मंदिरों, प्रार्थना स्थल पर ड्रेस कोड अनिवार्य..!
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– कपड़े का चुनाव आपकी आजादी, सभ्य-शालीन कपड़े पहनने में हर्ज क्या ?
रायपुर। देश के कुछ प्रसिद्ध व चर्चित हिन्दू मंदिरों में ड्रेस कोड लागू कर दिया गया है। दरअसल मंदिर ट्रस्टियों ने उक्त निर्णय उन आपत्तियों के बाद लिया जिनमें आरोप था कि कम कपड़े भड़काऊ या खुलापन या तंग परिधान पहनकर पहुंचने वाले भक्त, श्रद्धालुजन अन्य श्रद्धालु का ध्यान बंटाते हैं। लिहाजा ध्यान-मनन, पूजन प्रक्रिया में बाधा पड़ती है।
मंदिर ट्रस्टों के निर्णय उपरांत अब शालीन कपड़े, परिधान पहनकर आने वाले भक्तों -श्रद्धालुओं को मंदिरों में प्रवेश दिया जाएगा। बताया जाता रहा है कि प्रसिद्ध चर्चित हिन्दू मंदिरों में कुछ भक्त जींस, रिप्ड (फटी हुई) जींस, टीशर्ट, शर्ट टाप शार्ट पेंट, बरमूडा, भड़काऊ परिधान या कम कपड़े पहनकर पहुंचने लग गए थे। जिनकी संख्या में बढ़ोत्तरी (इजाफा) दर्ज की जा रही थी।
उपरोक्त किस्मों के कपड़े परिधानों को प्रतिबंधित करने का दबाव लगातार मंदिर प्रबंधनों ट्रस्टियों पर आ रहा था। कहा जा रहा था कि ऐसे कपड़ों के चलते दूसरे भक्त, श्रद्धालुओं का ध्यान पूजन-पाठन, मनन-ध्यान आदि से बंटता- हटता था। उपरोक्त प्रकार के परिधानो से भक्तों का ध्यान- उन पर अचानक जाता और खुलापन देख, मंदिर आने का श्रद्धा,आस्था भाव प्रभावित होता था।
बहरहाल उपरोक्त आरोप एवं निर्णय के मद्देनजर देखें तो पहला सबको अपने हिसाब से कपड़े, परिधान पहनने की स्वतंत्रता है। दूसरा सार्वजनिक स्थानों पर ऐसे कपड़े, परिधान पहनकर जाने से बचना चाहिए। जिससे शरीर के अंग झलकते या दिखते हों। मसलन फटी जींस(रिप्ड) फटी टी शर्ट, शार्ट टॉप,शार्ट फ्राक, स्कर्ट आदि से तीसरा- सार्वजनिक स्थानों पर भड़काऊ कपड़े, परिधान पहनने से भी यथासंभव बचना चाहिए। दरअसल जो परिधान शालीन व्यक्ति महिला या पुरुष का ध्यान आकर्षित कर- सामने वाले के मन में आपके प्रति स्वाभाविक तौर पर यह विचार उपजाए कि जानबूझकर- सोच-समझकर भड़काऊ कपड़े पहने है। चौथा यह कहकर कि कौन क्या सोचता- समझता है, कौन होता है बोलने-कहने वाला, आदि बयान कर खुद को सभ्य-शालीन समाज के दायरे बाहर करते हैं यहां आरोप के आवेश में आकर व्यक्ति भूल जाता है कि आखिर उसे उसी समाज के साथ रहना जीना है। व्यक्ति स्वयं को अलग पृथक ज्यादा देर नहीं कर सकता। वजह समाज का वह खुद एक हिस्सा होता है।
खैर ड्रेस कोड की बात करें, सभ्य शालीन आंखों को अच्छा लगने वाले- मन को व्यक्ति के प्रति (धारण कर्त्ता) अच्छे भाव उपजाने ड्रेस पहनने में हर्ज क्या है। जबकि सभ्य-शालीन ड्रेस व्यक्ति को अनेको लाभ पहली ही नजर में पहुंचा देता है। मसलन गंभीरता से लेना। सकारात्मक सोच लिए पेश आना। यथासंभव मदद- सहयोग आदि।
देश के अंदर अन्य धर्म- संप्रदाय के लोग भी रहते हैं। जो अपने-अपने प्रार्थना स्थलों पर एक शालीन ड्रेस पहन कर जाते हैं। प्रायः सभी पुरुष एक सा तो वही समस्त महिलाएं भी तय ड्रेस एक सा पहनती हैं। उन प्रार्थना स्थलों से कभी उपरोक्त प्रकार का आरोप सुनने को नहीं आया या नहीं मिलता। ड्रेस कोड सामाजिक समानता भी लाता है। स्कूल-कालेज, पुलिस-सेना, रेल्वे, चिकित्सा केंद्रों, परिवहन सेवा, विभिन्न धर्मों के साधु-संत, पीर, पादरी, आदि का एक तय शुदा ड्रेस कोड है। प्रार्थना स्थल- प्रार्थना हेतु है- परिधान स्पर्धा नहीं आप खुद तय करें कि अगर प्रार्थना स्थल पर सभ्य शालीन को छोड़ भड़काऊ ड्रेस पहन रखी हो तो क्या आपका मन पूर्ण श्रद्धा भक्ति आस्था से लग रहा हैं।