Chhattisgarh News : राज्य उपभोक्ता फोरम आयोग का आदेश , LIC को देने पड़ेंगे 14 लाख
Chhattisgarh News : एक मामले में भारतीय जीवन बीमा निगम ने क्लेम देने से इंकार कर दिया। जिस पर आवेदक ने छत्तीसगढ़ राज्य उपभोक्ता विवाद परितोष आयोग में शिकायत दर्ज कराई।
Chhattisgarh News रायपुर। एक मामले में भारतीय जीवन बीमा निगम ने क्लेम देने से इंकार कर दिया। जिस पर आवेदक ने छत्तीसगढ़ राज्य उपभोक्ता विवाद परितोष आयोग में शिकायत दर्ज कराई। जिस पर सुनवाई बाद आयोग ने सेवा में कमी माना। तथा अब राशि 14 लाख समेत मानसिक क्षतिपूर्ति के लिए 15 हजार रुपए तथा वाद- व्यय के तौर पर 3 हजार रुपए देने का आदेश दिया है।
परिवाद के अंतर्गत नया बाराद्वार निवासी परिवादिनी फुलेश्वरी बाई भैना के पति बुटानु भैना अपने जीवनकाल में भारतीय जीवन बीमा निगम से दो पॉलिसियां 8 लाख एवं 6 लाख की ली थी। इस बीच बीमित व्यक्ति की मृत्यु के बाद नामित परिवादिनी ने बीमा दावा प्रस्तुत किया। जिस पर LICने यह कहते हुए (आधार) दावा निरस्त कर दिया कि बीमा धारक ने बीमा प्रस्ताव में पूर्व के इलाज और अपंगता के संबंध में गलत जानकारी दी थी।
इस पर परिवादिनी ने जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष जांजगीर-चांपा के समक्ष परिवाद प्रस्तुत किया। एलआईसी ने जिला आयोग के फैसले के विरुद्ध राज्य आयोग में अपील की। राज्य उपभोक्ता आयोग ने सुनवाई में पाया कि बीमित का दुर्घटना के कारण 2013 में अस्पताल में इलाज हुआ था जिसमें उसके दोनो पैर काटने पड़े थे। दस्तावेजों से यह स्पष्ट परिलक्षित होना पाया है, जबकि दावा फार्म भरते समय LIC एजेंट ने बीमित व्यक्ति को देखकर ही फार्म भरा था- साथ ही फार्म में लाइसेंसी डॉक्टर का हस्ताक्षर व सील भी उपलब्ध है। लिहाजा इस स्थिति में LIC देनदार है।
अपील की सुनवाई के दौरान राज्य उपभोक्ता आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति गौतम चौरड़िया एवं सदस्य प्रमोद कुमार वर्मा की पीठ ने यह पाया कि भारतीय जीवन बीमा निगम के एजेंट एवं डॉक्टर द्वारा बीमित के भौतिक परीक्षण उपरांत ही बीमा प्रस्ताव को बीमा निगम द्वारा स्वीकार कर दोनों पॉलिसियां जारी की गई थी। अतः भारतीय जीवन बीमा निगम बीमा दावा हेतु देनदार है।
इस तरह से भारतीय जीवन बीमा निगम की अपील को निरस्त कर जिला उपभोक्ता आयोग के आदेश की पुष्टि करते हुए 45 दिनों के भीतर भुगतान नहीं किए जाने पर उक्त राशि पर आदेश दिनांक से भुगतान दिनांक तक 6 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज देय का आदेश दिया।