Mumbai High Court: मुंबई हाईकोर्ट का अहम फैसला, बेरोजगार पति को पत्नी देगी गुजारा भत्ता

Mumbai High Court:

Mumbai High Court रायपुर।   मुंबई हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में हिंदू विवाह अधिनियम का हवाला देते हुए पत्नी को अपने बेरोजगार पति को भरण-पोषण के लिए हर महीने 10 हजार रुपये देने को कहा है।

Mumbai High Court रायपुर।   मुंबई हाई कोर्ट ने एक अहम फैसले में हिंदू विवाह अधिनियम का हवाला देते हुए पत्नी को अपने बेरोजगार पति को भरण-पोषण के लिए हर महीने 10 हजार रुपये देने को कहा है। बॉम्बे हाई कोर्ट ने निचली अदालत के उस फैसले को बरकरार रखा है जिसमें एक पत्नी को अपने बेरोजगार पति को 10,हजार रुपये प्रति माह गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया गया था। यह निर्णय उस पारंपरिक कानूनी मान्यता को चुनौती देता है जिसके अनुसार आमतौर पर पति को अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया जाता है। उच्च न्यायालय का यह फैसला निचली अदालत के आदेश को चुनौती देने वाली पत्नी की याचिका के जवाब में आया। महिला का पति भी चिकित्सा संबंधी बीमारियों से पीड़ित है, उसे 10,हजार रुपये का मासिक भरण-पोषण भत्ता देने का निर्देश दिया गया।

कोर्ट ने क्या टिप्पणी की?

पति-पत्नी के मध्य विभिन्न वजहों से विवाद के मध्य बेरोजगार पति द्वारा अपनी पत्नी को कामकाजी बात स्वयं के भरण- पोषण हेतु गुजारा भत्ता देने की मांग की थी। जिस पर निचली अदालत ने पति की मांग स्वीकार कर उसकी पत्नी को 10 हजार रुपए गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया था। इसलिए वैवाहिक विवाद की कार्रवाई के दौरान अगर कोई भी पक्ष अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ है, तो वह दूसरे पक्ष से गुजारा भत्ता देने की मांग कर सकता है। इस मामले में पत्नी को अपने बेरोजगार पति को गुजारा भत्ता देने का शुरुआती आदेश 13 मार्च, 2020 को कल्याण की एक अदालत ने जारी किया था। इस निर्देश को चुनौती देते हुए पत्नी ने गुजारा भत्ता देने में असमर्थता का तर्क देते हुए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

निचली अदालत के फैसले के खिलाफ पत्नी ने मुंबई हाई कोर्ट में याचिका दायर की-

निचली अदालत के फैसले के खिलाफ पत्नी ने मुंबई हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। जिस पर हाईकोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 को आधार बनाकर निचली अदालत की आदेश को कायम रखा है। इसमें जीवन साथी ( spouse) शब्द के दायरे में पति-पत्नी दोनों शामिल हैं। दोनों में से कोई भी विवाद के दौरान खुद को भरण-पोषण में असमर्थ पाता है, तो वह मेंटेनेंस के लिए (गुजारा भत्ता) आवेदन कर सकता है जस्टिस शर्मिला देशमुख ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा, निचली अदालत का यह तर्क सही है कि पत्नी होम लोन का भुगतान करने के साथ बच्चे की देख-रेख कर रही है, तो उसके लिए खुलासा करना जरूरी है कि इस खर्च के लिए आए का स्रोत क्या है।

(लेखक डा. विजय )

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