आज पुत्रदायिनी, पद्मिनी एकादशी व्रत कथा- जानिए पूजा विधि विधान
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पद्मिनी एकादशी व्रत। पुरुषोत्तम मास हिन्दू धर्म में इस महीने का विशेष महत्व है। बता दें कि अधिक मास में पड़ने वाली एकादशी को पद्मिनी एकादशी व्रत के नाम से जाना जाता हैं। 19 साल बाद सावन के महीने में पुरुषोत्तम मास पड़ा है। बता दें कि इस विशेष दिन पर अत्यंत शुभ संयोग का निर्माण हो रहा है।
हिंदू धर्म में पद्मिनी एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। बता दें कि यह व्रत हर 3 साल में एक बार पुरुषोत्तम मास या अधिक मास में रखा जाता है। इस व्रत को कमला एकदशी के नाम से भी जाना जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पद्मिनी एकदशी व्रत के दिन पूजा-पाठ और भगवान विष्णु ,माँ लक्ष्मी की उपसाना करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। साथ ही जीवन में आ रही विविध प्रकार की परेशानियां समाप्त हो जाती है।
हिंदू पंचांग के अनुसार बता दें कि सावन अधिक मास पद्मिनी एकादशी व्रत 29 जुलाई 2023, शनिवार के दिन रखा जाएगा। इस विशेष दिन पर दो अत्यंत शुभ संयोग के निर्माण हो रहा है, जिसमें पूजा पाठ का विशेष महत्व है। श्री हरि विष्णु, माता लक्ष्मी के साथ ही, भगवान शिव माता पर्वती कि पूजा का विशेष महत्व हैं।
पद्मिनी एकादशी पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार त्रेता युग में एक पराक्रमी राजा था जिसका नाम कीतृवीर्य था। इस राजा की कई रानियां थी परंतु किसी भी रानी से राजा को संतान नहीं हुई। संतानहीन होने के कारण राजा और उनकी रानियां तमाम सुख सुविधाओं के बावजूद दु:खी रहते थे। संतान प्राप्ति की कामना से राजा अपनी रानियों के साथ तपस्या करने के लिए निकल पड़े। वर्षों तक तपस्या करने के बाद भी राजा की तपस्या सफल नहीं हुई। रानी ने तब देवी अनुसूया से उपाय पूछा देवी ने उन्हें मल मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करने के लिए कहा
अनुसूया ने रानी को इस व्रत का विधान भी बताया। रानी ने अनुसूया के बताये विधान के अनुसार पद्मिनी एकादशी का व्रत रखा। व्रत की समाप्ति पर भगवान प्रकट हुए और वरदान मांगने के लिए कहा। रानी ने भगवान से कहा प्रभु आप मुझ पर प्रसन्न हैं तो मुझे नहीं बल्कि मेरे पति को वरदान दीजिए। भगवान ने तब राजा से वरदान मांगने के लिए कहा।
राजा ने भगवान से प्रार्थना की कि आप मुझे ऐसा पुत्र प्रदान करें जो सर्वगुण सम्पन्न हो जो तीनों लोकों में आदरणीय हो. मेरा पुत्र आपके अतिरिक्त किसी से पराजित न हो। भगवान तथास्तु कह कर चले गये. कुछ दिनों के बाद रानी ने एक पुत्र को जन्म दिया जो कार्तवीर्य अर्जुन के नाम से जाना गया। यह बालक आगे चलकर अत्यंत पराक्रमी राजा हुआ। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सर्वप्रथम भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को पुरुषोत्तमी एकादशी के व्रत की कथा सुनाई थी और इसके महत्व से उन्हें अवगत करवाया था।
एकादशी पूजा विधान
प्रात: स्नान करके पद्मिनी एकादशी व्रत और भगवान विष्णु माता लक्ष्मी का पूजा का संकल्प करें। उसके बाद शुभ समय में एक चौकी पर भगवान विष्णु को स्थापित करें। फिर उनका पंचामृत (दही, मधु, घी,शक़्कर,गंगा जल ) से अभिषेक करें। चंदन, पीले फूल, केला पत्ता, वस्त्र, यज्ञोपवीत, (जनेऊ) तुलसी के पत्ते, फल, सुपारी, पान का पत्ता, धूप, दीप, गंध, नैवेद्य आदि अर्पित करें। उपवास के दौरान ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का उच्चारण करते रहें। इसके बाद घी का एक दीपक जलाकर श्रीहरि पूजा आंरभ करें। अब विष्णु चालीसा, विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। फिर पद्मिनी एकादशी व्रत कथा सुनें। उसके बाद भगवान विष्णु की आरती करें। अंत में क्षमा प्रार्थना करके मनोकामना पूर्ति के लिए विनती करें।