दो डॉक्टर के के बीच में दर्द में तड़पता रहा मासूम, इस वजह से हुआ बवाल
रायपुर न्यूज : डॉक्टरी का पेशा सेवाभाव का होता है। इसे प्रतिष्ठा से जोड़कर मरीज का इलाज नही किया जा सकता। चिकित्सक का कार्य मरीज के त्वरित इलाज को प्राथमिकता देना होता है। बाकी चीजें आती हैं तो उनसे बाद में सुलझाया जा सकता है। पर शासकीय चिकित्सालयों में इस अघोषित नियम या समझ की कमी अक्सर देखने को मिलती है। जिसका नतीजा निर्दोष मरीज को झेलना पड़ता है। जो चिकित्सक को धरती का भगवान समझ बड़ी आस लेकर सुदूर (बहुत दूर) से आते हैं। अंबेडकर अस्पताल भी इससे अछूता नही है।
दरअसल सोमवार 8 जनवरी को महासमुंद परिक्षेत्र से एक 8 वर्षीय मासूम बच्चे को इलाज के लिए अंबेडकर अस्पताल के ट्रामा सेंटर (आपातकाल) लाया गया था। जहां बच्चे को यथासंभव तुरंत देखने से नजर अंदाज करने से उपरोक्त मुददा (चिकित्सा पेशा सेवाभाव) फिर उभर कर आया है।
बताया जा रहा है कि एचओडी डा. देव प्रिया लाकरा मरीज देखने ट्रामा सेंटर (आपातकाल) गई। तो उन्होंने उक्त बच्चे को पैर फैक्चर के कारण स्ट्रेचर पर तड़पते पाया। शायद महिला चिकित्सक का मातृत्व प्रेम स्वाभाविक तौर पर यहां झलका। उन्होंने कक्ष में देखा तो सीएमओ नहीं थे। स्टाफ ने बताया वॉशरूम गए हैं। वे वहीं ठहर गई। आधे घंटे बाद सीएमओ डा. विनय वर्मा पहुंचे। तो उन्होंने डा. वर्मा से कहा कि वॉशरूम से आने में बड़ी देर कर दिए डा.वर्मा, बच्चा आधे घंटे से तड़प रहा है। पहले इसे इलाज के लिए भेज दो। उनकी इस बात पर डॉक्टर विनय वर्मा भड़क गए। कहने लगे- वे आधा घंटा या एक घंटा वॉशरूम में रहे, वे बोलने वाली कौन होती हैं। वे बदतमीजी भी करने लगे इस पर डॉक्टर लाकरा ने कहा कि गैलरी में बहस करना ठीक नहीं है। ऐसा बोलकर वे ओपीडी में मरीजों का इलाज करने चली गई। उधर डा. वर्मा ने अधीक्षक को पत्र लिखकर, डा. लाकरा पर छोटे कर्मियों से बदतमीजी करने, गाली-गलौज करने का आरोप लगाया है धक्का देने का आरोप भी लगाया है। घटना बाद डा. वर्मा ने शिकायत पत्र मीडिया में वायरल करवाया साथ ही सीसीटीवी फुटेज भी उपलब्ध करवा वायरल किया। उधर जानकारों का कहना है कि इस तरह पत्र या सीसीटीवी फुटेज वायरल करना अनुशासनहीनता की श्रेणी में आता है। इस पर विभाग कार्रवाई कर सकता है।
बहरहाल डीएमई डा. विष्णु दत्त ने कहा है कि महिला चिकित्सक एवं सीएमओ के बीच विवाद की जानकारी उन्हें मिल गई है। अधिष्ठाता (डीन) को समिति बनाकर जांच के लिए कहा जाएगा। ताकि दोषी के खिलाफ कार्रवाई की जा सके। उधर अन्य मरीजों, परिजनों का आरोप है कि ट्रामा में त्वरित इलाज नहीं मिलने पर, सक्षम परिजन मरीज को कई बार निजी अस्पताल मजबूरी में ले जाते हैं। जिनका स्पष्ट कहना होता है कि मरीज की जान को देखेंगे कि पैसा को। उनका यह भी कहना है कि ट्रामा में सीनियर, जूनियर चिकित्सक का विवाद नया नहीं है। इसका सीधा असर मरीज पर पड़ता है। जबकि मरीज पूर्णतः निर्दोष होता है। कुछ परिजन तो यह तक कहते हैं कि ट्रामा के कुछ चिकित्सक ऐसे पेश आते हैं जैसे कि एहसान कर रहे हो। जबकि उनकी नौकरी मरीजों के चलते हैं।