नगर निगम के बिगड़े बोल, गोल बाजार का मामला गोल…. !
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रायपुर।राजधानी रायपुर का सबसे पुराना पहला-पहला बाजार यानी गोल बाजार-जहां 700 दुकानदार अपने बाप-दादा, परदादाओं के जमाने से (80 से 100 वर्षों) एक ही जगह धंधा पानी कर अपना परिवार का पालन-पोषण कर रहें हैं। नगर निगम की जिद के चलते अब आशंकित हो चले हैं।
दरअसल 700 दुकानदार 80 से 100 बरस पूर्व से पुश्तैनी धंधा करते आ रहे हैं। तब रायपुर एक छोटी बस्ती-कस्बा हुआ करता था। जिसका जरूरत का बाजार यही गोल बाजार था। स्वाभाविक है कि दादाओं-परदादाओं के जमाने से ये दुकानदार एक जगह पर जमे हुए हैं। जो तब शासन द्वारा खाली जमीनों पर बसाया गया था।
यह तब का काल था जब नगर निगम रायपुर का अस्तित्व ही नहीं था। गोल बाजार व्यापारी महासंघ के अध्यक्ष धनराज जैन, सदस्य रत्नेश गुप्ता, सचिव हाजी परवेज शकीलुद्दीन, कोषाध्यक्ष विवेक गुप्ता का आरोप है कि अब निगम जमीन अपनी बता रहा है। दुकानदारों के पास इतना पुराना रिकॉर्ड नहीं है। जब नगर निगम, नगर पंचायत, नगर पालिका के तौर पर शुरू हुआ तब से सभी दुकानदार टैक्स भर रहें हैं।
महासंघ अध्यक्ष धनराज जैन सचिव हाजी परवेज शकीलुद्दीन का कहना है कि छह-सात माह पूर्व नगर निगम ने 49हजार एवं 53हजार दर पर प्रति मीटर स्केयर तय किया था। तो व्यापारी राजी थे। पर रजिस्ट्री चार्ज डूमरतालाब वाले मामले जैसा 100 रुपए पर चाहते हैं। जिसे निगम ने नहीं माना। उपरोक्त दर पर 70-80 करोड़ रुपए निगम को मिलता।
महासंघ का आगे कहना है कि अब 6 माह बाद करीब 3 माह से निगम दर बढ़ाकर 1 लाख रुपया मीटर स्केयर मुख्य मार्ग एवं 60 फीट अंदर तक वाली दुकानों पर तथा उससे अंदर वालों से 80 हजार 500 रुपए मीटर स्केयर मांग रहा है। साथ ही कह रहा है कि डव्हलप कर देगा। यानी पानी, बिजली, टायलेट, सड़क सुविधा पर दुकानदार दुकान खुद बनवाए। इससे निगम को 155 करोड़ मिलेगा। बकौल चारों पदाधिकारी सरकार ने जमीन का दाम बढ़ाया नहीं फिर निगम कैसे उपरोक्त नई दर या बढ़ी दर बता रहा है। यह गलत है
महासंघ आरोप लगाते हुए कहता है। नगर निगम के बिगड़े बोल से गोल बाजार का मामला गोल-बना हुआ है। तमाम 700 व्यापारी पुराने दर 49 एवं 53 पर तैयार हैं पर रजिस्ट्री शुल्क 100 रुपए ही लिया जाए। जमीन पर 80-100 वर्षों से कब्जा व्यापारी का है। तब के शासन, प्रशासन ने सहूलियत के लिए बाजार हेतु दिया था। परंतु निगम था नहीं। फिर आस्तित्व में आकर बरसों पुराने कब्जाधारियों की जमीन हड़पना चाहता है। जो न्याय के सिद्धांत के विपरीत है। मनमाने रवैय्ये से व्यापारी क्षुब्ध (नाराज) हैं।