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कुआं प्यासे के पास नहीं जाता, ऑनलाइन के चलते किरकिरी मंथन का समय !

रायपुर। प्रदेश के अंदर राजकीय विश्वविद्यालयों से संबद्ध महाविद्यालयों में प्राचार्य के माध्यम से प्रवेश की अंतिम तिथि 31 अगस्त को निकल गई है अब 10 सितंबर तक कुलपति की अनुमति से रिक्त स्थानों पर प्रवेश दिया जा सकता है।

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चर्चा है कि शासकीय महाविद्यालयों के स्नातक, स्नातकोत्तर कक्षाओं में सीटें तकरीबन भर गई हैं। जो कुछ रह गई है वे शायद अगले 2-3 दिन में भर जाए। (10 सितंबर रविवार है इसलिए 11 सितंबर तक मान्य रहेगा) उधर निजी महाविद्यालयों की स्थिति खराब बताई जा रही है। जहां तकरीबन 45 प्रतिशत सीटें खाली रह गई हैं। अगले 2-3 दिन में कुछ फीसदी सीटों पर ओर प्रवेश हो भी जाए आशंका है कि 40 प्रतिशत सीटें प्राइवेट कालेजों में खाली रह जाएगी। बताया जा रहा है कि हालत यह है कि आवेदन जमा कर प्रवेश हेतु नाम आने के बावजूद जो विद्यार्थी प्रवेश लेने नहीं आ रहे हैं उन्हें बाकायदा शिक्षक और कर्मी फोन कर बुला रहें हैं।

उपरोक्त स्थिति बेहद शर्मनाक है। कुआं प्यासे के पास जा रहा है। किसी शिक्षण संस्थान में चाहे वह स्कूल हो या कालेज अगर विद्यार्थी को बुला-बुलाकर प्रवेश देने की नौबत आन पड़े तो फिर तमाम राजकीय विश्वविद्यालयों को अपने ऑनलाइन प्रवेश सिस्टम पर फिर से सोचना-विचारन, मंथन करना चाहिए। जिसके चलते बुलाने वाली नौबत निर्मित होती है। पूर्ववत ऑफलाइन प्रवेश, प्रावीण्यता आधार पर आखिर देने में क्या हर्ज है। विद्यार्थियों को महाविद्यालयों का विकल्प देने वाला विश्वविद्यालय स्वयं कौन होता है ! जिन्हें (विद्यार्थियों) जरूरत होगीवे 4क्या 10 महाविद्यालयों में आवेदन लगाए। प्रतिष्ठित राजकीय विश्वविद्यालय अपनी किरकिरी, फजीहत क्यूं कराए। कुआं प्यासे के पास नहीं जाता कृपया अपना-अपना नेक ग्रेड याद करें !

(लेखक डॉ. विजय)

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