नीतीश ने साधा अपना हित, ‘इंडिया’ को झटका जरूर दिया, लेकिन बिहार में भाजपा को फायदे की कोई उम्मीद नहीं..!
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गठबंधन के मुख्य सूत्रधार के अचानक बाहर होने से विपक्षी गठबंधन ‘भारत’ को भले ही झटका लगा हो, लेकिन राजनीतिक सूत्रों के मुताबिक बिहार में भाजपा को इसका ज्यादा फायदा मिलना मुश्किल है।
Bihar politics : बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने ‘इंडिया’ गठबंधन से अगर खफा होकर एवं लालू यादव के सुपुत्र तेजस्वी यादव की ताजपोशी के प्रयासों की भनक पर कांग्रेस, राजद, जदयू महागठबंधन से बाहर निकलने एवं एनडीए से जुड़ने का जो वक्त चुना शायद वह देर से उठाया गया कदम था। उन्होंने भाजपा समर्थन से भले ही मुख्यमंत्री का पद बरकरार रखा-पर उनकी छवि बार-बार पाला बदलने से खराब हुई है। इस देर से उठाए गए कदम से नीतीश की अति पिछड़ा व महादलित वोट बैंक पर अब उतनी पकड़ नही रही है कि वे उसे भाजपा के पक्ष में बदलवा सकें।
इंडिया’ गठबंधन को लगा झटका –
बेशक विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ को गठबंधन के मुख्य सूत्रधार के अचानक बाहर होने से झटका लगा हो पर- राजनैतिक सूत्रों के अनुसार बिहार में भाजपा को इसका ज्यादा फायदा मिलना मुश्किल है। जानकारों का कहना है कि ‘इंडिया’ गठबंधन में नीतीश कुमार के बने रहने की स्थिति में बिहार में भाजपा अपने सहयोगी दलों को साथ लेकर चुनाव लड़ती तो ज्यादा सीटें जीत सकती थी। क्योंकि इस बार भी वर्ष 2019 जैसी ही मोदी लहर दिखाई पड़ रही है।
एनडीए में सीट बंटवारे को लेकर बातचीत शुरू हो गई है –
बहरहाल एनडीए में सीट बंटवारे को लेकर बातचीत शुरू हो गई है। राज्य में 40 सीट है। भाजपा 18 सीट चाह रही है तो जदयू 17 सीटें। लोजपा के 6 सांसद 2019 में जीते थे। पर पासवान के बाद पार्टी बंट गई है। दो गुट चिराग पासवान एवं उनके चाचा पशुपति पारस का। दोनों एनडीए का हिस्सा हैं। लिहाजा दोनों गुट सीटें चाहेंगे। जबकि दोनों के मध्य 36 का आंकड़ा है तो वहीं गठबंधन में उपेंद्र कुशवाहा और जतिन राम मांझी भी सीट मांग रहे हैं। ऐसी स्थिति में भाजपा को आधी से कम सीटों पर संतोष करना होगा।
बार-बार पाला बदलने से नीतीश कुमार की छवि खराब हुई –
उधर चर्चा है कि नीतीश कुमार के बार-बार पाला बदलने एवं अब एनडीए में वापसी को लेकर चिराग पासवान, जतिन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा आदि में बहुत उत्साह नही दिखा रहें हैं। प्रदेश भाजपा के भी कई नेता इस नए गठबंधन के पक्ष में नहीं थे। उनका कहना है कि पार्टी राज्य में अपने दम पर शानदार नतीजे हासिल कर सकती है।
नीतीश कुमार अपने ठोस वोट बैंक कुर्मी समुदाय के कारण ताकत दिखाएंगे –
नीतीश कुमार के पास ठोस वोट बैंक के तौर पर उनकी कुर्मी बिरादरी है। जिसकी संख्या लगभग 2.87 प्रतिशत है। उधर विदित हो कि कांग्रेस, राजद दोनों जातीय जनगणना के बड़े समर्थक हैं वे इसे बड़ा चुनावी मुद्दा भी बना रहे हैं ताकि पिछड़ा, अति पिछड़ा और महादलित वोट बैंक उनके साथ जुड़ सके। उधर यदि ‘इंडिया’ गठबंधन यादव और मुस्लिम वोट बैंक को अपने साथ लाने में सफल रहा तो बाजी पलट भी सकती है। दरअसल हालिया राजनीतिक उठा पटक उपरांत विपक्ष ( ‘इंडिया” गठबंधन) यानी बिहार में राजद- कांग्रेस को जनता की सहानुभूति बटोरने का मौका मिल गया है। नीतीश के पाला बदलने से उपरोक्त तमाम कोणों से देखें तो लगता है कि नीतीश ने ‘इंडिया’ गठबंधन से बाहर आने में देरी कर दी। बेहतर होता अगर वे तब बाहर आते जब उन्हें हिंदी भाषा प्रेम के चलते उपेक्षित किया गया। तब बाहर आते तब खड़गे को अध्यक्ष बनाया गया। तब कदम उठाने पर वे शहीद कहलाते जिसका लाभ उठा सकते थे। फिलहाल देर कर देने से उन पर पाला बदलते रहने का आरोप (सही मायनों में ठप्पा) लग गया है।