कांग्रेस के बड़े नेता राज्य की राजनीति से बाहर नहीं जाना चाहते ..!

लोकसभा चुनाव के लिए 11 सीटों में से कुछ पर वरिष्ठ नेताओं को उम्मीदवार बनाने का प्रस्ताव था। जिस पर अधिकांश संभावित प्रत्याशी कतरा रहे हैं-
छत्तीसगढ़ न्यूज : छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव में प्रत्याशियों पर मंथन को ले प्रभारी सचिन पायलट ने 2 दिन पूर्व बैठक ली। जिसमें 11 सीटों में कुछ पर वरिष्ठ नेताओं को उम्मीदवार बनाने प्रस्ताव आए। जिस पर ज्यादातर संभावित उम्मीदवार कतरा रहे हैं। पायलट के लिए पार्टी ने एक तरह से चुनौती रख दी है प्रभारी बनाकर। उन्हें इसमें खुद को खरा साबित करना होगा। लिहाजा वे भी चाहते हैं कि लोकसभा के मददेनजर बड़े कद का नेता चुनाव लड़े। वजह व्यक्तिगत लोकप्रियता को भुनाना है।
कांग्रेस आम चुनाव के लिए उम्मीदवारों के नामों पर मंथन शुरू –
कांग्रेस का प्रयास है कि आमचुनाव हेतु अधिसूचना जारी होने के पहले कुछ उम्मीदवारों के नाम पहले ही घोषित कर दिए जाए। जैसा भाजपा ने विधानसभा चुनाव के दौरान किया था। संभावना है कि भाजपा कुछ उम्मीदवार के नाम लोकसभा सीटों पर समय पूर्व कर भी दे। बहरहाल कांग्रेस की बैठक में पूर्व सीएम भूपेश बघेल, पूर्व डिप्टी सीएम टी.एस. सिंहदेव, विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष डा. चरण दास महंत एवं डा. शिवकुमार डहरिया के नाम प्रस्तावित हुए। परन्तु पूर्व सीएम बघेल ने यह कहकर पल्ला झाड़ना चाहा कि वे विधायक पद हैं उन्हें राज्य में चुनाव प्रचार के लिए अवसर दिया जाए। तो पूर्व डिप्टी सीएम-टी.एस. सिंहदेव पारिवारिक कारणों को वजह बता चुनाव लड़ने को इच्छुक नहीं है। डा.चरण दास ने इंकार नहीं किया है। तो उधर डा. डहरिया को जांजगीर से लड़ाने की बात सामने आ रही है। बहरहाल अंदर के खाने से निकलकर आ रही बातों को मने तो भूपेश बघेल नहीं चाहते कि प्रदेश के राजनीति से बाहर रहें। वे भविष्य की सोच रहें हैं। लिहाजा वर्तमान विधायकी एवं प्रचार-प्रसार का काम चाह रहें हैं। जो सरल है। टी. एस. सिंहदेव विधानसभा चुनाव हार चुके हैं। स्वाभाविक है कि खिन्नता मन में होगी। दूसरा उनके मन में है कि प्रदेश प्रमुख बनें। जिसे कई बार खुलकर स्वीकार भी है। शायद इसी वजह से वे पारिवारिक कारणों का हवाला देकर लोकसभा लड़ने से इंकार कर रहें हैं। उधर डा. डहरिया जांजगीर के बजाय महासमुंद चाहेंगे। पर उन्हें यह सीट शायद ही मिले।
उपरोक्त स्थितियों में ज्यादातर नए चेहरों का मौका देना होगा। जो लोकसभा जैसे बड़े क्षेत्र में अपना प्रभाव नहीं रखते। या कि अपेक्षाकृत कम लोकप्रिय हैं। खासकर दुर्ग, नांदगांव, बिलासपुर, महासमुंद, रायपुर, रायगढ़, सरगुजा, बस्तर जैसी सीटों पर। कांग्रेस को यहां किसी दूसरे क्षेत्रीय दल से गठबंधन भी नहीं करना है। लिहाजा स्वयं तय करना है कि दमदार, प्रभावशाली उम्मीदवार कौन हो सकता है।