Bihar election results: बदलाव का वादा क्यों नहीं चला, तेजस्वी यादव कहां चूक गए?
Bihar election results: बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों में एनडीए प्रचंड बहुमत की ओर बढ़ रहा है, जबकि तेजस्वी यादव की अगुवाई वाला महागठबंधन 60 सीटों के आसपास सिमटता दिख रहा है. यह वही तेजस्वी यादव हैं जो पूरे चुनाव अभियान में बदलाव और नई राजनीति की बात करते रहे, लेकिन जब वोटों की गिनती शुरू हुई तो वास्तव में सबकुछ बदल गया. इसके साथ सवाल भी बड़ा खड़ा हो गया कि- तेजस्वी यादव आखिर किन मोर्चों पर जनता की अपेक्षाओं से पीछे रह गए?
Bihar election results: पटना. 2025 का चुनाव तेजस्वी यादव के लिए एक निर्णायक मौका माना जा रहा था. बेरोजगारी, पलायन और आर्थिक सहायता जैसे मुद्दों को लेकर वह आक्रामक थे. बिहार में बदलाव के नारे के साथ दम खम के साथ चुनाव मैदान में थे. लेकिन जब चुनाव परिणाम आए तो तस्वीर बदली हुई दिखी. साफ जाहिर हुआ कि वह चुनाव प्रचार के दौरान जो सामने से दिखाया रहा था, जनता का मिजाज उसके बिल्कुल उलट था. बिहार चुनाव परिणामों ने एक बार फिर साबित कर दिया कि राजनीति सिर्फ नारों और भीड़ के दम पर नहीं, बल्कि विश्वास, भय, उम्मीद और सामाजिक दबावों के सूक्ष्म संतुलन पर टिकती है. तेजस्वी यादव के ‘बदलाव’ वाले अभियान को युवा ऊर्जा जरूर मिली, लेकिन नतीजों ने दिखा दिया कि यह ऊर्जा पर्याप्त नहीं थी. एनडीए प्रचंड बहुमत की ओर बढ़ता दिख रहा है, जबकि महागठबंधन 60 सीटों के आसपास सिमटता नजर आ रहा है. सवाल यह नहीं कि तेजस्वी ने क्या कहा और जनता ने क्या सुना और क्या माना? जाहिर है इसी फर्क ने नतीजे तय कर दिए.
जानकारों की नजर में कुछ बातें जनता को जोड़ नहीं सकीं, कुछ से जनता डरी-सहमी रही, कुछ ने नेतृत्व को कमजोर किया और बाकी ने महागठबंधन को भीतर से हिला दिया. इस चुनाव में महागठबंधन ने बेरोजगारी, महंगाई और बदलाव जैसे मुद्दों को जोरदार ढंग से उठाया, लेकिन एनडीए ने चुनावी रणनीति को पूरी तरह मनोवैज्ञानिक और सामाजिक समीकरणों पर केंद्रित रखा. एक तरफ तेजस्वी यादव युवा ऊर्जा, नए अवसर और बदलाव की राजनीति का संदेश दे रहे थे, वहीं दूसरी ओर एनडीए ने बिहार के अतीत-विशेषकर 1990-2005 के ‘जंगल राज’ को याद दिलाकर सुरक्षा और स्थिरता को प्राथमिक मुद्दा बना दिया. कुल मिलाकर 11 ऐसे कारण सामने से दिख रहे हैं जिन्होंने तेजस्वी के अभियान को हवा दी, लेकिन वोटों में तब्दील होने से रोक दिया. आइए इस पर एक नजर डालते हैं.
जंगल राज का भय
सबसे पहली और निर्णायक वजह रही-जंगल राज का भय. एनडीए ने लगातार 1990-2005 के बीच के उसी दौर को याद दिलाया जब अपहरण, हत्या और भ्रष्टाचार बिहार की पहचान बन गया था. खासकर महिलाएं इस नैरेटिव से सबसे ज्यादा प्रभावित दिखीं. तेजस्वी जितना बदलाव की बात करते रहे, एनडीए उतना अतीत का डर दिखाता रहा और एनडीए की यह रणनीति काम कर गई.

