कर्नाटक कांग्रेस में CM पद की जंग अब चरम पर, जानें अचानक क्यों जोश में आए DK के समर्थक
कर्नाटक कांग्रेस में सीएम पद को लेकर सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच जंग अब तेज हो गई है। हाईकमान ने डीके के दबाव के बाद हस्तक्षेप शुरू किया है, जिससे उनके समर्थक उत्साहित हैं। 29 नवंबर को दोनों नेताओं को दिल्ली बुलाया जा सकता है, जहां अंतिम फैसला होने की संभावना है।
बेंगलुरु/दिल्ली: कर्नाटक में कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री पद को लेकर सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच विवाद अब चरम पर पहुंच गया है। पार्टी हाईकमान, जो अब तक इस मामले में यथास्थिति बनाए रखने की बात कहता रहा था, अब डीके शिवकुमार के दबाव के चलते सक्रिय हो गया है, और इसे उनके लिए एक जीत माना जा रहा है। गुरुवार को दिल्ली में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी यानी कि AICC के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के बीच कर्नाटक की सियासी हालत पर चर्चा को लेकर एक महत्वपूर्ण मुलाकात की खबरें हैं। इस बात की संभावना है कि 29 नवंबर को डीके शिवकुमार और सिद्धारमैया को दिल्ली बुलाकर इस विवाद को सुलझाने की कोशिश की जाएगी।
डीके और सिद्धारमैया में क्या है विवाद?
कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद से ही मुख्यमंत्री पद को लेकर सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच खींचतान चल रही है। विधानसभा चुनाव जीतने के बाद जब सरकार बनी थी, तो कहा जाता है कि सिद्धारमैया ने डीके शिवकुमार से वादा किया था कि सत्ता का हस्तांतरण होगा, यानी आधे समय के बाद डीके को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा। लेकिन अब तक इस पर अमल नहीं हुआ है। डीके शिवकुमार कैंप इस मुद्दे पर जोर दे रहा है और राहुल गांधी से मुलाकात का वक्त मिलने को अपनी जीत की तरह देख रहा है। उनके समर्थकों का मानना है कि इस मीटिंग में सिद्धारमैया को उस पुराने वादे का जवाब देना पड़ेगा। यही वजह है कि दोनों नेता अब अपनी-अपनी रणनीति बनाने में जुट गए हैं।
सिद्धारमैया कैंप की हुई अहम बैठक
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के घर पर गुरुवार को एक अहम बैठक हुई, जिसमें गृह मंत्री जी. परमेश्वर, मंत्री सतीश जारकीहोली, मंत्री एच.सी. महादेवप्पा, मंत्री वेंकटेश और पूर्व मंत्री के.एन. राजन्ना पहुंचे। इस बैठक में चर्चा हुई कि अगर सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच कोई समझौता नहीं होता है और पार्टी तीसरे विकल्प पर विचार करती है, तो हाईकमान के सामने क्या-क्या बातें रखनी चाहिए। सिद्धारमैया के पास अभी भी विधायकों का अच्छा-खासा समर्थन है, जो उन्हें मजबूत स्थिति में रखता है। सिद्धारमैया एक पिछड़े वर्ग के नेता हैं और उनकी मास अपील काफी ज्यादा है, जिसके चलते उन्हें एक झटके में हटाना मुश्किल माना जा रहा है।
डीके शिवकुमार कैंप की रणनीति
दूसरी तरफ, डीके शिवकुमार को भी इस बात की जानकारी है कि सिद्धारमैया जैसे लोकप्रिय नेता को हटाना आसान नहीं होगा। अगर हाईकमान इस फैसले को कांग्रेस विधायक दल पर छोड़ देता है, तो डीके की मुश्किलें बढ़ सकती हैं, क्योंकि ज्यादातर विधायक अभी सिद्धारमैया के साथ हैं। इसलिए, डीके शिवकुमार के खेमे से हर एक विधायक से संपर्क किया जा रहा है और उनसे समर्थन मांगा जा रहा है। सूत्रों के मुताबिक, डीके शिवकुमार के भाई और पूर्व सांसद डीके सुरेश ने खुद इस जिम्मेदारी को उठाया है। डीके शिवकुमार ने हाल ही में मीडिया से बातचीत में कहा, ‘अगर अलाकमान ने बुलाया है तो जरूर मिलने जाएंगे। कब बुलाया है, ये पता नहीं है।’ वहीं, वोक्कालिगा समाज के समर्थन पर पूछे गए सवाल पर उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया।
कर्नाटक की सियासत में आगे क्या होगा?
29 नवंबर की संभावित मीटिंग से पहले आज और कल का दिन दोनों नेताओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। माना जा रहा है कि मीटिंग में दोनों को अपनी बात खुद रखनी होगी और जो राहुल गांधी को ज्यादा कन्विंस कर पाएगा, वही विजेता बनकर निकलेगा। पार्टी हाईकमान इस विवाद को जल्द सुलझाना चाहता है, ताकि सरकार की स्थिरता पर असर न पड़े। स्थिति इतनी तनावपूर्ण है कि अगर दोनों के बीच कोई समझौता नहीं होता, तो पार्टी हाईकमान किसी तीसरे व्यक्ति को मुख्यमंत्री बनाने पर भी विचार कर सकती है। यह विवाद कर्नाटक कांग्रेस के लिए एक बड़ा परीक्षण है, क्योंकि दोनों नेता मजबूत पृष्ठभूमि वाले हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में राहुल गांधी और खरगे इस गतिरोध को कैसे तोड़ते हैं।

