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जातिगत जनगणना 2023 : देश को बांटकर कमजोर कर देगी जातीय आधार पर जनगणना की मांग

जातिगत जनगणना 2023 :

जातिगत जनगणना 2023 :

जातिगत जनगणना 2023 : राजनैतिक दलों को सिर्फ सत्ता चाहिए आरक्षण से देश का विकास अवरुद्ध होगा

जातिगत जनगणना 2023 : रायपुर। विपक्षी दलों का गठबंधन केंद्र की सरकार पर देश को धर्म जातिगत जनगणना 2023 आधार पर बांटने का आरोप लगाता है। जिसका एक भी सबूत नहीं दिया जाता पर इस गठबंधन की शुरुआत करने वाले ही देश को धर्म आधार पर बताकर, लड़ाकर, आरक्षण मांग कर बांटना ओर आम चुनाव में अपनी रोटी सेंकना चाहते हैं। सिर्फ सत्ता पाने यह सोचा समझा खेल- खेला जा रहा है। जो चुनावी नतीजों को कहां तक प्रभावित करेगा या तो फिलहाल नहीं कहा जा सकता पर देश को आगे नहीं बल्कि पीछे जरूर कर देगा।

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दशकों से यह देश आरक्षण का ताप झेल रहा है

अरसे क्या दशकों से यह देश आरक्षण का ताप झेल रहा है। सैकड़ों हजारों वर्षों पूर्व के छुआछूत, भेदभाव, को मिटाने हटाने की कीमत यह मुल्क आज तक झेल रहा है। आर्थिक- राजनैतिक, शैक्षणिक, साहित्यिक-सांस्कृतिक, राष्ट्रीयता आदि नजरिए से भारत आजादी के 76 वर्षों बाद भी पिछड़ा हुआ है। पिछड़ों, दलितों, भेदभाव का शिकार हुए वर्गों के लोगों को तमाम सुविधा आगे बढ़ने-जीने के वास्ते देना चाहिए। पर जहां योग्यता- देश के वास्ते चाहिए, प्रगति के लिए चाहिए, आर्थिक, राजनैतिक विकास के नजरिए से चाहिए वहां आरक्षण देकर देश की गाड़ी के पहिए खुद जाम करना है। किसी भी जाति-धर्म के अयोग्य व्यक्ति को जबरिया सीट पर बिठाकर आप योग्य नहीं बना सकते। योग्यताओं को आरक्षण के चक्कर में रोक कर, जाम कर उनमें सिर्फ जंग लग रहे हैं। यह सिर्फ बचकानी सोच है कि आरक्षण से सब बराबर हो जाएगा। 20वीं सदी तक आरक्षण समझ में आया। पर 21 वीं सदी के तीसरे दशक में भी यही झुनझुना लेकर तमाम दल सिर्फ अपना हित साधना चाहते हैं। उन्हें व्यक्ति, समाज, समुदाय, वर्ग, जात, धर्म से कोई मतलब नहीं। मतलब है उन्हें उकसाकर अपना वोट बैंक बनाना। फिर कोई झांकने तक नहीं आता। योग्यता भूखी पड़ी, आरक्षण, बेरोजगारी, का दंश झेलती टूट जाए,अवसाद में चली जाए, मर जाए, इससे कोई मतलब नहीं। दुनिया के विकसित देश कतई विकसित नहीं होते अगर वहां हमारे यहां जैसे आरक्षण चलता। विकसित देशों ने देश-दुनिया से ऊपर उठकर सिर्फ योग्यता को मौका दिया। हमारे यहां की हजारों-लाखों योग्यताओं को मुंह मांगी कीमत पर खरीद लिया है।

लगातार उलझाया जा रहा है जाति जनगणना का सवाल – Gaon ke Log

जातिगत जनगणना भारत के प्रगति में बाधक

तमाम विकसित देशों की प्रगति में भारत समेत उन देशों की बौद्धिक प्रतिभाएं शामिल है जो अपने मुल्क में उपेक्षा का शिकार होकर या सही मौके न मिलने पर पलायन कर गई। सबको पता है योग्यता का कोई मुकाम (पड़ाव) नहीं होता। उसे जहां मौका मिलता है सिद्ध कर देता है।

बिहार में वहां की सरकार ने जातिगत जनगणना जारी कर दी

बिहार में वहां की सरकार ने जातिगत जनगणना जारी कर दी है। जिससे हलचल मची है। कतिपय दल जाति के प्रतिशत आधार पर आरक्षण की मांग कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि यह आग जातिगत जनगणना अन्य राज्यों में भी फैलेगी। इसे आधार बनाकर आरक्षण मांगा जाएगा। बिहार राज्य सरकार सफाई देते कह रही है कि हम लोगों की आर्थिक स्थिति देखना चाहते थे। न कि धर्म। विपक्षी गठबंधन के प्रमुख दल देश में जातीय-धर्म आधार पर जनगणना की मांग कर रहे हैं। जबकि 1931 में आखिरी बार सभी जातियों की गणना की गई थी। बाद में यूपीए (UPA) सरकार ने गणना की थी। पर जनगणना रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं किया गया था। जनगणना जाति आधार पर हुई तो देश कमजोर हो सकता है। परंतु मांग करने बवालों को इससे कोई मतलब नहीं। उन्हें ऐन-केन प्रकरण सिर्फ सत्ता (कुर्सी) चाहिए।

(लेखक डॉ. विजय )

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