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Chhattisgarh Election 2023 : कांग्रेस,दक्षिण एवं ग्रामीण रायपुर में एकदम नए चेहरे- मतदाताओं को साधना मुश्किल होगा ..!

Chhattisgarh Election 2023 : 

Chhattisgarh Election 2023 : 

Chhattisgarh Election 2023 :   दोनों विधानसभा परिक्षेत्र में जातीय समीकरण

Chhattisgarh Election 2023 : रायपुर कांग्रेस ने दक्षिण रायपुर एवं ग्रामीण रायपुर विधानसभा सीट पर प्रत्याशी बदल दिया है। Chhattisgarh Election 2023 चर्चा है कि दोनों विधानसभा परिक्षेत्र का जातीय समीकरण दोनों घोषित प्रत्याशी के लिए अनुकूल नहीं है, दूसरा दोनों प्रत्याशी मतदाताओं के लिए एकदम नए हैं।

विधानसभा चुनाव 2023 के मददेनजर राजधानी रायपुर की चार सीटों को लेकर कांग्रेस में महीनों से व्यापक मंथन चलते रहा। दोनों विधानसभा के लिए पार्टी के आधा-आधा दर्जन वरिष्ठ कार्यकर्ता अरसे से दावेदारी करते लामबंद रहे। दावेदार इस हद तक आगे बढ़ गए थे कि क्षेत्र में उन्हें समर्थक कार्यकर्ता ; निकटवर्ती मतदाता दोनों शुभकामनाएं देते हुए साथ देने का वादा कर प्रत्याशी घोषणा की बाट जो रहे थे। परंतु देर से प्रत्याशी घोषणा होने पर भी उन्हें (दावेदारों) गहरी निराशा हाथ लगी। दोनों क्षेत्रों के दावेदारों के समर्थक कार्यकर्ता नजदीकी मतदाता अब सकते -सदमे में हैं।

दक्षिण रायपुर विधानसभा से भाजपा का गढ़ बन चुकी है। 4 बार से बृजमोहन अग्रवाल जीतते आ रहे हैं। दक्षिण रायपुर जब शहर विधानसभा में शामिल था तब भी तीन बार चुनाव जीते थे। यानी सात बार बृजमोहन अग्रवाल जीत चुके हैं। अब आठवीं बार फिर प्रत्याशी हैं। उन्हें अपने क्षेत्र में तमाम समुदायों का अच्छा खासा समर्थन है। जिसे लेकर कांग्रेस को उनके बराबर या वजनदार प्रत्याशी नहीं मिलते रहा हैं। सो अब व्यापक मंथन बाद दूधाधारी मठ रायपुर के महंत डॉक्टर राम सुंदर दास को प्रत्याशी बनाया है। जो पामगढ़-जैजेपुर से एक-एक यानी कुल दो बार विधायक चुने जा चुके हैं। 2018 में जौजेपुर से या कहीं ओर से पार्टी ने प्रत्याशी नहीं बनाया था यानी टिकट काट दी थी। परंतु डॉक्टर रामसुंदर दास ने रायपुर विधानसभा से कभी किसी क्षेत्र के लिए टिकट वास्ते दावेदारी नहीं की थी। लिहाजा सीधे-साधे अच्छे धार्मिक,संस्कारवान,व्यक्तित्व,के धनी विद्वान महंत की पकड़ दक्षिण रायपुर विधनसभा में पुरानी बस्ती, समेत उससे लगे दर्जन भर पारा -मोहल्लों तक है। जबकि बड़ी संख्या में विधानसभा के मतदाता लाखेनगर, सदर बाजार,ब्राह्मणपारा,बूढ़ापारा,कालीबाड़ी,बैरनबाजार, छोटापारा, बैजनाथ पारा, गोल बाजार, नयापारा, अश्विनी नगर, सुंदर नगर, मैत्री नगर, में कुशालपुर,चंगोराभाठा में रहते हैं। जिनसे सीधे तौर पर महंत का जुड़ाव नहीं रहा है। ऐसे में महंत अच्छे व्यक्ति होकर भी एक तरह से मतदाताओं के लिए अनजाने से हैं। बेशक महंत वैष्णव धर्मालंबी यानि ब्राह्मण है और उपरोक्त समस्त इलाकों में 10- 12 हजार ब्राह्मण मतदाता होंगे। पर इनके मध्य (ब्राहमण) बृजमोहन अग्रवाल ने तीन दशक में अच्छी पैंठ बना ली है। जिसे यकायक हटाना या तोड़ना बेहद मुश्किल कार्य होगा। रहीं अग्रवाल, बनिया, राजस्थानी, पंजाबी, गुजराती, छत्तीसगढ़िया, मुसलमान या सनातनी की बात इनमें से 65 से 80% मतदाता बृजमोहन को वोट देते रहे हैं। जिन्हें प्रभावित करना या अपने पक्ष में मोड़ना महंत के लिए टेढ़ी खीर होगा। बावजूद अपने अच्छे धीर, गंभीर, धार्मिक, संस्कारी व्यक्तित्व के चलते डॉक्टर महंत अन्य पूर्व प्रत्याशियों के ज्यादा वोट (मत) प्राप्त करेंगे। चुनाव का परिणाम भले जो कुछ हो ?

आप चले ग्रामीण रायपुर विधानसभा की ओर जहां से कांग्रेस ने प्रत्याशी पंकज शर्मा के रूप में बदला तो जरूर है पर यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि उत्तराधिकार सौंपा गया है यानी कांग्रेस एक पिता के सत्ता की बागडोर सुपुत्र को दे दी है। अब इसे बदलाव कहे या परिवारवाद। लोग (मतदाता) अपने-अपने अनुसार सोचने-कहने स्वतंत्र हैं।

ग्रामीण रायपुर विधानसभा से सत्यनारायण शर्मा ने सात बार चुनाव लड़ा सातों बार जीते। मंत्री बने। अब उम्र बढ़ने लगी एवं सुपुत्र पार्टी के मध्य वरिष्ठ कार्यकर्ता के तौर पर गिने जाने लगे तो उन्होंने (पिता) चुनाव न लड़ने की इच्छा पार्टी को जाता दी। शायद (?) दूसरी इच्छा(?) भी व्यक्त की हो। पता नहीं। खैर ! पंकज शर्मा जो जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष भी हैं। विधानसभा क्षेत्र का दावेदारी के दृष्टिकोण से दौरा करते रहे हैं। पर चर्चा है कि सात बार के पूर्व विधायक के सुपुत्र होने की वजह से मतदाता उन्हें जानते तो है। पर यकायक उन्हें प्रत्याशी बना दिया जाएगा। इसका अंदाजा मतदाताओं को फिलहाल शायद नहीं था।

क्षेत्र में चर्चा है कि मतदाता चाहते थे कि जब पूर्व विधायक सत्यनारायण शर्मा ने चुनाव लड़ने से इंकार कर दिया है तो अबकी बार साहू बिरादरी से कोई प्रत्याशी से बनाया जाए। क्योंकि क्षेत्र साहू बाहुल्य है। आधे से ज्यादा मतदाता साहू बनाए जा रहे हैं। यानी क्षेत्र के लोग परिवार विरोध वाली लाइन पकड़ लिए हैं। पंकज को उसी तौर पर देख रहे हैं। इससे पंकज शर्मा के लिए मुश्किल स्थिति बन गई है। ऊपर से मुख्य प्रतिध्दन्दी दल भाजपा ने साहू समाज के प्रदेशाध्यक्ष मोतीलाल साहू को टिकट दिया है। जिनका व्यक्तित्व,कृतत्व अच्छा बताया जाता है। पंकज के लिए यह सामाजिक,जातीय समीकरण अब टेढ़ी खीर बन रहा है। पिताजी के समय की पीढ़ी की साहू बिरादरी बुढाने लगी है। उसके बाद तीन पीढ़ी आ गई है। इन तीन नई पीढ़ी की सोच पूर्व की अपेक्षा (पूर्वजों) बदलते गई। शिक्षा एवं आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होने पर नई पीढ़ी पूर्वजों की नहीं खुद की सुनती- खुद से करती है। खैर पंकज शर्मा फिलहाल तो गैर विवादस्पद हैं। सीधे-सरल मिलनसार, मृदुभाषी भी हैं। पर क्षेत्र में दीगर समाज के मतदाता भी ज्यादा नहीं है। बल्कि कामना हैं कि पिता की विरासत को संभाले।

(लेखक डॉ. विजय )

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