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Shukra Pradosh Vrat: शुक्र प्रदोष व्रत कथा और पाए शिव परिवार की असीम कृपा

Shukra Pradosh Vrat:

Shukra Pradosh Vrat:

Shukra Pradosh Vrat: प्रदोष व्रत हर महीने में कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में दो प्रदोष व्रत रखे जाते हैं। इस समय दूसरा प्रदोष व्रत 22 मार्च को फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है।

Shukra Pradosh Vrat: प्रदोष व्रत हर महीने में कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में दो प्रदोष व्रत रखे जाते हैं। इस समय दूसरा प्रदोष व्रत 22 मार्च को फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है। इस बार शुक्रवार के दिन पड़ने के कारण इसे शुक्र प्रदोष कहा जाता है। इस दिन भोलेनाथ और माता पार्वती की विधि-विधान से पूजा की जाती है। कहा जाता है कि प्रदोष व्रत करने से भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं और परिवार पर अपनी कृपा बनाए रखते हैं।

प्रदोष काल में शुभ समय

शाम 6 बजकर 34 मिनट से रात 8 बजकर 55 मिनट तक
समापन 23 मार्च की सुबह 06 बजकर 11 मिनट पर होगा

प्रदोष काल में भगवान शिव की कृपा पाने के लिए व्रत और पूजा की जाती है। प्रदोष काल में पूजा करने का शुभ समय शाम 6 बजकर 34 मिनट से रात 8 बजकर 55 मिनट तक है। प्रदोष काल सूर्यास्त से प्रारम्भ होता है। यह दिन शुक्रवार के दिन पड़ने के कारण इस व्रत को शुक्र प्रदोष के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि प्रदोष व्रत करने से जीवन में चल रही सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं। और भगवान शिव की कृपा से सुख, समृद्धि और सफलता प्राप्त होती है। प्रदोष व्रत के दिन शिव चालीसा का पाठ करने के साथ शिव मंत्रों का जाप करने से भगवान भोलेनाथ की असीम कृपा प्राप्त होती है।

प्रदोष पूजा विधि –

प्रदोष व्रत करने वाले भक्त को सुबह जल्दी उठकर दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर घर की साफ-सफाई करके स्नान करना चाहिए। इसके बाद अपने घर के पूजा स्थल या मंदिर को अच्छी तरह साफ कर लें। अब एक पाटे लें और उस पर लाल कपड़ा बिछाएं, और शिव परिवार की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। इसके बाद शिव परिवार के सामने प्रदोष व्रत करने का संकल्प लें।अब शिव परिवार को पंचामृत और जल से स्नान कराएं, सफेद चंदन और अक्षत का तिलक लगाएं। अब घी का दीपक और धूप जलाएं। भगवान शिव को बेलपत्र बहुत प्रिय माने जाते हैं, इसलिए उनकी पूजा के दौरान उन्हें बेलपत्र अवश्य चढ़ाना चाहिए।अब भगवान को सफेद फूलों की माला चढ़ाएं और पूरे शिव परिवार को खीर का भोग लगाएं।

महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें और प्रदोष व्रत कथा पढ़ें या सुनें।आरती के साथ पूजा का समापन करें और पूजा या व्रत के दौरान हुई गलतियों के लिए भगवान से क्षमा मांगें और अगले दिन सुबह पूजा के बाद अपना व्रत खोलें।

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