तीजा-पोरा त्यौहार, कपड़ा व्यापारियों की बल्ले-बल्ले … !
ग्राहकी टूट पड़ी- बेटियों, नाती-नातिन के कपड़ा वास्ते माँ-बाप दुकानों में
रायपुर। छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध तीजा पोरा पर्व पर कपड़ा बाजार में बूम की स्थिति है। बेटियां मौके पर अपने बच्चों को लेकर मायके (पीहर) जाएगी। लिहाजा परंपरानुसार माता-पिता या उनकी अनुपस्थिति में भाई-भाभी या चाचा-चाची जो हों वे बेटी को साड़ी(लुगरा) और बच्चों को कपड़ा देते हैं।

राजधानी समेत प्रदेश भर में तीजा- पोरा पर कपड़ा बाजार में भारी-भीड़ जुट रही है। तमाम साड़ी दुकानों पर ग्राहक टूट पड़े हैं। दुकानदारों ने इस मौके पर नया बड़ा माल मंगा रखा है। तो वही पुराने माल को छूट के साथ बेच रहें हैं। पूर्वान्ह से अपरान्ह दोपहर-शाम, रात तक लोग खरीदारी हेतु पहुंच रहें हैं।
दुकानदारों ने अपने कर्मियों की तमाम छुट्टियां निरस्त कर दी है। पसंद की साड़ी बेटी के वास्ते लेने माता-पिता या भाई-भाभी नहीं तो काका-काकी दुकान पहुंच मोल-भाव कर रहे हैं। दुकानदारों ने सभी रेंज की साड़ियां मांग रखी हैं। 200 से 5000 रुपए तक की साड़ी उपलब्ध है। वैसे 300 से हजार, डेढ़ हजार तक की ज्यादा बिक रही है। बेटियां इस त्यौहार में मायके (पीहर) आती हैं तो स्वाभाविक है कि बहुएं भी अपने मायके चली जाती हैं। यानी कि छत्तीसगढ़ में इस त्यौहारी सीजन में घरों पर (मायके) बेटियां एवं नाती-नातिन रहते हैं। बहुएं- पोता-पोती (मायके-ननिहाल) चले जाते हैं। सीधी सी बात है कि तीज में बहू ससुराल में नहीं मिलेगी।

बहरहाल विवाहित बेटियां मायके में पति की लंबी आयु हेतु तकरीबन 36 घंटे का निर्जला व्रत करती हैं। घर-घर पकवान ठेठरी,खुरमी,मठरी,पूड़ी, हलवा आदि बनता है। महिलाएं (बेटियां) अपनी पुरानी पड़ोसी, गांव की सहेलियों से इस मौके पर साल में एक बार ही मिल पाती हैं। और साथ-साथ तीज मनाते हुए घर- परिवार, सुख-दुख की चर्चा करते कब वक्त कट जाता है पता नहीं चलता।
खैर ! दुकानदारों ने बच्चों, किशोरों के लिए भी कपड़े मंगा रखे हैं। बेटी का मायका नाती-नातिन को भी कपड़ा मौके पर देता है। लिहाजा कपड़ा दुकानदारों (विक्रेता) की बल्ले-बल्ले हैं।
(लेखक डॉ. विजय)

