छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023 : छोटे दल निर्दलीय या नोटा कुछ नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं …!

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023 :

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छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023 : विधानसभा चुनाव में दोनों प्रमुख दलों भाजपा -कांग्रेस के साथ ही नोटा का अपना प्रभाव हैं

छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023 : प्रदेश में विधानसभा चुनाव में दोनों प्रमुख दलों भाजपा कांग्रेस के साथ छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव 2023  दर्जन पर छोटी-मोटी मंझोली राजनीतिक दल किस्मत अजमा रहे हैं। छोटे मंझोले दलों के द्वारा अगर दर्जन- डेढ़ दर्जन विधानसभा क्षेत्रों में अगर चार से पांच प्रतिशत भी वोट बटोरा जाता है। चुनाव परिणाम पर असर पड़ सकता है।

यो तो छत्तीसगढ़ का मतदाता सामान्य तौर पर कांग्रेस या भाजपा को वोट देता है। कई बार कुछ क्षेत्रों में मतदाता कांग्रेस को तो कई बार वे ही मतदाता भाजपा को वोट देते हैं। आमतौर पर निर्दलीयों या छोटी पार्टियों के प्रत्याशियों को नगण्य प्रायः या एक से डेढ़ प्रतिशत वोट मिल पाते हैं। ऐसे में वे परिणामों को प्रभावित नहीं कर पाते। खासकर उन जगहों पर जहां बड़े अंतर से चुनाव नतीजा आता है।

परंतु इस बार राज्य में दर्जन भर के लगभग छोटे-मंझोले दल चुनाव लड़ रहे हैं। जिसमें बसपा, गोगंपा, दोनों का कई जगहों पर संयुक्त रूप से चुनाव लड़ना, छसपा, शिवसेना, हमर राज, आम आदमी पार्टी, निर्दलीय, वामपंथी पार्टी, छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस (जोगी) आदि दल शामिल हैं। इन दलों में से कुछ दल कुछ स्थानों पर थोड़ी -बहुत पकड़ रखते हैं। या कि मतदाता को उनका प्रत्याशी दोनों प्रमुख दलों की तुलना में आकृष्ट करता है।

उपरोक्त स्थिति में अगर ये दल किन्हीं स्थानों पर चार से पांच प्रतिशत आसपास वोट बटोर ले जाते हैं। यानी कुछ हजार वोट तो यह स्थिति परिणाम पर प्रभाव डाल सकती है। वजह दर्जन से डेढ़ दर्जन ऐसे विधानसभा क्षेत्र है। जहां पिछले चुनाव में जीत-हार का अंतर भाजपा -कांग्रेस में हजार से कम या 5 हजार से कम रहा है। ऊपर से नोटा। यानी इनमें से कोई नहीं का विकल्प। जो दोनों प्रमुख दलों के लिए गले में हड्डी है। जिसे ना तो निगल पा रहें ना ही उगल पा रहे है। कई विधानसभा परिक्षेत्रों में नोटा को तीसरे स्थान मिला है। तो आधा दर्जन इलाकों में नोटा का वोट प्रतिशत हार-जीत के अंतर के प्रतिशत से कहीं ज्यादा है। साफ है कि छोटा दल या नोटा या नामी निर्दलीय कुछ हजार वोट बटोर कर प्रमुख दलों को परेशान कर सकता है। चर्चा है कि यही वजह है कि दोनों प्रमुख दलों आमतौर पर चुनावी सभा या चुनाव प्रचार के दौरान छोटे -मोटे राजनैतिक दलों या निर्दलीय को अंदर से तो गंभीरता से ले रहें हैं। पर बाहर उन्हें नजरअंदाज कर रहें हैं।

(लेखक डॉ. विजय )

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