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Vrindavan: बिक रही डॉलर में कान्हा की नगरी वृंदावन की रज, सनातनियों में आक्रोश

Vrindavan:

Vrindavan: ब्रज की रज (मिट्टी) में मिल जाने की कामना लेकर ऋषिओं-मुनियों ने कड़ी तपस्या की। इस रज को माथे पर लगाने के लिए देवी-देवता भी आकुल रहते हैं।

Vrindavan रायपुर। ब्रज की रज (मिट्टी) में मिल जाने की कामना लेकर ऋषिओं-मुनियों ने कड़ी तपस्या की। इस रज को माथे पर लगाने के लिए देवी-देवता भी आकुल रहते हैं। ब्रज की जिस रज को माथे पर लगाकर श्रद्धालु खुद को धन्य मानते हैं आज वही रज का व्यापार हो रहा है। इससे न केवल साधु-संतों, ब्राह्मण समाज, सनातनी और पुजारियों में जबरदस्त गुस्सा व्याप्त है।

ब्रज की राज भक्ति बनी ब्रज है कान्हा का रूप कण-कण में माधव बसे कृष्ण सामान स्वरूप। ब्रज की जिस रज में कभी कान्हा खेले लोटे और खायें हो उस रज की महिमा अपरम्पार है। आज उसी रज का यहां कुछ लोग ऑनलाइन व्यापार कर रहे हैं, तो कृष्ण भक्तों को गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच रहा है। 3500 रूपये किलो दर पर डॉलर में बेची जा रही है।

ब्रज की कण-कण की मिट्टी धूल यानी रज का बिक्री ने सनातनियों को उबालकर रख दिया है। यहां से ब्रज रज समेत कंठी माला ,धूपबत्ती, पोशाक, श्रृंगार, अंगार का सामान इत्र, चंदन,टीका, जप माला, मूर्ति, तस्वीर, प्रसाद, तुलसी के पौधे, तुलसी की माला, धार्मिक पुस्तकें, गाय के गोबर के उपले (कण्डे ), हवन की लकड़ी का कारोबार हो रहा है। कीमतों की बात करें तो ऑनलाइन माध्यम से अंतरराष्ट्रीय बाजार में 10 डॉलर से लेकर 100 डॉलर तक है। बड़ी मूर्तियाें के दाम 200 से 250 डॉलर तक है।

इससे पहले सन 2021 में गिरिराज की शिला ऑनलाइन बेचे जाने का प्रयास हुआ था। तब संतों में आक्रोश फैल गया। उन्होंने गोवर्धन थाने में मुकदमा दर्ज कराया था। तब इंडिया मार्ट के प्लेटफार्म पर लक्ष्मी डिवाइन आर्टिकल स्टोर 5175 रुपए में शीला बेच रहा था। वृंदावन के प्रसिद्ध संत प्रेमानंद महाराज ने भी इसका विरोध किया था। उन्होंने शीला बेचे जाने पर अनिष्ट होने की चेतावनी दी थी।

बहरहाल वृंदावन के गोधुलीपुरम स्थित श्री हरिदास धाम में अध्यात्म में रक्षा मंच की बैठक संत श्री हरिदास की अध्यक्षता में हुई। इसमें भगवान श्री राधा कृष्ण की ब्रज 84 कोस लीला में ब्रजरज को अमेजॉन ऑनलाइन गोपी-कृष्ण पूजन भंडार द्वारा बेचे जाने पर आक्रोश व्यक्त किया गया। मंच के बिहारी लाल वशिष्ठ ने बताया कि चैतन्य महाप्रभु वल्लभाचर्य ने कहा था कि श्री हरिवंश आचार्य हरि राम व्यास ने ब्रज रस में लोटपोट होकर भक्ति की आराधना की। उनके अनेक प्रमाण है।

(लेखक, डा. विजय)

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