गुरुकुल सा है, छत्तीसगढ़ रायगढ़ के लामीखार गांव का सरकारी स्कूल !

लामीखार गांव का सरकारी स्कूल
छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिला जाए। जहां धर्मजयगढ़ तहसील से 45 किलोमीटर दूर जंगलों के बीच लामीखार गांव है। वहां जाने पर आपको चंद शिक्षक गुरु के तौर पर गुरुकुल चलाता सरीखा दिखेंगे तो चौकिएगा मत इसलिए कि यह सरकारी स्कूल है।
रायपुर न्यूज : प्राचीन काल में गुरुकुल में रहकर बच्चे (विद्यार्थी) ज्ञान अर्जन करने के साथ जीवनोपयोगी काम भी सिखाते थे। वे गुरु की सेवा करते, गुरु उन्हें अधिक से अधिक शिक्षित कर, उनकी प्रतिभा निखारते थे। पर आज के दौर में ऐसा कहा दिखता है बल्कि नर्सरी, प्ले स्कूल, कान्वेंटों की बाढ़ आ गई है। पर ठहरिए- छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिला जाए। जहां धर्मजयगढ़ तहसील से 45 किलोमीटर दूर जंगलों के बीच लामीखार गांव है। वहां जाने पर आपको चंद शिक्षक गुरु के तौर पर गुरुकुल चलाता सरीखा दिखेंगे तो चौकिएगा मत इसलिए कि यह सरकारी स्कूल है। आपको पता होगा गांव के एवं शहर तक के सरकारी स्कूल कैसे अभावग्रस्त होते है। पर लामीखार का स्कूल अन्य के लिए उदाहरण (मिसाल) है। जहां आसपास एवं शहर तक के पालक अपने बच्चों को पढ़ा रहें हैं तो कुछ गांव में किराया का मकान लेकर बच्चों को रख पढ़वा रहें हैं –
बच्चों के सामान्य ज्ञान के लिए बनाई गई स्टेच्चू
घने जंगलों के मध्य बसा लामीखार गांव में एक सरकारी प्राथमिक स्कूल है। जहां मात्र दो शिक्षक हैं पर शायद 6 के बराबर। यहां बच्चों को पाठ्यक्रम के साथ सामान्य ज्ञान की भी पढ़ाई कराई जा रही है। दो शिक्षक कई बरसों से यही रहकर पढ़ा रहें हैं, सच यह है कि स्कूल एवं बच्चों को संवार रहे है उनकी प्रतिभा निखार रहे हैं। तभी तो इस वन ग्राम के स्कूल के 8 बच्चे अब तक नवोदय विद्यालय हेतु चयनित हो चुके हैं। स्कूल की दर्ज संख्या महज 52 है। जिन पर दो शिक्षक है। धर्मजयगढ़ से 45 किलोमीटर दूर है यह गांव, परन्तु इस स्कूल में रायगढ़ जिला मुख्यालय, कोरबा, मुनुंद,बोकरामुड़ा के बच्चों के पालक आकर रह रहे हैं सिर्फ बच्चों को पढ़ाने के नाम पर, किराए का एक-दो कमरों का मकान ले लिया है। शिक्षक ने अपना पैसा लगा पशु-पक्षी का स्टेच्चू बनाया है ताकि बच्चे पशु-पक्षी के बारे में समझ सकें। बाघ, शेर, हाथी, कुत्ता, वनभैंसा, सांप, भारत माता का भी स्टेच्चू बनाया है। नदियों को प्रतीकात्मक ढंग से बनाया गया है। महानदी, केलो, मांड, शिवनाथ आदि नदियों का उदगम स्थल को दर्शाया गया है। इन नदियों का पानी हीराकुंड बांध (डैम) में कैसा जाता है यह बताया है।
अध्यापन के लिए लाइब्रेरी बनाया गया है
इतना ही नहीं स्कूल के शिक्षकों ने बच्चों के अच्छे अध्यापन के लिए अलग-अलग कॉर्नर बनाया है। जिसमें हिंदी, गणित, विज्ञान, सामजिक विज्ञान खिलौना- खेल आदि का अलग कॉर्नर बनाया है। स्कूल में लाइब्रेरी (पुस्तकालय) भी बाकायदा बनाया गया है जिसमें पाठ्यक्रम समेत अन्य ज्ञानवर्धक किताबें भी हैं। टीचर द्वारा 2013-14 से इस स्कूल को उन्नत करने में जुटे हैं। बहरहाल यह स्कूल उन अन्य ग्रामीण सरकारी स्कूलों के शिक्षकों के लिए प्रेरणास्पद है जहां शहरों के शिक्षक सप्ताह में दो-तीन दिन जाते हैं वही अभावग्रस्त स्कूल पर किसी तरह का ध्यान नहीं देते, खर्च करना तो दूर की बात बच्चों को कोर्स भी पूरा नहीं कराते।