Corona virus: WHO ने की कोरोना वायरस नेटवर्क की स्थापना, 21 देशों के साथ मिलकर वायरस को जड़ से ख़त्म करेगा भारत
Corona virus: भारत की ओर से पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) के वैज्ञानिक प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। हाल ही में 26 मार्च को जेनेवा में हुई पहली बैठक में वैज्ञानिकों ने मिलकर साल 2024- 25 के लिए एक कार्य योजना को अंतिम रूप दे दिया है।
Corona virus रायपुर। सब कुछ ठीक सामान्य रहा और परियोजना अंतर्गत सही काम हुआ तो जल्द ही कोरोना वायरस का इलाज पूरी दुनिया के सामने होगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO ) ने कोरोना वायरस नेटवर्क (कोविनेट) की स्थापना की है जिसमें 21 देश के साथ मिलकर भारत के वैज्ञानिक प्रयोगशालाओं में यह खोज शुरू करेंगे। भारत की ओर से पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) के वैज्ञानिक प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
एनआईवी के वैज्ञानिक प्रतिनिधित्व कर रहे हैं
भारत की ओर से पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) के वैज्ञानिक प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। हाल ही में 26 मार्च को जेनेवा में हुई पहली बैठक में वैज्ञानिकों ने मिलकर साल 2024- 25 के लिए एक कार्य योजना को अंतिम रूप दे दिया है। इसे दुनिया भर के सदस्य देशों को अमल में लाना होगा। एन वाई वी पुणे के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉक्टर प्रज्ञा यादव ने बताया कि WHO के नए नेटवर्क में उसके सभी 6 क्षेत्रीय देशों की कुल 36 प्रयोगशाला शामिल हैं। आगामी दिनों में या कोरोना वायरस से संबंधित चुनौतियाें का शीघ्र पता लगाने जोखिम मूल्यांकन और प्रतिक्रिया को लेकर अध्ययन किया जाएगा। WHO के मुताबिक कोविनेट का लक्ष्य कोरोना वायरस और उसके उप स्वरूपों की समय पर जांच और इलाज का पता लगाना है। फेनोटापिक और जीनोटाइपिक मूल्यांकन के लिए दुनिया की शीर्ष प्रयोगशालाओं को एक मंच पर लाया गया है। ताकि सभी मिलकर इसके खिलाफ कार्य कर सकें।
WHO ने देशों को सतर्क किया है कि संकट अभी खत्म नहीं हुआ है
गौरतलब है कि कोरोना का पहला वायरस दिसंबर 2019 में चीन के बुहान शहर में सामने आया था। परंतु जनवरी 2020 में WHO ने सभी देशों को सतर्क किया। करीब 4 साल बाद WHO ने स्वास्थ्य आपातकाल वापस ले लिया है। बावजूद कोरोना महामारी के मामले अभी भी दुनिया के कुछ देशों में सामने आ रहे हैं। इसलिए इस संक्रामक रोग से लोगों को बचाने के लिए WHO ने नए नेटवर्क के जरिए शोध शुरू करने का फैसला लिया है। भारतीय वैज्ञानिकों के अनुसार भारत की कुछ अन्य प्रयोगशालाएं भी शीघ्र ही उक्त नेटवर्क में जुड़कर काम करेंगी।