Parliament Session 2024 : हंगामे के बीच लोकसभा में रखवाया गया दो मिनट का मौन, विपक्ष ने की निंदा

Parliament Session 2024 : आज लोकसभा में आपातकाल पर पेश किए गए प्रस्ताव पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि ये सदन 1975 में देश में आपातकाल लगाने के निर्णय की कड़े शब्दों में निंदा करता है।
Parliament Session 2024 : नई दिल्ली : भाजपा सांसद और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के उम्मीदवार ओम बिरला लोकसभा के अध्यक्ष चुने गए। लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने सभापति चुने जाते ही अपने पहले ही सम्बोधन में इमरजेंसी की निंदा की और इसे काला अध्याय बताया। बता दें कि कुर्सी संभालते ही बिरला ने 18वीं लोकसभा के पहले सत्र को संबोधित किया। उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी और सदन के सभी सदस्यों धन्यवाद किया। साथ ही आपातकाल की निंदा की। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने इस दौर में कई ऐसे काम किए है और संविधान की मूलभुत भावनाओं को कुचलने का काम किया।
स्पीकर ने कहा कि उस दौर में जिस प्रकार के संविधान संशोधन हुए थे उससे न्यायपालिका पर नियत्रंण स्थापित करने की कोशिश की। इस दौर में इमरजेंसी तानाशाही भावना लेकर आई। इस दौरान विपक्ष ने जमकर हंगामा किया।
आपातकाल की करी निंदा
आज लोकसभा में आपातकाल पर पेश किए गए प्रस्ताव पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा, ‘ये सदन 1975 में देश में आपातकाल (इमरजेंसी) लगाने के निर्णय की कड़े शब्दों में निंदा करता है। इसके साथ ही हम, उन सभी लोगों की संकल्पशक्ति की सराहना करते हैं, जिन्होंने आपातकाल का पुरजोर विरोध किया, अभूतपूर्व संघर्ष किया और भारत के लोकतंत्र की रक्षा का दायित्व निभाया।’
आपातकाल इतिहास का काला धब्बा है
इसके बाद विपक्ष ने जमकर हंगामा किया। मगर ओम बिरला ने बोलना जारी रखा। उन्होंने कहा कांग्रेस ने संविधान की भावना को कुचला है। 1975 में तानाशाही थोपी गई थी। उस समय लोगों ने कुनीतियों का प्रहार झेला था। आपातकाल इतिहास का काला धब्बा है। साथ ही उन्होंने आपातकाल की निंदा करते हुए मौन भी रखा। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा, ‘जब हम आपातकाल के 50वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं, ये 18वीं लोकसभा, बाबा साहब आंबेडकर द्वारा निर्मित संविधान को बनाए रखने, इसकी रक्षा करने और इसे संरक्षित रखने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराती है।’
लोकतंत्र के सिद्धांतों पर आघात किया गया
लोकसभा अध्यक्ष बिरला ने कहा, ‘कांग्रेस सरकार द्वारा किए गए इन संशोधनों का लक्ष्य था कि सारी शक्तियां एक व्यक्ति के पास आ जाएं, न्यायपालिका पर नियंत्रण हो और संविधान के मूल सिद्धांत खत्म किए जा सकें। ऐसा करके नागरिकों के अधिकारों का दमन किया गया और लोकतंत्र के सिद्धांतों पर आघात किया गया।’