रहे हैं, तब से गठबंधन सरकारों का दौर देश के प्रदेशों एवं संसद में लगातार जारी है। चुनाव पूर्व गठबंधन में तो देश के मतदाता को कोई परेशानी नहीं है परंतु चुनाव परिणाम आने के पश्चात मात्र सत्ता प्राप्ति हेतु किए गए अवसरवादी गठबंधन के कारण देश में राजनैतिक अस्थिरता-पैदा हो रही है। क्योंकि ऐसे अवसरवादी गठबंधनों में विपरीत विचारधारा-वाली तमाम पार्टीयों मात्र सत्ता प्राप्ति के लिए ही एक मंच पर आती है।
पिछली कुछ वर्षों से देश में उत्तर से दक्षिण तक एवं पूर्व से पश्चिम तक दल-बदल ने एक नया रूप ले लिया है कि बहुमत के आधार पर निर्वाचित सरकार के कुछ सदस्यों को तोड़कर विधानमंडलों में पृथक व्यवस्था बनाकर सरकार गिरा दी जाती है और नयी सरकार को गठन कर विधानमंडल के अध्यक्ष दल-बदल कर आए सदस्यों को मान्यता प्रदत कर देते हैं। क्योंकि विधानमंडलों में उनके अध्यक्ष (स्पीकर) को दल-बदल विरोधी कानून में सदस्यों की सदस्यता के बारे में निर्णय लेने के संपूर्ण अधिकार प्राप्त हैं। जिसके कारण देश के अधिकांश राज्यों में राजनैतिक अस्थिरता बनी हुई है और मतदाता अपने द्वारा चुने गये जनप्रतिनिधियों के ऐसे आचरण के कारण स्वयं को ठगा हुआ महसूस करने लगा है और इसी कारण देश में वर्तमान में लागू दल-विरोधी कानून की जगह “आस्था बदल निरोधक कानून” बनाये जाने की मांग उठनी शुरू हो गयी है जिसमें दो तिहाई और तीन चौथाई वाला बच निकलने का कोई रास्ता न हो बल्कि अपने दल के प्रति आस्था का त्याग कर अन्य दल एवं गठबंधन के प्रति आस्था प्रदर्शित करने से उनकी सदस्यता स्वयं ही समाप्त हो जाये एवं ऐसे सदस्यों को आगामी 6 वर्षों के लिए समस्त निर्वाचनों से अयोग्य घोषित कर दिए जाते अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब पिछली सदी के “आयाराम- गयाराम” खेल अब ” बनादल-गयादल” में परिवर्तित हो जाएगा और देश के पिछले सात दशकों के परिपक्व एवं मजबूत लोकतंत्र की जड़े कमजोर हो कर देश की एकता एवं अखंडता को खतरा पैदा करें।