आमजन अब घरों पर सब्जी उगाएं.. !

थाली में सब्जी की संख्या के साथ मात्रा भी घटी दाम सामान्य नहीं होंगे

रायपुर। चालू माह का तीसरा हफ्ता बीत रहा है। बारिश का सीजन आधा गुजर चुका है। परंतु 4-5 माह से बढ़े सब्जी-भाजी के दाम अब तक सामान्य नहीं हुए हैं। ऐसे हालात के लिए आमजनों को अब इससे लड़ने खुद कमर कस लेनी होगी। अन्यथा उनकी थाली की सब्जी की संख्या तो कम हुई ही है- मात्रा ( भार) भी घट जाएगी और फिर एक दिन —!

सनद रहें बाजार में कोई भी सब्जी आनी बंद नहीं हुई है हर थोक विक्रेता बस यही कह कर पल्ले झाड़ लेता है की आवक कम है, उत्पादन मौसम के चलते घटा है। माल भाड़ा चार्ज (दर) बढ़ा है लिहाजा सब्जी-भाजी के दाम बढ़े हुए हैं। जब तक कि नई फसल नहीं आ जाती स्थिति करीबन यही बनी रहेगी। दूसरे शब्दों में गरीब, आमजन की जेब कटती रहेगी। थोक सब्जी वाले यह कभी नहीं बताते कि उन्हें कितना फायदा होता है। या कि उन्होंने कितनी धन-संपदा सब्जी बेचकर (दलाली) बना ली है।

वे यह भी नहीं बताते कि छोटे सब्जी उत्पादकों को कितना लाभ हो रहा है उनकी वित्तीय स्थिति पिछले वर्षों की तुलना में सुधरी है या नहीं। यह कुछ नहीं बताते। वास्तविक उत्पादक ताकता रह जाता हैं। थोक विक्रेता और दलाल मोटी रकम बना लेते हैं।

छत्तीसगढ़ी में एक प्रसिद्ध कहावत हैं -“कब बबा मरेगा कब बड़ा खाने मिलेगा”। यानी गरीबी इतनी है कि हाट बाजार से बड़ा लेकर नहीं खा सकते बाबा (दादा) के मरने का इंतजार करो तब बड़ा मिलेगा। यह कहावत सब्जी मंडी व्यवस्था को ले आम उपभोक्ता (ग्राहक ) पर सदा ठीक बैठती है। हर साल का रोना। हर साल कहना स्थिति-सुधरने नया माल आते ही दाम उतर जायेगे। पर यह कोई नहीं बताता कि माल आएगा यह तो तय है पर कितने दिन भाव उतरा रहेगा कम रहेगा ? कुछ दिन बाद फिर वही ढाक के तीन पात वाली कहावत करीब-करीब साल भर दर बढ़ा रहेगा।(डेढ़ -दो छोड़ )

सारा माल कोल्ड स्टोर करके कमाई की जा रही है। बम्फर स्टाक आने या कोल्ड स्टोरेज फुल (भरा ) होने की दशा में मजबूरन बाहर रखने की नौबत आने पर कम दर पर ही सही ( बोले तो समुचित) बाजार में खफा दो। ठीक वैसे ही जैसा कि बड़े शहर में माल,स्टोर में कोई सेल लगता है ओर व्यापारी, कारोबारी विज्ञापन जारी करता है कि—- लुट गया मर गया -बिक गया अतः औने -पौने भाव या घाटे में सब माल बेच रहा हैं।

वक्त आ गया है कि गरीब, आमजन अब घरों पर चार- छह साधारण गमलो में मिट्टी भरकर सब्जी उगाए। या लेंटर वाली छतों पर क्यारी बना सब्जी लगाए। कम से कम माह में 8-10 दिन की घर की सब्जी खाकर कुछ पैसे लूटने से बचाए या लूटाने से बचे। यही एक चारा रह गया हैं जो आमजनों की थाली में सब्जी का स्वाद कुछ हद तक बरकरार रख सकता है। अगर ऐसा कोई उपाय लोग कर लें तो थोक वाले एवं दलाल खुद शायद मजबूरन कुछ सोचे। ध्यान रखें आप लाख चीखे चिल्लाए -कि सब्जी-भाजी का भाव आसमान पर चढ़ा है। 100-150 प्रतिशत वृध्दि चल रही है। लूट मची है। पर आपको कोई सुनने वाला नहीं है। न ही कभी कोई कदम उठाया जाएगा। क्या कभी नहीं पढ़ा-सुना है कि सब्जी दलाल थोक सब्जी वाला जमाखोरी, लागत से 25-30 गुना बेचने में और उसके अंदर हुआ है क्या कभी सीबी सीआईडी आदि ने उनके यहां छापा मारा है

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