सोशल मिडिया में बने दोस्त, समाज और देश के लिए खतरा

कथित प्रेम विवाह नई पीढ़ी को गलत संदेश दे रहे हैं, पाकिस्तान-भारतीय विवाहिता बच्चेदार महिलाओं के रूख

रायपुर। पाकिस्तान से भागकर भारत आई विवाहिता चार बच्चों की मां ने एक भारतीय युवक से तो इधर भारत से बकायदा गुपचुप वीजा बनवाकर वैधानिक रूप से पाकिस्तान पहुंची विवाहिता दो बच्चों की मां ने एक पाकिस्तानी युवक से निकाह कर लिया है।

इन दिनों देशभर के मीडिया समूहों में इन दोनों मामलों की व्यापक चर्चा जारी है। दोनों को अच्छी खासी जगह इलेक्ट्रॉनिक प्रिंट मीडिया दे रहे हैं। सर्वप्रथम इनमें समानता देखें- दोनों घर से बिना बताए भागी। दूसरा दोनों विवाहित हैं। तीसरा दोनों क्रमश 4-2 बच्चों की मां हैं। चौथा दोनों मोबाइल के माध्यम से अपने कथित प्रेमियों से जुड़ी। पांचवा दोनों के प्रेमी अविवाहित हैं। छठवां दोनों मामले में प्रेमी कथित विवाहित प्रेमिकाओं से उम्र में छोटे हैं। सातवां दोनों के घर वाले (परिवार) स्वाभाविक तौर पर बेहद नाराज हैं।

शादी हो या निकाह व्यक्तिगत मामला होता है। पर अगर शादीशुदा महिला या पुरुष जब अविवाहित युवक-युवती से (पहले के साथ रहते हुए) शादी कर लेते हैं तो बेशक यह व्यक्तिगत नहीं सामाजिक मुद्दा बन जाता है। वजह- शादी हो जाने पर परिवार नामक संस्था से जुड़ना। इसलिए ऐसे मामलों में समाज को दखलंदाजी करने का नैतिक, सामाजिक अधिकार है। जो प्रत्येक समाज को समाजिक स्थिरता के लिए मिला है। परिवार जहां रहते हुए सब मिल जुलकर पारिवारिक हित में कोई निर्णय करते हैं। उपरोक्त स्थिति के साथ विवाहित महिला-पुरुष के पहले से बच्चे हो तो पारिवारिक जिम्मेदारियां कानूनन बढ़ जाती हैं। वे समाज का अभिन्न अंग होते हैं। उनकी हर गतिविधियों समाजिक कहीं (या मानी) जाएगी न कि व्यक्तिगत, यह कुतर्क होगा कि व्यक्तिगत मामला है। सनद रहे पहले वाले पति-पत्नी से तलाक नहीं हुआ हैं। इस वास्ते सामाजिक है।

रही बात प्यार की एवं कथित प्यार की। दो अविवाहित युवक-युवतियों में प्यार होता है। अगर कोई एक या दोनों भी अलग-अलग जगह विवाहित हो तो होने वाला प्यार-प्यार नहीं कथित प्यार कहलाता है। लिहाजा उपरोक्त दोनों शादी प्रेम विवाह नहीं बल्कि कथित प्रेम विवाह कहा (माना) जाएगा। यहां कथित प्यार के शाब्दिक अर्थ को कुतर्क कहकर खारिज नहीं किया जा सकता। वजह शादीशुदा महिला-पुरुष परिवार का महत्वपूर्ण अंग होते हैं। बच्चे रहने से यह (परिवार) संपूर्णता प्राप्त कर जाता है। रिश्ते-नातेदार बन जाते हैं। कुल जमा सामाजिक जिम्मेदारियों का आवरण गंभीरता वास्तविकता के साथ ओढ़ना होता है। इसके इतर (अलग) जाकर दूसरी शादी का निर्णय बाकियों परिवार एवं रिश्तेदार के अधिकारों का हनन है। उपरोक्त दोनों मामलों को जायज बताना कुतर्क एवं परिवार नामक संस्था को नष्ट (खत्म) करता है। इससे समाज छिन्न-भिन्न होता है। और कोई भी महिला-पुरुष समाज बगैर रह नहीं सकता। यहां समाज का आशय परिवार के साथ-साथ दोस्त, यार, जान-पहचान, कार्यस्थल, सुख-दुख, लेन-देन दीगर व्यक्ति से करना भी समाज से बाहर अकेला व्यक्ति भी नहीं रह सकता। दोनों उपरोक्त मामले नई पीढ़ी को गलत रास्ता दिखा (संदेश) रहे हैं।

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