नूंह हिंसा ने बदली पश्चिमी उत्तर प्रदेश की सियासी समीकरण

Nuh Violence :हरियाणा सरकार ने अवैध कब्ज़ाधारियों के आशियानों पर बुलडोजर चलाने के बाद वहां का माहौल गर्म हो गया है। नूंह हिंसा के कारण पश्चिम यूपी की सियासत नया करवट ले रही है। जमीनी मुद्दे गायब हो गए और भावनात्मक पारा चढ़ रहा है। सियासी गलियारों में इसे 2013 मुजफ्फरनगर दंगों के दस साल बाद लिखी गई नई स्क्रिप्ट बताया जा रहा है। नूंह दंगों का असर कहीं न कहीं उत्तर प्रदेश के राजनीतिज्ञ समीकरण पर भी पड़ता दिख रहा है।

सियासी गलियारों में इसे 2013 मुजफ्फरनगर दंगों के दस साल बाद लिखी गई नई स्क्रिप्ट बताया जा रहा है, वहीं हरियाणा की सीमा से सटे बागपत, शामली, अलीगढ़, मथुरा, गौतमबुद्ध नगर और सहारनपुर समेत कई अन्य जिलों में जाट-गुर्जर समुदाय में बेचैनी बढ़ी है, जिसका असर लोकसभा चुनावों पर पड़ेगा।

रालोद मुखिया जयन्त चौधरी और जमीयत-ए-उलमा के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने इसे सोची समझी साजिश करार दिया है, वहीं हिन्दू संगठनों में उबाल है। उधर, बवालियों के खिलाफ हरियाणा सरकार ने यूपी के सीएम योगी का बुलडोजर फार्मूला अपनाया, जिसका संदेश दूर तक पहुंचेगा।

मुजफ्फरनगर दंगों की याद दिला गई नूंह की हिंसा
कहीं कैराना पलायन जैसी स्क्रिप्ट तो नहीं नूंह से निकलकर गुरुग्राम समेत अन्य स्थानों पर घर बनाने वालों की कहानी में कैराना पलायन खोजा जा रहा है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि हरियाणा की सांप्रदायिक हिंसा उत्तर प्रदेश को नया चुनावी मुद्दा दे सकती है। हिंसा के बाद मेरठ, मुजफ्फरनगर व सहारनपुर का राजनीतिक पारा चढ़ गया।

मदनी समेत कई अन्य ने इशारों में भाजपा समेत अन्य संगठनों को लपेट लिया है। मुजफ्फरनगर दंगों के बाद 2014 लोकसभा चुनाव में अपना सियासी वजूद गंवाने वाली रालोद असमंजस में फंस गई है। जयन्त चौधरी संभलकर अपनी बात कहते नजर आए। जाट समाज के नेता वीरेंद्र सिंह ने सरकारों को चुनौती देते हुए कहा है कि हिंदू समाज स्वयं अपनी रक्षा करेगा।

ध्रुवीकरण का नया कुरुक्षेत्र किसानों के बीच से महंगाई, खेतीबाड़ी एवं बिजली के मुद्दे गायब हैं और 2024 लोकसभा चुनाव के लिए नए मुद्दे बाहर आ गए। जाटों के एक वर्ग ने मुजफ्फरनगर में 2013 की तर्ज पर महापंचायत बुलाने की अपील की तो वहीं कई गुर्जर संगठनों ने सियासी खेल में न उलझने की बात कही है।

 

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