Wed. Oct 15th, 2025

अब यूपी में जाति के नाम पर नहीं होंगी रैलियां, योगी सरकार ने लगाया बैन

यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार ने जाति आधारित राजनीतिक रैलियों पर प्रतिबंध लगा दिया है. यह फैसला इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश के बाद आया है, जिसमें जातिगत संघर्षों और सार्वजनिक व्यवस्था को बनाए रखने पर चिंता व्यक्त की गई थी. सरकार ने सभी जिलों को यह आदेश लागू करने का निर्देश दिया है.

उत्तर प्रदेश सरकार ने जाति-आधारित राजनीतिक रैलियों पर रोक लगा दी है. सरकार का कहना है कि ये सार्वजनिक व्यवस्था और राष्ट्रीय एकता के लिए खतरा हैं. कार्यवाहक मुख्य सचिव दीपक कुमार की ओर से रविवार देर रात राज्य और जिलों के सभी जिलाधिकारियों, सचिवों और पुलिस प्रमुखों को जारी किए गए इस आदेश में इलाहाबाद हाई कोर्ट के 16 सितंबर के आदेश का हवाला दिया गया है.

आदेश में कहा गया है कि राजनीतिक उद्देश्यों के लिए आयोजित जाति-आधारित रैलियां समाज में जातिगत संघर्ष को बढ़ावा देती हैं और सार्वजनिक व्यवस्था और राष्ट्रीय एकता के खिलाफ हैं और पूरे राज्य में इन पर सख्त प्रतिबंध है.

SC-ST एक्ट में रहेगी छूट

दीपक कुमार ने अपने 10 सूत्रीय आदेश में लिखा कि एफआईआर, गिरफ्तारी मेमो आदि में जाति का उल्लेख हटाया जाएगा. इसकी जगह माता-पिता के नाम जोड़े जाएंगे. थानों के नोटिस बोर्ड, वाहनों और साइनबोर्ड्स से जातीय संकेत और नारे हटाए जाएंगे. इसके अलावा जाति आधारित रैलियों पर पूर्ण प्रतिबंध, सोशल मीडिया पर भी सख्त निगरानी रखी जाएगी. हालांकि SC-ST एक्ट जैसे मामलों में छूट रहेगी और आदेश के पालन के लिए SOP और पुलिस नियमावली में संशोधन किया जाएगा.

ये आदेश जाति आधारित राजनीति करने वाली पार्टियों के लिए झटका माना जा रहा है. इसका असर निषाद पार्टी, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, अपना दल जैसी पार्टियों पर पड़ सकता है, ऐसा इसलिए है क्योंकि चुनाव से पहले तमाम रूपों में जाति-आधारित सभाएं की जाती हैं, ताकि लोगों को जुटाया जा सके. वहीं, 2027 में होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए पार्टियों ने जाति-आधारित प्रचार अभियान शुरू कर दिया है. मामले को लेकर अखिलेश यादव ने सवाल उठाए हैं.

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने क्या कहा था?

दरअसल, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से केंद्रीय मोटर वाहन नियमों (सीएमवीआर) में संशोधन करने के लिए एक रेगुलटरी फ्रेमवर्क तैयार करने को कहा था ताकि सभी निजी और सार्वजनिक वाहनों पर जाति-आधारित नारों और जाति-सूचक चिह्नों पर स्पष्ट रूप से प्रतिबंध लगाया जा सके. कोर्ट ने यह भी कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 के प्रावधानों को “सोशल मीडिया पर जाति-प्रशंसा और घृणा फैलाने वाली सामग्री” को चिह्नित करने और उसके विरुद्ध कार्रवाई करने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए.

उत्तर प्रदेश सरकार से कोर्ट ने कहा था कि यह पता चला है कि प्रदेश के सभी पुलिस स्टेशनों पर लगाए गए नोटिस बोर्ड में आरोपी के नाम के सामने जाति का एक कॉलम है और सरकार से कहा कि इसे तत्काल प्रभाव से हटाने के लिए उचित आदेश जारी करें.

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