Raipur News: डीकेएस अस्पताल का ऑक्सीजन प्लांट ठप, निजी एजेंसी से हो रही सिलेंडर की आपूर्ति

Raipur News: सरकारी सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल डीकेएस में भर्राशाही, अव्यवस्था कुप्रबंधन के चलते सरकारी खजाने से करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं।
Raipur News रायपुर। सरकारी सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल डीकेएस में भर्राशाही, अव्यवस्था कुप्रबंधन के चलते सरकारी खजाने से करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं। 40 लाख का एक उपकरण नही लगा पाने की असली वजह क्या है? इसके बजाय करोड़ों रुपए के ऑक्सीजन एक निजी कंपनी से खरीदे जा रहे है। आखिर इस मिस मैनेजमेंट से किसका-किसका और कितना-कितना हित सध रहा हैं ! यह जांच का विषय है। नई सरकार अगर इसे गंभीरता से ले तो आधा दर्जन से अधिक लोग नपेंगे।
गौरतलब हो कि कोविड-19 के दौर में राजधानी के सरकारी समेत निजी अस्पताल समूहों एवं प्रदेश के तमाम जिला अस्पतालों में गैस प्लांट लगाने के बात शिदद्त से उठाई गई थी। ज्यादातर में प्लांट लगा भी। कदाचित इसका लाभ लाखों लोगों को हुआ कोविड-19 जब अपने चरमसीमा पर था। तब प्लांटो से ऑक्सीजन निर्मित होता रहा। सिलेंडर भर-भर कर अन्यंत्र अस्पतालों, सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रो समेत उन तमाम शिविर स्थलों में भेजे गए जहां मरीज रखे गए थे। मसलन इनडोर स्टेडियम रायपुर आदि। स्वास्थ्य विभाग के कार्यों की तब प्रशंसा भी हुई, बहुत से मरीजों की जान बचाई गई।
कोविड -19 का दौर सन 2022 के मध्य तक खत्म प्रायः था। परंतु ऑक्सीजन प्लांट की उपयोगिता अनिवार्यता साबित हो चुकी थी। लिहाजा,तय हुआ था कि जहां प्लांट में खराबी है या प्लाट नही है वहां प्लाट को ठीक कर अन्यंत्र भी प्लांट लगाया जाएगा। इधर राजधानी स्थित बहुचर्चित सरकारी सुपर स्पेशलिस्ट अस्पताल महिनों से खराब व बंद पड़ा है। बताया जा रहा है कि माह भर से इंजीनियर प्लांट सुधारने में लगे हैं। परंतु प्लांट की ऑक्सीजन प्योर नही हो पा रही है। हाइड्रेटेड सोडियम एल्युमिनियम सिलीकेट या जिओ लाइट सितंबर 23 से खत्म हो गई है। जिससे प्लांट बंद है उत्पादन नही हो रहा है। बिंडबना देखे महज 40 लाख का उपकरण लगाने से जिओ लाइट समस्या का निवारण हो सकता है।
पर अस्पताल का जिम्मेदार प्रबंधन-प्रशासन को शायद इसमें रुचि नही है। रोजाना 60 हजार की ऑक्सीजन एक निजी कंपनी से खरीदी जा रही है। यानि माह में 18 लाख। पिछले 8 माह में सवा करोड रुपए के करीब का ऑक्सीजन खरीदा जा चुका है, जानकार हैरान है कि एवं सवाल उठा रहे हैं कि आखिर माजरा क्या है! महज 40 लाख का उपकरण लगाकर जब सिस्टम फिर से शुरू हो सकता है, तो उसकी जगह पर करोड़ से अधिक का पैसा क्यों पानी की तरह बहाया जा रहा है। आखिर इससे किस-किस का कितना-कितना हित सध रहा है।
उपकरण लगा लिया जाता है, तो मुफ्त में ऑक्सीजन मिलेगा। इतनी सी बात जिम्मेदारों को समझ नहीं आ रही है। उनसे फोन पर चर्चा करनी चाही, स्थिति जाननी चाही तो मोबाइल,लैंडलाइन व्यस्त या बंद मिला। प्लांट तो कोविड पीरियड यानी 2020 से लग चुका है। पर मेंटेनेंस का टेंडर कितने वर्ष का था यह स्पष्ट नही हो पाया है। यह भी जानकारी नही मिल पाई कि फिलहाल,ऑक्सीजन का मेजर सप्लायर कौन है। निजी प्लांट से गैस सिलेंडर मंगवाकर काम चलाया जा रहा है। चर्चा है कि डीकेएस अस्पताल प्रशासन ने प्लांट नही सुधरने की रिपोर्ट शासन के अलावा छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कॉरपोरेशन को दे दी है। यह भी बताया जा रहा है कि ऑक्सीजन प्लांट में मेंटेनेंस का ठेका लेने वाली एजेंसी का अनुबंध निरस्त करने की सिफारिश की है।