बसंत पंचमी को वीणा दायिनी के प्राकट्य के रूप में मनाया जाता है, जानिए ज्ञान पंचमी पर कैसे करें पूजा ..

बसंत पंचमी
बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है। माँ को कई नामों से पूजा जाता है। मां को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित कई नामों से पूजा जाता है।
बसंत पंचमी: बसंत पंचमी माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। भारत में सर्दी का मौसम चला जाता है और वसंत ऋतु का आगमन होता है। इस दिन से वसंत ऋतु की शुरुआत होती है। इस दिन को माघ पंचमी, ज्ञान पंचमी भी कहा जाता है। बसंत पंचमी का त्यौहार पूरे भारत में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस दिन मां सरस्वती की पूजा करने की परंपरा है। सभी ऋतुओं में बसंत ऋतु को राजा कहा जाता है। सम्पूर्ण पृथ्वी पर हरियाली व्याप्त है। बसंत ऋतु के आगमन के साथ ही खेतों में सरसों के पीले फूल खिलने लगते हैं और पेड़ों पर आम के बौर झूमने लगते हैं।
बसंत पंचमी के दिन स्कूली बच्चे, साहित्य, शिक्षा, कला आदि क्षेत्र से जुड़े लोग विद्या की देवी मां सरस्वती की पूजा करते हैं। आइए जानते हैं बसंत पंचमी का त्योहार क्यों मनाया जाता है और इसकी प्रचलित पौराणिक कथा क्या है।
क्यों मनाई जाती है बसंत पंचमी
वर्ष की सभी ऋतुओं में बसंत ऋतु को सभी ऋतुओं का राजा माना जाता है। इसी कारण इस दिन को बसंत पंचमी भी कहा जाता है। इस दिन से ही शीत ऋतु का जब समापन होता है तब बसंत ऋतु का आगमन होता है। बसंत ऋतु में खेतों में फसलें लहलहाती हैं और फूल खिलते हैं और हर जगह खुशहाली आती है।
ऐसा माना जाता है कि ज्ञान और बुद्धि की देवी मां सरस्वती बसंत पंचमी के दिन ही सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा के मुख से प्रकट हुई थीं। इसी कारण से सभी ज्ञान प्रेमी बसंत पंचमी के दिन अपनी आराध्य देवी सरस्वती की पूजा करते हैं।
बसंत पंचमी की पौराणिक कथा
बसंत पंचमी को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। ऐसा माना जाता है कि सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा ने ही जीव-जंतुओं और मनुष्यों की रचना की थी। उन्होंने इस बात का ध्यान रखा कि माहौल बिल्कुल शांत रहे और किसी में कोई वाणी न हो। इतना सब करने के बाद भी ब्रह्मा जी संतुष्ट नहीं हुए। सृष्टि की रचना के बाद से ही उन्हें सृष्टि वीरान और निर्जन नजर आने लगी।
तब ब्रह्मा जी ने भगवान विष्णु से अनुमति ली और अपने कमण्डलु से पृथ्वी पर जल छिड़का। कमंडल से जल पृथ्वी पर गिरने से पृथ्वी पर कंपन होने लगा और एक अद्भुत शक्ति के रूप में चार भुजाओं वाली एक सुंदर स्त्री प्रकट हुई।
इस देवी के एक हाथ में वीणा तथा दूसरे हाथ में वर मुद्रा थी तथा दूसरे हाथ में पुस्तक तथा माला थी। ब्रह्मा जी ने उस स्त्री से वीणा बजाने का अनुरोध किया। देवी के वीणा बजाने से संसार के सभी जीव-जंतुओं को वाणी मिल गई। इसके बाद देवी को ‘सरस्वती’ कहा गया।
यह देवी वाणी के साथ-साथ ज्ञान और बुद्धि भी देती हैं, इसलिए बसंत पंचमी के दिन घर में देवी सरस्वती की भी पूजा की जाती है। इस दिन देवी सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित कई नामों से पूजा जाता है।
पूजा का शुभ मुहूर्त व योग
14 फरवरी को बसंत पंचमी के दिन पूजा का शुभ समय सुबह 7.01 बजे से दोपहर 12.35 बजे तक रहेगा। ऐसे में इस दिन पूजा के लिए आपके पास करीब 5 घंटे 35 मिनट का समय है। इस दिन रेवती, अश्विनी नक्षत्र और शुभ व शुक्ल योग पड़ रहा है।
पूजा विधि
1. बसंत पंचमी के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत होकर पीले या सफेद रंग का वस्त्र पहनें। उसके बाद सरस्वती पूजा का संकल्प लें।
2. पूजा स्थान पर मां सरस्वती की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। मां सरस्वती को गंगाजल से स्नान कराएं, फिर उन्हें पीले वस्त्र पहनाएं।
3. इसके बाद पीले फूल, अक्षत, सफेद चंदन या पीले रंग की रोली, पीला गुलाल, धूप, दीप, गंध आदि अर्पित करें।
4. इस दिन सरस्वती माता को गेंदे के फूल की माला पहनाएं। साथ ही पीले रंग की मिठाई का भोग लगाएं।
5. इसके बाद सरस्वती वंदना एवं मंत्र से मां सरस्वती की पूजा करें।
6. आखिर में हवन कुंड बनाकर हवन सामग्री तैयार कर लें और ‘ओम श्री सरस्वत्यै नम: स्वहा मंत्र की एक माला का जाप करते हुए हवन करें। फिर अंत में खड़े होकर मां सरस्वती की आरती करें।