केप टाउन में टूटा साउथ अफ्रीका का घमंड, भारत ने दूसरा टेस्ट मैच जीतकर रचा इतिहास
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IND vs SA 2nd Test :
IND vs SA 2nd Test : केपटाउन, दक्षिण अफ्रीका की सरजमीं पर भारत-दक्षिण अफ्रीका के मध्य खेला गया दूसरा टेस्ट मैच भारत ने 7 विकेट से जीत लिया। वह भी दूसरे दिन टी टाइम से पहले। टेस्ट मैच इतिहास के 147सालों में गेंदों के हिसाब से यह सबसे छोटा मैच के तौर पर दर्ज किया गया।
केपटाउन पर जो पिच बनाई गई वह पूरी तरह तेज गेंदबाजों के अनुकूल थी। दक्षिण अफ्रीका के मार्कराम ने भले ही दूसरी पारी में 103 गेंद पर 106 रन बनाए 17 चौके मारे। जबकि भारत की ओर से पहली पारी में विराट कोहली ने सर्वाधिक 46 रन बनाए 7 चौके मारे थे। दक्षिण अफ्रीका को यह पिच उल्टे आ पड़ी। शायद उसने सोचा था कि तेज पिच बनवाने पर भारतीय टीम घुटने टेक देगी। और उनके खिलाड़ी आसानी से रन बना लेगे। पर दांव उल्टा पड़ गया और महज 642 गेंदों पर टेस्ट खत्म हो गया। इसके पूर्व 1932 में 656 गेंदों पर एवं 1935 में 672 गेंदों पर टेस्ट मैच खत्म हुआ था।
जानकारों विशेषज्ञो का कहना है कि 1932, 1935 की बात दशकों को पुरानी है। तब क्रिकेट शुरू हुए 55 और 58 वर्ष हुए थे। तथा चंद देश ही तब क्रिकेट टेस्ट मैच खेला करते थे। तब से लेकर एक लंबा समय गुजर गया है। इस बीच ढेरों परिवर्तन क्रिकेट में आए। नजरिया बदला, सभी प्रकार के लोगों को साथ लेकर यानी बल्लेबाज, गेंदबाज, क्षेत्ररक्षक, अंपायर अतिरिक्त खिलाड़ी आदि पर ध्यान दिया जाने लगा।
जिस तरह दक्षिण अफ्रीका पहले दिन पहली पारी में महज 55 रन पर ध्वस्त हो गई। तो भारत भी पहले ही दिन 153 रन पर ढेर हुआ। पर 98 रनों की बढ़त इस तरह की पिच पर, सामान्य पिच के हिसाब से जैसे 250-300 रन की बढ़त सरीखे थी। दूसरे अर्थों में बढ़त लेनी वाली टीम निश्चित हो गई थी वह मैच जीत चुका है। इसके बाद अति देखे दक्षिण अफ्रीका के तीन विकेट भी दूसरी पारी में पहले रोज गिर गए। यानी एक दिन में 23 विकेट गिरे। यानी 270 रन पर 23 विकेट। मतलब 11 रन से थोड़ा अधिक रहा प्रति विकेट औसतन यानी एक बल्लेबाज 11 रन ही बना पाया औसतन। दूसरे दिन भी पिच पर गेंदबाज बरसते रहे। और करीब 4 घंटे में 10 खिलाड़ी 194 रन बनाकर आउट हुए। यानी औसतन 19 रन प्रति खिलाड़ी।
क्रिकेट की जान टेस्ट क्रिकेट मैच में बसती है। ना कि फटाफट या झटपट मैचों में। 50-50 या 20-20 और अब तो हेडरडे बाल वाले मैच होने लगे। दरअसल तर्क दिया जाता है कि अब लोग 5 दिन का टेस्ट मैच देखने का धैर्य खो चुके हैं। जमाना फास्ट (तेज) है। बेशक तेज है जमाना। ऐसे तर्क देने वालों को पूछे कि विंबलडनकी टेनिस टूर्नामेंट में जब मैच 5-5 सेट तक जा पहुंचता है तब वह कितना रोमांचकारी हो जाता है। 2-0 या 3-0 के। यानी दो सेट या तीन सेट। हर तरह का प्रारूप अपनी जगह ठीक है। लिहाजा टेस्ट मैच को टेस्ट रहने दिया जाए। यह वास्तविक या क्लासिकल क्रिकेट के अस्तित्व वास्ते जरूरी है।