प्रवेश परीक्षाओं के केंद्र ‘कोटा’ राजस्थान पर प्रतिबंध लगाने का वक्त ..!
इंजीनियरिंग,आईआईटी और मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं के लिए कोचिंग संस्थानों का केंद्र कोटा कोचिंग हब, कोटा राजस्थान भी युवाओं की आत्महत्या का केंद्र बन गया है। एक सप्ताह के अंदर 2 युवाओं ने की आत्महत्या। कौन जिम्मेदार है?
कोटा कोचिंग हब : इंजीनियरिंग, आईआईटी और मेडिकल प्रवेश परीक्षाओं के लिए कोचिंग संस्थानों का केंद्र कोटा राजस्थान भी युवाओं की आत्महत्या का केंद्र बन गया है। रोकने की तमाम कोशिशों के बावजूद स्पर्धा की तैयारी कर रहे युवाओं की आत्महत्या का सिलसिला नहीं रुक रहा है। शायद अब समय आ गया है कि राज्य-केंद्र सरकार न्यायपालिका को विश्वास में ले और इस कोचिंग हब को बंद कर दे। इस पर प्रतिबंध लगाएं। बच्चों की जान की कीमत पर इस को चलाना व्यवसायिकता की निशानी है।
19 वर्षीय जेईई अभ्यर्थी निहारिका सिंह ने आत्महत्या कर ली-
कोटा में सोमवार को एक सप्ताह के भीतर दूसरी जान चली गई। 19 वर्षीय जेईई अभ्यर्थी निहारिका सिंह ने आत्महत्या कर ली। उन्होंने एक पत्र छोड़ा है जिसमें लिखा है- सॉरी मम्मी-पापा, मैं जेईई नहीं कर सकती । मैं एक हारी हुई लड़की हूं , मेरे लिए मौत ही आखिरी विकल्प है। सुसाइड नोट में उसने खुद को सबसे बुरी बेटी बताया। कृपया मुझे माफ़ करें। मेरे लिए यही आखिरी विकल्प बचा है। निहारिका की ये पंक्तियां यह साबित करने के लिए काफी हैं कि वह कितनी अवसाद (डिप्रेशन) में थीं। परीक्षा से ठीक 2 दिन पहले सोमवार को निहारिका ने अपने पैतृक निवास शिव विहार कॉलोनी बोरखेड़ा कोटा में उक्त कदम उठाया। उसके पिता एक निजी बैंक में सुरक्षा गार्ड हैं। निहारिका की चचेरी बहन ने बताया है कि वह जेईई को लेकर काफी तनाव में थी। कम अंक आने के कारण उन्हें 12वीं कक्षा की परीक्षा दोबारा देनी पड़ी। वह खुद को परीक्षा देने में असमर्थ पा रही थी। भाई विक्रम सिंह के मुताबिक वह पढ़ाई में अच्छी थी। वह तीन बहनों में सबसे बड़ी थीं। कोटा पुलिस सूत्रों के अनुसार 23 जनवरी को यूपी के मुरादाबाद निवासी 19 वर्षीय मोहम्मद जैद ने भी हॉस्टल में आत्महत्या कर ली थी। वह कोटा से ही नीट की तैयारी कर रहा था।
कोटा में प्रवेश परीक्षाओं के दबाव में दर्जनों युवा मौत को गले लगा चुके हैं-
गौरतलब है कि पिछले डेढ़ दशक में कोटा में प्रवेश परीक्षाओं के दबाव में दर्जनों घोषित युवा मौत को गले लगा चुके हैं। बढ़ती आत्महत्याओं के कारण सरकार ने हाल ही में नियम बनाया है कि कोचिंग संस्थान अनावश्यक परीक्षा का दबाव नहीं डालेंगे। सुबह और शाम को कक्षाएं नहीं लगेंगी। प्रारंभिक परीक्षाओं (कोचिंग संस्थान) में कोई फेल-पास नहीं किया जाएगा। अवकाश आदि के दिन कक्षाएं नहीं लगेंगी।
छोटा सा शहर कोटा कोचिंग हब सेंटर बन गया है –
कोटा, राजस्थान का एक छोटा सा शहर। जो बाद में जिला बन गया. कुछ दशक पहले अचानक भारत के नक्शा पर इंजीनियरिंग, मेडिकल, आईआईटी आदि प्रवेश परीक्षाओं का केंद्र बन गया। जहां देशभर से बच्चे संस्थानों में दाखिले के लिए प्रवेश परीक्षा देते हैं। लाखों की फीस है। जहां शिक्षक सरकारी नौकरी छोड़कर कोचिंग संस्थान चला रहे हैं, वहीं छोटे-छोटे समूह बनाकर इन संस्थानों में पढ़ा रहे हैं। पिछले डेढ़-दो दशक से कोटा में आत्महत्याओं का ग्राफ दिन-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। माता-पिता चिंतित हैं। लेकिन करियर का दबाव इतना होता है कि वे खुद कोटा पहुंचते हैं, अपने बच्चों का एडमिशन कराते हैं, उन्हें किराए के कमरे या हॉस्टल या पीजी में रखते हैं। जो माता-पिता स्वतंत्र होते हैं वे स्वयं किराए का मकान लेकर कोटा में रहकर अपने बच्चों को तैयारी कराने लगते हैं। एडमिशन और प्रतियोगी परीक्षा तक की रोजाना की टेंशन। संस्थान हर एक या दो दिन में परीक्षण लेते हैं। जिनका सीधा संबंध बच्चों से है
यहीं पर बच्चा डिप्रेशन में चला जाता है। वह एक तरह से खुद को पीड़ित महसूस करता है। इतनी सारी आत्महत्याओं के बाद राज्य और केंद्र सरकार को विपक्षी दलों को साथ लेकर न्यायपालिका को विश्वास में लेना चाहिए और कोटा कोचिंग हब पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। वहां कोचिंग बंद करने का समय आ गया है। आखिर कोटा कितने मासूम बच्चों की बलि देगा (चाहे वह आत्महत्या ही क्यों न हो) लेकिन दबाव के कारण कई युवा अपनी जान दे रहे हैं। उनके जीवन की कीमत पर कोचिंग व्यवसाय बंद करना बेहतर होगा। बच्चे अपने शहर और घर में रहकर ही तैयारी करें।