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Bollywood: कुछ ऐसे पुराने सिंगर जिनके पिता भी किया करते थे गायिकी

सरदार मलिक/अनु मलिक

संगीतकार सरदार मलिक ने संगीतकार के तौर पर अपने करियर की शुरुआत साल 1949 में रिलीज फिल्म ‘राज’ से की लेकिन सही मायने में उन्हें पहचान मिली साल 1953 में रिलीज फिल्म ‘लैला मजनू’ और ‘ठोकर’ से। सरदार मालिक ने अपने करियर में करीब 600 गीतों की रचना की। उनके बेटे अनु मलिक ही मुख्य रूप से अपने पिता की संगीत विरासत को संभाले हुए हैं। इस पीढ़ी में तीसरे संगीतकार के तौर पर डब्बू मालिक के बेटे अमाल मालिक भी हिन्दी सिनेमा के जाने माने संगीतकार हैं।

श्रवण राठौड/संजीव-दर्शन

संगीतकार नदीम और श्रवण की जोड़ी ने 90 के दशक में एक से बढ़कर एक हिट गाने दिए। पहली बार दोनों ने फिल्म ‘जीना सीख लिया’ में संगीत दिया था और ‘आशिकी’ से उन्हे जबरदस्त सफलता मिली। श्रवण राठौड के बेटे संजीव और दर्शन ने संजीव दर्शन के नाम से अपने करियर की शुरुआत अजय देवगन की फिल्म ‘ये रास्ते हैं प्यार के’ से साल 2001 में की।

एस डी बर्मन/आर डी बर्मन

भारतीय सिनेमा के संगीत के क्षेत्र मे सचिन देव बर्मन (एस डी बर्मन) का बहुत बड़ा योगदान रहा है। एस डी बर्मन ने संगीतकार के तौर पर अपने करियर की शुरुआत बांग्ला फिल्मों से साल 1937 मे की और चार दशक तक उनके संगीत का जादू चलता रहा। एक पार्श्वगायक के रूप में एस डी बर्मन ने कई फिल्मों में गीत भी गाए। उनके बेटे आर डी बर्मन भी मशहूर संगीतकार रहे। आर डी बर्मन ने 1960 से लेकर 1990 के दशक था 331 फिल्मों के लिए संगीत की रचना की।

रोशन/राजेश रोशन

संगीतकार के रूप में रोशन लाल नागरथ ने अपने करियर की शुरुआत केदार शर्मा की फिल्म ‘नेकी और बदी’ से साल 1949 में की और साल 1973 तक संगीतकार के तौर पर सक्रिय रहे। उनके बेटे राजेश रोशन भी संगीतकार के तौर पर काफी सफल रहे। संगीतकार के तौर पर राजेश रोशन को सबसे पहला ब्रेक महमूद की फिल्म ‘कुंवारा बाप’ में साल 1974 मे मिल। उनकी मां इरा रोशन भी गायिका रही हैं और संगीत की प्रारम्भिक शिक्षा राजेश रोशन ने अपनी मां से ही ली।

चित्रगुप्त/आनंद मिलिंद

चित्रगुप्त ने कई यादगार फिल्मों के लिए संगीत की रचना की। भोजपुरी सिनेमा में भी वह सक्रिय रहे। चित्रगुप्त ने साल 1946 में फिल्म ‘फाइटिंग हीरो’ से संगीतकार के रूप में अपने करियर की शुरुआत की और साल 1988 तक सक्रिय रहे। उनके बेटे आनंद और मिलिंद हिन्दी सिनेमा के कामयाब संगीतकार रहे हैं। आनंद मिलिंद ने साल 1984 में फिल्म ‘अब आएगा मजा’ से संगीतकार के रूप में अपने करियर की शुरुआत की और ‘कयामत से कयामत तक’ के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा।

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