छत्तीसगढ़ में सप्ताहिक बाजार, निम्न, निम्न मध्यम व मध्यम वर्ग का ओपन -मॉल
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ई.ग्लोबल न्यूज़ इन की संक्षिप्त रिपोर्ट –
रायपुर। राजधानी समेत समूचे प्रदेश के अंदर तमाम शहरों, कस्बों में निम्न, निम्न-मध्यम एवं मध्यम वर्ग के लिए सप्ताहिक बाजार दशकों से लगते रहा है। जिन्हें हम ओपन मॉल का नाम दे सकते हैं। दरअसल इनमें उपरोक्त वर्ग के लिए सस्ते दामों पर घरेलू उपयोगी उत्पाद, बच्चों के खिलौने, महिला-पुरुषों के प्रसाधनसामग्री, बच्चों -बड़ों के कपड़े, सब्जी-भाजी, मांस-मटन, फल-फूल, मिठाई, पापड़, बड़ी, बिजौरी आदि समेत (बर्फ आइसक्रीम) गरमा-गरम नाश्ता, चाय भी मिल जाती है। जहां घूम आए तो लगता है कि उच्च वर्ग का मॉल कांसेप्ट शायद यहीं कहीं से तो नहीं उपजा। खैर ! रायपुर सप्ताहिक बाजार के विशेष संदर्भ में ई. ग्लोबल न्यूज़ इन की संक्षिप्त सारगर्भित रिपोर्ट —
सप्ताहिक बाजार का नाम सुनते ही निम्न, निम्न मध्यम एवं मध्यम वर्ग का चेहरा खिल जाता है। ठीक कुछ उसी तरह जिस तरह कि उच्च वर्ग का मॉल जाने के नाम पर।
राजधानी में 70 वार्ड हैं। ज्यादातर वार्डों में कालोनियां विकसित हो गई हैं। पर आमतौर पर इन्हीं कालोनियों से लगे दशकों पुराने मोहल्ले-पारा आज भी मौजूद हैं। नाम भी नहीं बदला है। इनमें 40-50 वर्षों से बकायदा नियमित साप्ताहिक बाजार लगते आ रहा है। इसी तरह प्रदेश के अंदर के शहर-कस्बों में भी राजधानी में विभिन्न इलाकों में सप्ताहिक बाजार अलग-अलग दिन लगता है। यानी हफ्ते के सातों दिन। दरअसल हर इलाके का एक दिन सप्ताहिक बाजार तय होता है कई जगह तो 2 दिन। जहां उपरोक्त वर्ग के लोग परिवार समेत पहुंच यथासंभव सस्ते दामों पर जरूरी चीजें, उपयोगी सामग्री, खाने-पीने की सामग्री वस्तुएं, सब्जी -भाजी आदि खरीदते हैं।
साप्ताहिक बाजारों में क्रमशः घरेलू उपयोगी प्लास्टिक के उत्पाद मसलन साबुनदानी, पीढ़ा, झाडू, कंघी, सूपा, खिलौने, डिब्बे मसाला रखने, बाल्टी आदि। महिला-पुरुषों को प्रसाधन सामग्री – चूड़ी, कंगन, बिंदी, करधन, अंगूठी, हार, कंघी -कंघा, आईना, सेविंग किट, कड़ा, साबुन, घड़ी, ब्रेस्ट आदि बच्चों के खिलौने गुड्डे, गुड़िया, वाला बेट-बॉल, पशु-पक्षी जानवरों के प्लास्टिक प्रतिरूप, गुब्बारे आदि। बच्चों के कपड़े- खासकर छोटे, बड़ों के अण्डर गारमेंट्स, जूते-चप्पल, लकड़ी के उत्पाद पीढ़ा, चकला, बेलन, खिलौने, डिब्बे, कुर्सी-टेबल आदि। सभी प्रकार के कच्ची साग-भाजी, ताजा मांस-मटन, मछली (ताजी), पापड़, बिजौरी, बड़ी, अन्य मैदा-बेसन के कई किस्मों में बने सूखे खाद्य उत्पाद, फल-फूल,आर्टिफिशियल गहने,पूजन सामग्री, किराने का समान, छाते-बरसाती यानी मौसमी उत्पाद चीजें भी सस्ते दामों पर उपलब्ध रहती हैं।
उपरोक्त आयटमों में से क्या कुछ खरीदना है। इसकी लिस्ट वर्ग विशेष दिमाग में बनाकर आता है। सस्ते तथा जेब में कुछ अधिक पैसा होने पर ग्राहक तय सूची के अतिरिक्त भी खरीदी लगे हाथ (अच्छी लगने) लेता है। हर ग्राहक या परिवार आमतौर पर घंटे- डेढ़ घंटे का समय निकाल कर बाजार पहुंचता हैं। इस बीच बाजार में विभिन्न प्रकार की सस्ती मिठाई लड्डू, करी लाडू, पेड़ा, बताशा, लाई, मिक्चर आदि का आनंद। तो गरमा-गरम समोसा, भजिया, गुलगुला भजिया, चाय का मजा, आइसक्रीम बर्फ गोला,आदि का आनंद उठाता है। नाश्ता-पानी, मिठाई तक सस्ते दरों पर मौजूद रहती हैं।
छत्तीसगढ़ में राजधानी समेत तमाम शहरों- कस्बों में लगने वाले साप्ताहिक बाजारों की समयावधि अपरान्ह 2 से रात 9 बजे तक होती (रहती) है। जिसमें शुरुआती 6 घण्टों में अच्छी- खासी भीड़ देखने को मिलती है। कई जगह बच्चे के लिए छोटे झूले तक होते हैं। बाजार में भ्रमण के दौरान मोहल्ले-कॉलोनी वार्डवासी, मित्र, जान-पहचान वाले मिल जाते हैं, जो अलग आनंद बढ़ा देता हैं।
साप्ताहिक बाजारों में दुकान लगाने वाले आमतौर पर ग्रामीण इलाकों, कस्बाई क्षेत्रों के छोटे-फुटकर व्यापारी होते हैं। जो अलग-अलग दिनों में अलग-अलग जगह जाकर सप्ताहिक बाजार का हिस्सा बनते हैं। तमाम फुटकर व्यापारी, दुकानदार, थोक वालों से माल खरीद कर लाते हैं। जबकि सब्जी-भाजी, मांस मटन, बिजौरी बड़ी वाले थोक एवं स्वयं द्वारा तैयार उत्पाद लाते हैं। खैर जो हो सप्ताहिक बाजार पचासों वर्षों से फल-फूल रहा है। ओर इसके ग्राहक बंधे बंधाए होने के साथ अनियमित भी होते हैं। सप्ताहिक बाजार लगाने वाले एक-दूसरे से परिचित, मित्रवत व्यवहार करते हैं। जिससे उनमें जुड़ाव रहता है। इधर हर आम परिवार सप्ताहिक बाजार का इंतजार करता रहता है। किराया पर रह कर गुजर-बसर करने वाले विद्यार्थी, कर्मी, (महिला-पुरुष दोनों) भी सप्ताहिक बाजार जाते हैं।