तू डाल डाल- मैं पात-पात….!

रायपुर। लोकसभा चुनाव 2024 को अभी 8 माह का वक्त है। परंतु राजनैतिक दलों के मध्य तू डाल डाल- मैं पात पात वाली कहावत चल रही है। फिलहाल पढ़ी-लिखी जनता गौर से सब कुछ देख-सुन रही है।

गौरतलब है कि केंद्र की मोदी सरकार से लड़ने, उसे हटाने के उद्देश्य से 28 छोटे-बड़े, मंझोले क्षेत्रीय व राष्ट्रीय राजनैतिक दलों ने एक संगठन बनाया। जिसे नाम देते वक्त ऐसे शब्दों का सुनियोजित तरीके से इस्तेमाल किया गया कि प्रत्येक शब्द का पहला अक्षर उठाने (लेने) एवं उन्हें क्रमबद्ध रखने से ‘इण्डिया’ शब्द शार्टरूप (शार्ट फार्म) में बनता है। स्वाभाविक है सत्तापक्ष को उक्त शार्ट रूप (शार्ट फार्म) ‘इण्डिया ‘ रास नहीं आएगा। यह रचनाकारों को पता था। उसने एक तीर से कई शिकार करने चाहे हैं। साथ ही यह भी पता था कि सत्तापक्ष इस नाम का ‘इण्डिया’ उपयोग करते हुए संगठन का विरोध खुलकर नहीं पाएगा। विपक्ष इसे अपनी पहली जीत मान- सत्तापक्ष को भड़काने में जुट गया।

अब सत्तापक्ष अपनी पारी खेलना शुरू कर रहा है। जिसने पहले आरोप लगाए कि विपक्षी दलों का पूर्व संगठन यूपीए अपनी कमजोरी छिपाने ‘इण्डिया’ नाम से आवरण ओढ़ अपनी छवि साफ करने एवं मतदाताओं को भरमाने (भ्रम) में लगा हैं। उसने (विपक्ष) अपनी दुकान (पूर्व नाम यूपीए) का नाम बदलकर नया बोर्ड ‘इण्डिया’ लगा लिया है। कमजोरी छिपाने भ्रम पैदा करने की ‘कुचेष्टा’ है। अब तोड़ के तौर पर सत्तापक्ष ने देश के एक नाम का मुद्दा उठा लिया यानी इण्डिया नहीं सिर्फ भारत हो। वह तर्क दे रहा है कि भारत आदिकाल से कहा जाता रहा है। जबकि इंडिया गुलामी की याद दिलाता है।अतः प्रतीक गुलामी के इण्डिया को हटा दिया जाए। केवल भारत हो। केंद्र के इस विरोध को विपक्षी दल संगठन ‘इण्डिया’ अपने संगठन के नामकरण से जोड़कर देख रहे हैं। जो स्वाभाविक हैं। संविधान का हवाला देकर एक देश एक नाम की बात का विरोध कर रहे हैं। जबकि देखा जाए तो इसमें गलत कुछ नहीं है। एक कांग्रेसी ने तो 50 वर्ष पूर्व निजी प्रस्ताव रखा था।

खैर ! संविधान विशेषज्ञों का कहना है कि देश का नाम एक रखना इतना आसान नहीं होगा। इस हेतु संविधान में संशोधन करना होगा। 2 तिहाई मतों से लोकसभा-राज्यसभा में बिल पारित करना होगा। फिलहाल तो कुछ एक ताजा प्रसंगों में इंडिया की जगह भारत लिखा गया है। विपक्षी दलों में से कुछ कह रहें हैं कि कल के दिन कोई संगठन अपना नामकरण ‘भारत’ रख ले तो क्या उससे भी बदल देंगे ! तो स्पष्ट कर देना जरूरी होगा कि संविधान के तहत देश का नाम लिया कोई राजनैतिक दल या संगठन खड़ा नहीं किया जा सकता। ‘इण्डिया’ शार्ट फार्म विपक्ष के संगठन का है। ना कि सीधे इण्डिया। दिमाग का इस्तेमाल कर ‘इण्डिया किया गया हैं। बहरहाल तू डाल डाल-मैं पात पात वाली कहावत शुरू हो गई हैं।

ध्यान रहे विपक्ष के संगठन ‘इण्डिया’ के गठन बाद केंद्र सरकार ने करीब डेढ़ माह बाद हमला अप्रत्यक्ष तौर पर तब किया है जब G-20 देशों के राष्ट्राध्यक्षों की तीन दिवसीय अहम बैठक 7 सितंबर से प्रारंभ हो रही है। इसके कार्यक्रमों के तहत बांटे जाने वाले निमंत्रण पत्र में- प्रेसिडेंट-ऑफ इंडिया के बजाय प्रेसिडेंट ऑफ भारत छपा हुआ है। बहुत संभावना है कि शामिल होने वाले देशों के समझदार राष्ट्राध्यक्ष मौके पर अपने उदबोधन के दौरान प्रेसिडेंट ऑफ भारत कहें -बोले। दूसरा- कोई दीगर मुल्क (देश) कह नहीं सकता कि भारत दो नामों से जाना जाए-वजह वे (प्रतिभागी देश) स्वयं एक नाम से जाने जाते हैं। अपने संविधानों में एक नाम से हैं।

खैर! देखे आगे क्या-क्या होता है। संविधान संशोधन आसान नहीं और केंद्र सरकार चाहेगी कि मुद्दा लोकसभा चुनाव तक अटका रहे। वजह दो तिहाई बहुमत नहीं जुटा पाने पर किरकिरी होगी। लटके रहने पर विपक्ष संगठन की खिचाई जारी रहेगी।अगर बिल को दो तिहाई बहुमत नहीं मिला तो विरोध करने वाले दलों पर केंद्र सरकार को आरोप लगाने का मौका मिल जायेगा कि वे भारत नाम को पसंद न करते हुए गुलामी के प्रतीक इण्डिया को ज्यादा महत्त्व देते हैं। उधर दूसरी ओर अनपढ़-गांव की जनता को ततसंदर्भ में ज्यादा कुछ जानकारी नहीं हैं। वह तो चुनाव का इंतजार करते यह देखती है कि कौन क्या बांट दे रहा है। उन्हें तो कई दल अभी से रेवड़ी बांटने लगे हैं या बांटने का वायदा कर रहे हैं। बहरहाल तरकश के तीर दोनों (सत्तापक्ष-विपक्ष) के पास बचे हुए हैं। अभी लोकसभा चुनाव -2024 नामक पिक्चर का ट्रेलर चल रहा है। फिल्म बाकी है।
(लेखक डा. विजय )

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