रैगिंग रोकने के प्रयासों पर कितना अमल… !

कड़ी टूट क्यों नहीं रही ! पश्चिम बंगाल में रैगिंग में एक17वर्षीय विद्यार्थी की मौत
कोलकाता । पश्चिम बंगाल में रैंकिंग से प्रताड़ित एक17वर्षीय विद्यार्थी की मौत हो गई। ततसंबंध में छह पूर्व विद्यार्थीयों समेत कुल17विद्यार्थी गिरफ्तार किए गए हैं। इस घटना से सवाल खड़ा होता है कि रैगिंग रोकने जो तरीके अपनाए जाते हैं क्या वाकई उन पर अमल होता है।
यह बड़ी दुखद बात है कि टेक्नोलॉजी के इस दौर में भी कुछ सिरफिरे वरिष्ठ विद्यार्थी, कनिष्ठ की रैंगिग लेते हैं। रैगिंग लेने वालों के प्रति कतई ढिलाई नहीं बरतनी चाहिए। उन पर कड़ी से कड़ी कार्रवाही की जानी चाहिए।
दरअसल रैंगिंग की सोच या अवधारणा लिया विद्यार्थी स्वयं में आत्मविश्वासी नहीं होता। वह अपना रौब, कथित धाक जमाने नए एवं कनिष्ठ विद्यार्थियों का दबाना चाहता है, उन्हें कथित तौर पर एहसास करना चाहता है कि कैंपस या शैक्षणिक संस्थान में उनके अंडर (मातहत) रह कर ही आगे बढ़ सकते हैं अन्यथा नहीं।
उच्च शिक्षा संस्थाओं के परिसरों समेत छात्रावासो में और भी खराब स्थिति से कनिष्ठ विद्यार्थियों को गुजरना पड़ता है। जो उन्हें बुरी तरह हिला कर रख देता है। इससे नए विद्यार्थियों को मानसिक, शारीरिक, बौद्धिक प्रताड़न झेलनी पड़ती है। व्यावसायिक पाठ्यक्रमों वाले संस्थाओं में तो और अधिक खराब हालात से गुजरना पड़ता है।
रैगिंग रोकने दर्जनों उपाय किए जाते हैं बावजूद यह नहीं रुक रहा तो इसका अभिप्राय है कि यह बदस्तूर जारी है। चेन क्यों नहीं टूट रहा है इस पर शिक्षाविदों, शैक्षिण प्रबंधनों, प्रशासन को सोचना विचारना होगा प्रताड़ित बिना नाम (गोपनीय) शिकायत रैगिंग के संदर्भ में, दूसरे से लिखवाकर करें उस पर गहनता से जांच हो। कनिष्ठ विद्यार्थियों को कम से कम डेढ़ दो बरस छात्रावासों में अलग-थलग, विंग में रखने की व्यवस्था हो। जहां कोई एक वरिष्ठ न पहुंच पाए। न ही देर शाम-रात से सुबह तक कोई वरिष्ठ विद्यार्थी, अपने कनिष्ठ को बुला सके ऐसी- व्यवस्था हो। पास आउट या पूर्व विद्यार्थियों को छात्रावास में रहना प्रतिबंधित हो। संस्था मॉनिटरिंग करें। वे रात बतौर गेस्ट भी न ठहर सके यह भी सुनिश्चित हो। हर विद्यार्थी और उसके पालक-अभिभावक से प्रवेश के वक्त यह लिखवाकर (शपथ पत्र) लेकर, रिकॉर्ड रखा जाए- कि अगर उसका नाम रैगिंग की शिकायत में आता है तो उसकी उपाधि, डिग्री निलंबित या निष्कासित होगी।