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बिहार चुनाव 2025: बदली हुई कांग्रेस ने RJD को दी सीधी चुनौती, CM फेस और सीट बंटवारे पर अड़ी पार्टी

India Alliance Seat Sharing in Bihar: बिहार की राजनीति में कांग्रेस पार्टी 2025 के चुनाव में 2020 से एकदम अलग रुख अपना रही है। अब वह आरजेडी के साथ आंख में आंख मिलाकर बात कर रही है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी की बिहार में बढ़ती सक्रियता इसका मुख्य कारण है। जनवरी से जून 2025 के बीच वह 6 बार बिहार का दौरा कर चुके हैं, और अपनी ‘वोटर अधिकार यात्रा’ के दौरान 17 दिनों तक लीड रोल में रहे। इस दौरान तेजस्वी यादव पहली बार उनके पीछे चलते दिखे।

 

पटनाः 2025 में कांग्रेस की स्थिति 2020 से बदली हुई है। वह राजद से आंख में आंख मिला कर बात कर रही है। राहुल गांधी बिहार में लगातार सक्रिय हैं। जनवरी 2025 से जून 2025 के बीच ही वे 6 बार बिहार आ चुके थे। वोटर अधिकार यात्रा के दौरान वे 17 दिनों तक बिहार में रहे। इन 17 दिनों तक राहुल गांधी लीड रोल में रहे। तेजस्वी यादव पहली बार राहुल गांधी के पीछे-पीछे घूमे। कांग्रेस में इतना जोश है कि अब वो तेजस्वी के सीएम फेस पर भी एतराज जताने लगी है। सीट बंटवारा के लिए उसने राजद को अल्टीमेट तक दे दिया है। ये बदली हुई कांग्रेस नजर आ रही है।

2025 में कांग्रेस के बड़े नेता लालू को नहीं दे रहे भाव

कांग्रेस के बड़े नेता अब लालू यादव को भी भाव नहीं दे रहे। अशोक गहलोत, भूपेश बघेल, जयराम रमेश और अधीर रंजन चौधरी चुनाव प्रबंधन के लिए पटना पहुंच चुके हैं। लेकिन उन्होंने लालू यादव से मुलाकात नहीं की। भूपेश बघेल ने तो सीधे-सीधे तेजस्वी यादव को चुनौती ही दे डाली। उन्होंने कहा, तेजस्वी खुद को अपनी ओर से सीएम फेस कह रहे हैं, लेकिन सीएम का चेहरा उनकी पार्टी का हाईकमान घटक दलों की सहमति से तय करेगा।

इस बार जीतने वाली सीटों पर जोर

2020 में कांग्रेस, राजद के रहमोकरम पर निर्भर थी। राजद ने कांग्रेस को 70 में 45 सीटें ऐसी दी जहां वह पिछले चार चुनावों से वह जीत नहीं पाई थी। इसके अलावा 20 सीटें ऐसी थी जहां 20 साल में वह कभी नहीं जीती। तब वाम दलों ने भी कांग्रेस को दबाया था। कांग्रेस की कुछ परंपरागत सीटें वाम दलों को मिल गई थीं। इस बार कांग्रेस ने अपने लिए पहले से ही 36 जिताऊ सीटों की पहचान कर ली है।

 

पिछली बार प्रियंका नहीं आयीं, इस बार 6 सभाएं करेंगी

2020 में विधानसभा चुनाव के पहले चरण और दूसरे चरण में राहुल गांधी ने सिर्फ 2 रैलियां कीं। तीसरे और अंतिम चरण में राहुल गांधी ने 4 रैलियां कीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों के देखते हुए यह संख्या बहुत छोटी थी। उम्मीदवारों की लगातार मांग के बाद भी प्रियंका गांधी चुनाव प्रचार के लिए बिहार नहीं आयीं। निराश कांग्रेस उम्मीदवारों की हालत ये हो गयी थी कि उन्हें रैलियों के लिए तेजस्वी यादव से चिरौरी करनी पड़ी। इस बार बिहार में राहुल गांधी की छह सभाएं प्रस्तावित है। प्रियंका गांधी भी पांच से छह सभाएं करेंगी।

उम्मीदवारों की घोषणा में देरी से चुनाव पर असर

2025 में पहले चरण के नामांकन की शुरुआत 10 अक्टूबर से हो चुकी है। लेकिन 10 अक्टूबर तक महागठबंधन का सीट बंटवारा फाइनल नहीं हो सका है। पिछली बार उम्मीदवारों की घोषणा में देरी से तैयारी का समय नहीं मिला था। पहले चरण के चुनाव के नामांकन की अंतिम तारीख से एक दिन पहले प्रत्याशियों के नाम घोषित किये गये। कांग्रेस ने आंतरिक गुटबाजी और संभावित असंतोष से निपटने के लिए यह देरी की थी। लेकिन इस कोशिश में उम्मीदवारों को हड़बड़ी में आधी अधूरी तैयारी के साथ चुनाव में उतरना पड़ा। टिकट को लेकर भी असंतोष था। पूर्व केन्द्रीय मंत्री और पार्टी के वरिष्ठ नेता केके तिवारी ने सोनिया गांधी को पत्र लिख कर टिकट वितरण में धांधली का आरोप लगाया था। उन्होंने चुनाव प्रबंधन से जुड़े नेताओं की जांच कराये जाने की मांग की थी।

2020 में विवादित प्रत्याशी से भाजपा को मिला था मुद्दा

कांग्रेस ने जाले विधानसभा क्षेत्र से विवादित मशकूर रहमानी को टिकट दिया था। रहमानी अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्र नेता थे। 2018 में जब वे विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष थे तब उन पर अपने कमरे में जिन्ना की तस्वीर टांगने का आरोप लगा था। रहमानी पर कई और गंभीर आरोप लगे थे। जैसे ही रहमानी को कांग्रेस उम्मीदवार बनाया गया भाजपा को एक बड़ा मुद्दा मिल गया। उसने कांग्रेस नेताओं पर जिन्ना समर्थक होने का आरोप लगाया। इस मुद्दे के कारण कांग्रेस को नुकसान झेलना पड़ा। जाले सीट पर भाजपा के जीवेश कुमार मिश्र ने कांग्रेस को मशकूर रहमानी को करीब 26 हजार वोटों से हरा दिया।

क्या इस बार निष्पक्ष होगा टिकट वितरण?

2020 में टिकट वितरण को लेकर कांग्रेस नेताओं पर पक्षपात का आरोप लगा था। कांग्रेस प्रचार समिति के अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह, पूर्व मंत्री मदन मोहन झा, और पूर्व स्पीकर सदानंद सिंह टिकट स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्य थे। इन नेताओं पर टिकट वितरण में गड़बड़ी के आरोप लगे थे। राहुल गांधी बिहार के नेताओं की कार्यशैली से बेहद नाराज हो गये। इस नाराजगी में उन्होंने चुनाव प्रबंधन से जुड़ी पूरी टीम को ही अचानक बदल दिया। यहां तक कि तत्कालीन चुनाव प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल को भी संट कर दिया गया। हालात से निबटने के लिए राहुल गांधी ने अपने करीबी रणदीप सिंह सुरजेवाला को चुनाव अभियान संभालने के लिए पटना भेजा था।

सक्षम उम्मीदवार नहीं उतारने से मिली हार

शरद यादव की पुत्री मृणालनी यादव को बिहारीगंज से टिकट दिया गया था। शत्रुघ्न सिन्हा के बेटे लव सिन्हा को बांकीपुर से टिकट दिया गया था। पूर्व सांसद और बाहुबली नेता काली पांडेय को कुचायकोट से उम्मीदवार बनाया गया था। मृणालिनी और काली पांडेय एक दिन पहले ही कांग्रेस में शामिल हुए थे। काली पांडेय इससे पहले लोजपा में थे। एक और विवादित नेता प्रवीण सिंह कुशवाहा को पटना साहिब से उम्मीदवार बनाया गया था जब कि वे भागलपुर के रहने वाले थे। तब विरोधी दलों ने उन पर एक बहुचर्चित अपहरण से जुड़े होने के आरोप को जोर शोर से उछाला था। कांग्रेस के ये चारों उम्मीदवार चुनाव हार गये थे।

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