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Bahuda Yatra 2024: पुरी में आज बहुड़ा यात्रा शुरू, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा के रथ शाम तक पहुंचेंगे जगन्नाथ मंदिर

Bahuda Yatra 2024:

Bahuda Yatra 2024: पुरी के गुंडिचा मंदिर से बाहुड़ा यात्रा शुरू हो गई है। इस यात्रा में महाप्रभु, बलभद्र और सुभद्रा के रथ गुंडिचा से जगन्नाथ मंदिर लौटते हैं। आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से दशमी तिथि तक भगवान गुंडिचा मंदिर में अपनी मौसी के घर रहते है।

Bahuda Yatra 2024 रायपुर। पुरी के गुंडिचा मंदिर से बहुदा यात्रा शुरू हो गई है। इस यात्रा में महाप्रभु, बलभद्र और सुभद्रा के रथ गुंडिचा से जगन्नाथ मंदिर लौटते हैं। आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से दशमी तिथि तक भगवान गुंडिचा मंदिर में अपनी मौसी के घर रहते हैं। इस साल तिथियों में कमी के कारण आषाढ़ कृष्ण पक्ष में 15 नहीं बल्कि 13 दिन ही थे। यात्रा 7 जुलाई को शुरू हुई और 8 जुलाई को भगवान के तीनों रथ गुंडिचा मंदिर पहुंचे। आपको बता दें कि हर साल ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ को स्नान कराया जाता है। इसके बाद वे बीमार हो जाते हैं और आषाढ़ कृष्ण पक्ष के 15 दिनों तक बीमार रहते हैं, इस दौरान वे दर्शन नहीं देते। 16वें दिन भगवान का श्रृंगार किया जाता है और यौवन के दर्शन होते हैं। इसके बाद आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से रथ यात्रा शुरू होती है।

भगवान जगन्नाथ मौसी के घर से बाहुड़ा यात्रा पर मंदिर लौटेंगे

बाहुड़ा यात्रा के लिए सभी अनुष्ठानों का कार्यक्रम तय है। परंपरा के अनुसार गुंडिचा मंदिर में सभी अनुष्ठान पूरे होने के बाद, दोपहर 12 बजे देवताओं की ‘पहांडी’ निकाली जाएगी। शाम 4 बजे रथों को खींचने की परंपरा निभाई जाएगी। रथों को खींचने की विधि पूरी होने के बाद, रथों के ऊपर अन्य अनुष्ठान किए जाएंगे। श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (एसजेटीए) के अनुसार सभी अनुष्ठानों को सुचारू और अनुशासित तरीके से आयोजित करने के लिए व्यापक तैयारियां की गई हैं।

बाहुड़ा यात्रा के लिए भारी पुलिस बल तैनात

आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से दशमी तिथि तक भगवान गुंडिचा मंदिर में अपनी मौसी के घर रहते हैं। पुरी में ‘बहुदा यात्रा’ से पहले सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं। एएनआई से बात करते हुए ओडिशा के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक संजय कुमार ने कहा, ‘भगवान के आशीर्वाद से हमारी सारी व्यवस्थाएं दुरुस्त हैं, पुलिस बल, पुलिसकर्मी, अधिकारी, सभी ने अपनी जगह ले ली है। हमने रिहर्सल भी कर ली है, इसलिए हमें आज किसी तरह की परेशानी की उम्मीद नहीं है। इस साल की यातायात व्यवस्था, सबसे अच्छी यातायात व्यवस्थाओं में से एक है, इसकी हर कोई सराहना कर रहा है। सुरक्षा व्यवस्था को भी बेहतर बनाया गया है और हमारा प्रयास है कि जब भक्तगण भगवान की प्रतिमाओं को खींच रहे हों तो कोई परेशानी न हो। न ही कोई अप्रिय घटना घटे, सब कुछ ठीक से व्यवस्थित हो। पूरा शहर सीसीटीवी से कवर है। एआई भी अच्छे से काम कर रहा है।

जगन्नाथ के रथ को ‘नंदीघोष’ के नाम से जाना जाता है

नंदीघोष रथ की ऊंचाई लगभग 44.2 इंच है और इसे 34×34 फीट के प्लेटफॉर्म पर बनाया गया है। इस रथ की खासियत यह है कि यह तीनों रथों में सबसे ऊंचा है और इस भव्य रथ को इसके लाल और पीले रंग से पहचाना जा सकता है। रथ का निर्माण नीम और हांसी की लकड़ियों से किया गया है। ये लकड़ियाँ अपनी मजबूती और पवित्र महत्व के लिए जानी जाती हैं।नंदीघोष को खींचने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली रस्सियों को “शंखचूड़” नाम दिया गया है। भगवान जगन्नाथ के रथ में 16 पहिए हैं, जिनमें से प्रत्येक का व्यास लगभग 7 फीट है। इसे देवी-देवताओं के विभिन्न प्रतीकों और चित्रों से सजाया गया है, जिस पर दारुका नामक एक सारथी को भी दर्शाया गया है।

भगवान बलभद्र के रथ को ‘तालध्वज’ कहा जाता है

जबकि उनके बड़े भाई भगवान बलभद्र के रथ को ‘तालध्वज’ कहा जाता है, उनके रथ में 14 पहिए होते हैं। तालध्वज रथ की ऊंचाई लगभग 43 इंच होती है जो 33×33 फीट के आधार पर स्थापित होता है। रथ को मुख्य रूप से हरे और लाल रंग से सजाया जाता है, जो भगवान बलभद्र की बहादुरी और शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। इस रथ के निर्माण में नीम और हांसी की पवित्र लकड़ियों का इस्तेमाल किया गया है। जिस रस्सी से रथ को खींचा जाता है उसे “वासुकी” कहते हैं। तालध्वज में 14 पहिए हैं, जिनमें से प्रत्येक का व्यास 7 फीट है। यह नागों और अन्य शक्तिशाली प्रतीकों की आकृतियों से सुशोभित है। इस रथ पर चित्रित सारथी मातलि है।

बहन सुभद्रा के रथ को ‘दर्पदलन’ कहा जाता है

देवी सुभद्रा दर्पदलन का रथ लगभग 42 इंच ऊंचा है और इसका आधार 31.5×31.5 फीट है। रथ को काले और नीले रंग से सजाया गया है, जो देवी सुभद्रा के शक्तिशाली और सुरक्षात्मक पहलुओं का प्रतिनिधित्व करता है। नंदीघोष की तरह, दर्पदलन भी उसी प्रकार की पवित्र लकड़ियों से बना है: नीम और हांसी, मुख्य रूप से दर्पदलन की रस्सियों को “स्वर्णचूड़ा” कहा जाता है। 12 फीट व्यास के पहियों वाला यह रथ अलंकृत रूप से सुसज्जित है। देवी सुभद्रा के रथ के सारथी अर्जुन हैं जबकि बहन सुभद्रा के रथ को ‘दर्पदलन’ कहा जाता है, जिसमें 12 पहिए हैं। यह एकमात्र ऐसी यात्रा है जिसमें देवी रुक्मिणी जगन्नाथ जी के साथ नहीं हैं। ऐसा कहा जाता है कि जो भी इस यात्रा में भाग लेता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। ज्ञात हो कि गुंडिचा मंदिर और जगन्नाथ मंदिर के बीच केवल तीन किलोमीटर की दूरी है।

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