ISRO: ख़त्म होगी अमेरिकी नेटवर्क पर निर्भरता, अब स्वदेशी परमाणु घड़ी तय करेगी कंप्यूटरों-स्मार्टफोन का समय

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ISRO: इंटरनेट पर भारतीय प्रणाली अमेरिकी नेटवर्क पर समय निर्धारित करती है। लेकिन अब जल्द ही हमारी रूबिडियम परमाणु घड़ी हमारे कंप्यूटर और स्मार्टफोन पर समय निर्धारित करेगी।
ISRO बेंगलूरु से : जल्द ही रुबिडियम परमाणु घड़ी हमारे कंप्यूटर और स्मार्टफोन पर समय निर्धारित करेगी। भारत घरेलू कंप्यूटरों और स्मार्टफोन को स्वदेशी ‘रूबिडियम परमाणु घड़ी’ के साथ जोड़ने तैयार है। जून में इसकी शुरुआत हो सकती है।
फिलहाल इंटरनेट पर भारतीय सिस्टम अमेरिका के नेटवर्क पर समय निर्धारित करता है। पर अब जल्द ही हमारी रूबिडियम परमाणु घड़ी हमारे कंप्यूटर- स्मार्टफोन पर समय निर्धारित करेगी। इसके साथ ही अमेरिका, ब्रिटेन, जापान और दक्षिण कोरिया बाद भारत दुनिया का पांचवा ऐसा देश बन जाएगा, जिसका कंप्यूटर नेटवर्क अपनी परमाणु घड़ी से चलेगा। इसरो (बेंगलुरु) ने स्वदेशी परमाणु घड़ी विकसित कर ली है। कारगिल युद्ध के दौरान अमेरिका ने भारत में जीपीएस पहुंच देने से इनकार किया था। उसके बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो ) ने रूबिडियम परमाणु घड़ी खुद बनाने का निश्चय किया। देश में 2013 से 2023 के बीच 9 क्षेत्रीय नेवीगेशन सेटेलाइट सिस्टम (नाविक) उपग्रहों को आयतित परमाणु घड़ी का इस्तेमाल किया गया था। स्वदेशी परमाणु घड़ी का इस्तेमाल पहली बार मई 2023 में लॉन्च नाविक के 10 वें संस्करण में किया गया।
सेकंड के अरबवें हिस्से तक की गणना
परमाणु घड़ी का आविष्कार 1955 में ब्रिटेन की भौतिक विज्ञानी लुईस एसेन ने किया था। परमाणु घड़ियों के आकलन के लिहाज में सबसे सटीक माना जाता है। इनमें सेकंड की अरबवें हिस्से तक की गणना की क्षमता होती है। हर उपग्रह में जो अलग-अलग ऑर्बिट में पॉजीशनिंग बताती है। परमाणु घड़ी में समय समायोजन की जरूरत नहीं पड़ती। इनमें सीजियम परमाणु का इस्तेमाल होता है।
पूरे ब्रह्मांड में एक समान आवृत्ति
क्वार्ट्ज घड़ियों में, क्वार्ट्ज ऑसिलेटर हर घंटे एक नैनोसेकंड (एक सेकंड का एक अरबवां हिस्सा) धीमा हो जाता है। सटीक समय रखने के लिए उन्हें हर घंटे समायोजित करना पड़ता है। परमाणु घड़ी में ऐसे समायोजन की आवश्यकता नहीं होती है। इनमें सामान्यतः सीज़ियम परमाणु का प्रयोग किया जाता है। इसकी विशिष्ट आवृत्ति पूरे ब्रह्मांड में समान है।