Raipur News : बिचोलिये -थोक सब्जी विक्रेताओं के एकाधिकार को कौन चुनौती देगा !

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Raipur News : राजधानी समेत पूरे प्रदेश की थोक सब्जी मंडियों में दलाल सक्रिय हैं
Raipur News : राजधानी समेत समूचे प्रदेश में थोक सब्जी बाजरों (मंडी) में दलाल धड़ल्ले से सक्रिय हैं। जो थोक सब्जी विक्रेताओं से मिले हुए हैं। शासन-प्रशासन का किसी तरह का हस्तक्षेप न होने का मनमर्जी लाभ दलाल, थोक सब्जी विक्रेता उठा रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार महीनों से रपट प्रकाशित कर रहा है। आमतौर पर प्रशासन दिखवाते हैं, खबर लेते हैं, सख्ती बरतेगे आदि के साथ इतिश्री कर लेते हैं। जिससे गरीब एवं निम्न मध्यम वर्गीय चाह कर सीजन तक में मनचाही सब्जी न खरीद पाता न खा पाता। यहां यह बता देना गलत या अतिश्योक्ति नहीं होगा कि हाल ही में कोल्ड स्टोरेजो के संचालकों के यहां दफ्तर, गोदामों पर आयकर अन्वेषण टीम ने छापा मारी कर कच्चे -लेन -देन संबंधी दस्तावेज समेत नगदी बड़े पैमाने पर जब्ती बना जांच कर रही है।
ठंड के सीजन आमतौर पर सब्जियां की भरपूर आवक रहती है। छत्तीसगढ़ के किसान अच्छी सब्जी फसल उत्पादित करते हैं। पर न तो उन्हें समुचित भाव उत्पाद का मिल पाता है और न ही यहां के मूल निवासियों को ठीक से मनचाही सब्जी उपलब्ध हो पाती है। जिसका उनके स्वास्थ्य पर भी प्रभाव पड़ता है। विटामिन युक्त भरपूर सब्जी का सेवन वे (आम ग्राहक) नहीं कर पाते।
दलाल तमाम सब्जी मंडियों के प्रवेश द्वार या उससे थोड़ी दूरी पर सब्जी उत्पादक किसानों का अलसुबह से इंतजार करते रहते हैं। जैसे ही किसान थोक में गाड़ियों में भरकर माल लाता है। दलाल उसे मंडी प्रवेश पूर्व रोककर सही मायने में बालात रोककर जबरिया कम भाव में माल की बोली लगाकर पूरा माल ले लेते हैं। बताया जाता है कि मंडी के थोक विक्रेताओं की भी इसमें हिस्सेदारी होती है। फकत (बस) 5-10 से 15-20 रुपए किलो दर पर किसानों से उत्पाद खरीद कर थोक विक्रेताओं डेढ़ से दूगुनी दाम पर तुरंत बेचते हैं। चूंकि थोक वाले मिले होते हैं। लिहाजा वे किसानों के आगे पहुंचने, माल देखने बेचने का जायजा लेते रहते हैं। (एजेंट)
लूट चूका किसान बुझे मन से गाड़ी,वाहन भाड़ा यानी ट्रांसपोर्टिंग खर्च देकर बमुश्किल लागत निकल पाता है। माल भरपूर लाने पर वह कुछ बचा पता हैं। वह भी नगण्य प्रायः ! दलाल महज 3-4 घंटे में खड़े-खड़े हजारों रुपए मुफ्त में बना, थोक वालों के माल बेच निकल लेता है। फिर थोक वाले तय करते हैं। कि चिल्हर वालो को कितने में देना है। भाव खुलते चिल्हर वाले ना नुकुर करते माल लेने मजबूर रहते हैं। चिल्हर वालों को सब पता रहता है। उनके आगे उक्त घटना घटती है। फिर बेचारे गरीब, निम्न, मध्यम वर्ग के लोग लगभग ढाई-तीन गुना पर दाम देकर घर के लिए सब्जी-भाजी खरीद कर मन मारकर चले जाते हैं। उन्हें बहुत कम मौके मिलते हैं। जब मन चाही सब्जी ठीक दम पर मिल जाए। पूर्ववर्ती सरकार के समय कई बार रपट छापी, प्रकाशित की गई पर बड़ी कार्रवाई या दलालों को बाहर करने, थोक वालों को नियंत्रण में लेने का प्रयास प्रशासन ने शायद नहीं किया। वह शासन पर जिम्मेदारी डाल अपना पल्ला झाड़ देता है। या फिर रटा -रटाया एक ही बात दोहरता हैं कि दिखवाते हैं। पता करते हैं। बस बड़े थोक विक्रेता कोल्ड स्टोरेज में माल डंप कर रखते हैं। वे आवक कम बता रेट बढ़ाते हैं। फिर स्टोरेज के बाहर माल निकालते हैं धीरे-धीरे।
रही सही कसर बाहरी राज्यों के कारोबारी निकाल रहे हैं। जो किसानों से सीधे संपर्क कर थोक में माल ले बाहर ले जाकर मोटी कमाई कर रहे हैं। वे लोग भी सही कीमत किसानों को नहीं दे रहे हैं। पर सब्जी की बड़ी मात्रा बाहर होने से इधर आवक कम बता थोक वाले और मुनाफा कमा रहे हैं। इन दिनों चिल्हर बाजार में ज्यादातर सब्जियां 60 से 100-120 रुपए किलो चल रही है। भिंडी 80 से 100 रुपए किलो, गवार फली 100रुपए किलो ढेंस 100 से 120 रुपए किलो, फूलगोभी 80 से 100 रुपए किलो, परवल 80-90,रुपए किलो, करेला 80 रुपए किलो, भाजी 60 से 100 रुपए किलो, तिवराभाजी 80 से 100 रुपए किलो, प्याज 60 से 80, रुपए किलो मूली 30 से 40 रुपए किलो, बरबट्टी 80 से 90 रुपए किलो, बैगन 40 से 60 रुपए किलो, शिमला मिर्च 60 रुपए किलो मटर 30 से 40 रुपए किलो, नवल गोल 60 रुपए किलो, पत्ता गोभी 40 से 50 रुपए किलो, सेमी 60-80 रुपए किलो,धनिया 80 से 100 रुपए किलो, मिर्च 80 से 100 रुपए किलो, टमाटर 20 से 30 रुपए किलो दर पर तमाम चिल्लर सब्जी बाजारों में बेचा जा रहा है। गरीब निम्न मध्यम एवं मध्यम वर्ग पूछ रहा है। सीजन के समय यह क्या हो रहा है। यह तो सीधे जेब में डाका है। पर दुर्भाग्य किसानों यानी उत्पादकों संग निम्न मध्यम, मध्यम वर्ग ग्राहकों का कि इस प्रदेश में शासन किसी भी दल का हो सब्जी दलाल, थोक सब्जी विक्रेता की मनमर्जी मोनोपल्ली (एकाधिकार) कोई तोड़ नहीं पाता। रही आयकर छापे तो कभी-कभार पड़ते हैं। जिसमें भी महज 10-15 प्रतिशत काला धन बाहर आता है।
(लेखक डा. विजय )