अखंड सौभाग्य फलदायिनी हरतालिका व्रत, जानिए पूजन विधि

तीज पर्व में माता पार्वती और भगवान शंकर की पूजा कि जाती है
हरतालिका व्रत – इस समय हरतालिका व्रत 18 सितंबर को मनाया जायेगा। भादों माह के शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि के दिन भगवान शिव और माता पाार्वती पूजा की जाती है यह व्रत हरतालिका तीज व्रत के नाम से जाना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इसी कठिन व्रत को विधि-विधान से करके माता पार्वती ने महादेव को दोबारा प्राप्त किया था। वर्तमान में इसी व्रत को कुंवारी कन्याएं जहां मनचाहा सुयोग्य वर पाने के लिए तो वहीं विवाहित महिलाएं अपने सुहाग की लंबी आयु, सुख और सौभाग्य की कामना लिए करती है। (तीज का व्रत विधवा महिलाएं भी करती है ये इस व्रत का सबसे बड़ा महत्व है इस पूजा का क्योंकि अगले जन्म में फिर ऐसा दुःख न मिले करके भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं।)
छत्तीसगढ़ कि परम्परा के अनुसार तीज का व्रत महिलाएं अपने मायके में जाकर करती हैं। यहां मन्यता है कि द्वितीय तिथि के दिन कडूभात खाने का रिवाज हैं उसके बाद तृतीय तिथि को 24 घंटे का निर्जला उपवास कर भगवान शंकर और माँ पार्वती की पूजा की जाती है। चतुर्थी को उपवास का परण (उपवास तोड़ती) करती है इस दिन सौभाग्य की सभी शृंगार से सुसज्जित होकर विवाहित महिलाएं तीज का व्रत करती है। रात जागरण कर माता का फुलेरा रख पूजा किया जाता हैं। भजन-कीर्तन कर रात जागरण कर माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा करते हैं।
तीज व्रत की सामग्री
व्रत से एक दिन पहले ही पूजा की सामग्री जुटा लेंना चाहिए – गीली मिट्टी, बेल पत्र, शमी पत्र, केले का पत्ता, धतूरे का फल और फूल, अकांव का फूल, पान का पत्ता। जनेऊ, वस्त्र, मौसमी फल-फूल, नारियल, कलश, अबीर, चंदन, घी, कपूर, कुमकुम, दीपक, चीनी, दूध, दही और शहद।
तीज व्रत सुहाग की सामग्री चढ़ाया जाता है
इस व्रत में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। इस पूजा के दौरान माता पार्वती को सुहाग की सामग्री चढ़ाई जाती है, जिसमें मेहंदी, सिंदूर, कंघी, माहौर, चूड़ी, बिछिया, काजल, बिंदी, कुमकुम, श्रीफल, कलश, अबीर, चंदन, घी-तेल, कपूर, कुमकुम और दीपक होता है। अपने से छोटे बहन या मंदिर में पंडितों को दान किया जाता हैं।
कैसे करें हरतालिका तीज की पूजा
प्रात:काल स्नान-ध्यान करने के बाद सबसे भगवान शिव और माता पार्वती का ध्यान करके इस व्रत को विधि-विधान से करने का संकल्प लें। इसके बाद शिव और पार्वती का पूजन करें।
इसके बाद पूरे दिन भगवान शिव के मंत्रों का मन में जप करते रहें और शाम के समय प्रदोष काल में एक बार फिर से स्नान करने के बाद मिट्टी या बालू से बने भगवान शिव और पार्वती की मूर्ति को स्नान आदि कराकर एक चौकी पर स्थापित करें। सर्वप्रथम गौरी गणेश की पूजा करें।
इसके बाद एक कलश के ऊपर नारियल रखकर सबसे पहले उसकी पूजा करें। इसके बाद कलश और गौरा-पार्वती की पुष्प, शमीपत्र, बेलपत्र, रोली, चंदन, मौली आदि चढ़ाकर पूजा करें। पूजा में शंकर और पार्वती को पांच फूल से बना फुलेरा और माता पार्वती को सुहाग की वस्तुएं जरूर चढ़ाएं।
इसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती को फल एवं मिष्ठान, मीठा पान का बीड़ा आदि का भोग लगाएंं। इसके बाद हरतालिका व्रत की कथा पढ़ें और शिव चालीसा, माता पार्वती का चालीसा का पाठ करे। अंत में भगवान शिव और माता पार्वती की आरती करें। बालू की शिव और माता पार्वती की मूर्ति और फुलेरा को तालाब या नदी में विसर्जन करें।