छत्तीसगढ़ में मरीजों के साथ, सुपर स्पेशियलिटी और मल्टी स्पेशियलिटी अस्पताल लिखकर ठगी कर रहे हैं
आयुष्मान योजना की शुरुआत के बाद से, राज्य में सुपर स्पेशियलिटी और मल्टी स्पेशियलिटी अस्पतालों की संख्या अचानक बढ़ गई है।
छत्तीसगढ़ न्यूज : आयुष्मान योजना आने के बाद से प्रदेश के अंदर कथित तौर पर सुपर स्पेशलिटी एवं मल्टी स्पेशलिटी अस्पतालों की संख्या यकायक बढ़ गई है। हद तो तब हो जा रही है, जब इसकी जांच पड़ताल करने न तो स्वास्थ्य विभाग का कोई दस्ता निकलता और न ही आयुष्मान योजना तहत हर दस्तावेज की जांच कर हर क्लेम के भुगतान का दावा करने वाली स्टेट नोडल एजेंसी इसकी छानबीन करती। राजधानी समेत छोटे-मोटे शहरों,कस्बाई इलाकों तक में सुपर स्पेशलिटी अस्पताल का ग्लो साइन बोर्ड लगाए छोटे मंझोले धड़ल्ले से संचालित है, जहां विशेषज्ञ चिकित्सकों का अता-पता नही है।
दरअसल लोगों में थोड़ी जागरूकता आने से वे स्वास्थ्य संबंधी दिक्क्तें आने पर अब विशेषज्ञ चिकित्सकों के पास सीधे जाने लगे हैं, या उन्हें जागरूक प्रेरित करते हैं, जो अच्छी बात है। परंतु प्रदेश के अंदर तमाम बीमारियों (रोगों) की विशेषज्ञ चिकित्सकों की कमी बनी हुई है सरकारी एवं निजी दोनों अस्पतालों में दिख जाएगी बड़े एवं नामी निजी अस्पताल तो विजिटिंग डॉक्टर (विशेषज्ञ) से काम चला लेते हैं, पर छोटे-मंझोले अस्पताल विशेषज्ञों की तगड़ी फीस देने में सक्षम नही होते हैं, तो उनके यहां पर्याप्त उपकरण, तकनीकी सुविधाएं बेहतरीन आईसीयू नही होते। इस सबके बावजूद कस्बाई,छोटे-मोटे शहरों समेत राजधानी तक के छोटे अस्पताल महज पैसा बटोरने मरीज भर्ती कर ले रहे हैं। जहां के चिकित्सक जानते हैं कि मरीज का उनके यहां (अस्पताल) विशेषज्ञ चिकित्स्क समुचित उपकरण आधुनिक लैब नही होने से इलाज संभव नही फिर उन्हें (मरीज) अन्यत्र बड़े अस्पताल रेफर करने के बजाय अपने यहां भर्ती कर लेते है, यह सीधे-सीधे मरीज के साथ छलावा, फरेब होता है। आयुष्मान योजना से पैसा मिल जाता है संबंधित नोडल एजेंसी आयुष्मान जांच हेतु झांकने आती नही स्वास्थ्य विभाग को भी जांच दस्ता भेजने की फुर्सत नही यह स्थिति उपरोक्त छोटे-मोटे, मंझोले अस्पताल संचालकों को प्रोत्साहित करती है। उनमें भय या डर नाम की चीज नही। मरीज की स्थिति गंभीर हो जाती है, तब उन्हें बड़े अस्पताल जाने की बात कह दी जाती है पर तब तक उपरोक्त अस्पताल आयुष्मान योजना से बड़ी राशि निकाल चुके होते है यही वजह है कि सुपर स्पेशलिटी लिखा बोर्ड लगा अस्पताल बढ़ते जा रहे हैं, पर उसके अंदर या क्या वह न्यूनतम जरूरी मापदंडों को पूरा कर रहा है। यह देखने का स्वास्थ्य विभाग पास न तो समय है ना ही योग्य अमला।
स्पेशलिटी विभाग एवं सुपर स्पेशलिटी विभाग के मापदंड अलग-अलग हैं-
स्पेशलिटी विभाग एवं सुपर स्पेशलिटी विभाग के मापदंड अलग-अलग हैं। ग्रामीणजनों समेत अशिक्षित, अल्प शिक्षित शहरी तक यह नही जानता वे तो बस बड़ा अस्पताल या बोर्ड देख खींचे चले आते हैं। अंदर की बात तो ये भी है कि कई निजी अस्पतालों के एजेंट मरीज लाने सक्रिय रहते हैं उन्हें संचालक कमीशन देते हैं। एजेंट अस्पतालों के बाहर मरीजों के आने-जाने या भर्ती होने पर ध्यान रखते हैं। वे मौका पाते ही मरीज उनके परिजन को घेर झांसे में लेने का प्रयास करते हैं। उधर हेल्थ डायरेक्ट का कहना है कि गलत इलाज करने वाले अस्पतालों के खिलाफ कार्रवाई भी की जाती है, पर यहां यह बता देना उचित होगा कि कुल मरीजों में से 5% के भी परिजन कैसे बिगड़ने, मौत होने पर न तो शिकायत करते ना पूछताछ करते है कि विशेषज्ञ चिकित्सक है कि नहीं।