Chhattisgarh News: विलुप्त हो रही परंपरा को बचाये रखने कुम्हार लगा रहे गुहार, अक्षय तृतीया पर लोगों से की अपील
Chhattisgarh News: राजधानी समेत समूचे प्रदेश में कल 10 मई शुक्रवार को अक्षय तृतीया यानी अक्ती त्यौहार मनाया जाएगा। इस मौके पर बच्चे बालक-बालिकाएं पुतरा -पुतरी यानी गुड्डे-गुड्डी का विवाह करते है।
Chhattisgarh News रायपुर। राजधानी समेत समूचे प्रदेश में कल 10 मई शुक्रवार को अक्षय तृतीया यानी अक्ती त्यौहार मनाया जाएगा। इस मौके पर बच्चे बालक-बालिकाएं पुतरा -पुतरी यानी गुड्डे-गुड्डी का विवाह करते है। हाट- बाजार में हफ्ते भर से पुतरा -पुतरी बिकने पहुंच गए हैं। अक्ती त्यौहार एक समय बड़े उल्लास -उत्साह के साथ मनाया जाता था। बच्चों, बालको और बालिकाओं समेत बड़े बुजुर्ग बड़े उत्साह के साथ पुतरा -पुतरी का ब्याह करते थे। पर समय गुजरने के साथ छत्तीसगढ़ का तीज- त्यौहार अब अपना रंग-उत्साह खोने लगा है,जो अब बस औपचारिक रह गया है। जिसकी स्थिति देख बुजुर्गआशंकित है कि यही हालत रहे तो कुछ समय बाद कहीं यह तीज-त्यौहार दम न तोड़ दे।
महज डेढ़ -दो दशक पूर्व राजधानी समेत प्रदेश भर के कुम्हार परिवार अक्ती (अक्षय तृतीया ) के माह -डेढ़ माह पूर्व पुतरा -पुतरी बनाने में जुट जाते थे, वे जानी पहचानी महीन मिट्टी से पुतरा -पुतरी हाथों से तैयार करते थे। परिवार ही छीन के पत्तों से मोर मुकुट बनाता था। मंडप वास्ते छोटे-छोटे मिट्टी के मटके तैयार किए जाते थे। सर्वप्रथम बांस की कड़ियों से पुतले तैयार करते, फिर उसे पर मिट्टी चढ़ाकर आकार देते। फिर सुखाते।उसके बाद कपड़े ताव से परिधान
पहनाते, रंगीन चिकचिक ताव का प्रयोग कर जीवंत रूप देते। महज 15- 20 दिनों में कुम्हार परिवार सैकड़ो पुतरा -पुतरी (जोड़ी) तैयार कर त्यौहारअक्ती के 15 दिन पूर्व बाजार में माल लेकर बैठ जाता।
लोगों से विलुप्त हो रही परंपरा को बचाने की अपील की
फिर प्रतीक्षारत लोग बच्चों को लेकर इन्हें खरीदने बाजार पहुंचते। कुम्हार परिवार की महिलाएं मोहल्ले में घूम-घूम कर टोकरी में पुतरा -पुतरी बेचती। पर आप जैसे सब कुछ बदल गया। पुरानी रंगत ना उत्साह। ना प्रतीक्षा बस औपचारिकता जैसे रह गई है। अब हाथ की जगह सांचे पुतरा -पुतरी तैयार कर सुखाकर दूसरे दिन रंग-रोगन कर अंतिम रूप दे देते हैं। पुरानी परंपरा जैसे विलुप्त होती जा रही है। पुरानी विधा में मेहनत ज्यादा लगती थी- दाम कम मिलता था, पर उत्साह उमंग में कुम्हार परिवार रंग में भंग नहीं होने देता था। पर घाटा सहकर या कमाकर भी परंपरा को सहेजा हुआ था। पर बदलते वातावरण ने काफी कुछ बदल डाला।पुतरा -पुतरी से खेलने उनका ब्याह रचाने एक दूसरे के घर पर ब्याह का न्यौता देने वाले बच्चे आज मोबाइल पर गेम खेलने में माहिर हुए जा रहे हैं। हाट-बाजार से रौनक गायब है। दिनभर इंतजार करने के बाद भी महज 8-10 ग्राहक मिल रहे हैं। ऐसे में कुम्हार परिवार मायूस एवं चिंतित हुआ जा रहा ह, तो बुजुर्ग आशंकित की अगले 10-15 वर्ष में यह अक्ती पर्व मौजूद रहेगा कि नहीं ?